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तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादियों का घृणित सच

संपादकीय ब्लॉग
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भारत में आजादी के बाद से राजनीतिज्ञों और राजनीतिक दलों के बीच अधिकाधिक तुष्टीकरण की होड़ लग गयी. कांग्रेस इस प्रवृत्ति को बढ़ावा देने में सबसे आगे रही. बाद में छोटे क्षेत्रीय दलों ने सत्ता में आने के लिए इसी तथाकथित धर्मनिरपेक्षता को अपना हथियार बना डाला. हाल ही में घटी एक घटना से इस तथ्य की पुष्टि ही हुयी है. दिल्ली में सीरियल बम धमाकों का आरोपी जब से पुलिस की पकड़ में आया है, सेकुलरिस्टों के चेहरे से एक के बाद एक नकाब उतरते जा रहे हैं.

 

इंडियन मुजाहिदीन के आतंकी शहजाद पर दिल्ली बम धमाकों के साथ जामिया नगर मुठभेड़ में पुलिस पर हमला करने का भी आरोप है. मुठभेड़ में सुरक्षित निकल भागे शहजाद को आजमगढ़ ने पनाह दी थी. कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने आजमगढ़ का दौरा कर यदि वहां के कट्टरपंथी तत्वों को राजनीतिक संरक्षण दिया तो सपा की महाराष्ट्र ईकाई के अध्यक्ष अबु असीम आजमी और काग्रेस की उत्तर प्रदेश ईकाई के महासचिव ने इस आतंकी को वित्तीय मदद दी. बाटला हाउस मुठभेड़ को फर्जी बताने वाले कट्टरपंथी तत्वों को संरक्षण देने वाले मीडिया ने उन्हें मानसिक संबल दिया है. भारत को लहुलूहान करने में लगी ताकतों को कहां-कहां से और किस तरह की सहायता मिलती है, यह जांच का विषय है, किंतु शहजाद से हुई पूछताछ से इस कटु सत्य की झलक मिलती है कि किस तरह सेकुलरवाद के नाम पर भारत के खिलाफ हिंसक जिहाद जारी है.

 

19 सितंबर, 2008 को हुए बटला हाउस मुठभेड़ के बाद जहां मुस्लिम समाज के कट्टरपंथी दिल्ली के जामिया नगर से लेकर आजमगढ़ तक लामबंद हुए, वहीं सेकुलरिस्टों में भी उनका खैरतमंद होने की होड़ लग गई. जामियानगर में कांग्रेस सहित सपा के आला नुमाइंदों ने कट्टरपंथियों की नारेबाजी में जुगलबंदी की. सेकुलरिस्टों के लिए आजमगढ़ एक तीर्थस्थान सा बन गया. आतंकी घटनाओं के सिलसिले में विभिन्न राज्यों की पुलिस द्वारा की गई जाच में आजमगढ़ का नाम सामने आने के बाद कट्टरपंथी भारतीय मुसलमानों के चेहरे बेनकाब हो गए. कट्टरपंथियों ने खुलेआम इस देश की कानून-व्यवस्था और अदालतों पर प्रश्न खड़ा किया. वोट बैंक की राजनीति के कारण सेकुलरिस्ट उनके साथ खड़े हो गए. शहजाद की गिरफ्तारी के एक दिन बाद काग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह का आजमगढ़ दौरा इस विकृति की ही पुष्टि करता है.

 

बटला हाउस मुठभेड़ में अपने साथी जुनैद के साथ सुरक्षित निकल भागे शहजाद ने बताया है कि भागने के बाद उसने पूर्व विधायक अब्दुस सलाम के नोएडा स्थित आवास में शरण ली थी. वहा से उसे आर्थिक मदद मिली और बाद में वह आजमगढ़ चला गया. यहा और उसके बाद मुंबई में उसे आजमगढ़ निवासी व सपा नेता अबु असीम आजमी का संरक्षण मिला. आजमी से उसे आर्थिक मदद भी मिली. अब्दुल सलाम ने आरोप तो स्वीकार किया, किंतु उन का यह कहना है कि उन्हें उसके आतंकी होने का ज्ञान नहीं था. पूछताछ में पूर्व विधायक ने दावा किया है कि मुठभेड़ में भाग जाने वाले आतंकियों के स्कैच जब पुलिस ने जारी किए तो उन्हें उसके आतंकी होने का पता चला. शहजाद को विगत एक फरवरी को आजमगढ़ से गिरफ्तार किया गया था. सवाल उठता है कि सितंबर, 2008 से अब तक पूर्व विधायक खामोश क्यों रहे? क्यों नहीं उन्होंने शहजाद के आजमगढ़ में छिपे होने का खुलासा किया?

 

यह कैसी मानसिकता है? एक ओर तो आप इस देश से वफादार होने का दावा करते हैं और दूसरी ओर इस देश को तोड़ने में लगी ताकतों को संरक्षण देते हैं. चरित्र में यह विरोधाभास क्यों? वस्तुत: यह विकृति छद्म सेकुलरवाद के कारण आई है, जो मुस्लिमों के थोक वोट बैंक की लालच में इस देश की संप्रभुता व अस्मिता से समझौता करता आया है. यह अकेला मामला नहीं है.

 

भारत सहित शेष विश्व के खिलाफ जिहाद छेड़ने वालों का तो दावा ही यही है कि यह जंग ‘काफिरों’ के खिलाफ है. यह युद्ध इस्लाम की रक्षा और निजामे मुस्तफा व शरीआ की स्थापना के लिए किया जा रहा है. ‘काफिर’ जहां सभी गैर मुस्लिमों के लिए प्रयुक्त होता है, वहीं इसकी परिधि में वे मुस्लिम देश व मुसलमान भी हैं, जो शरीआ का अक्षरश: पालन नहीं करते और कट्टरपंथियों की नजर में ‘सच्चे मुसलमान’ नहीं हैं. पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे घोषित इस्लामी देशों में हो रहे जिहादी हमले इस सत्य को ही रेखाकित करते हैं.

 

ऐसी विषाक्त मानसिकता को जब राजनीतिक समर्थन मिलता है तो जिहाद को भी बल मिलता है. मुस्लिम कट्टरपंथियों के आगे हमारे सेकुलर तंत्र के घुटने टेकने से मजहबी उन्माद उसी अनुपात में बढ़ा है. अभी हाल में मुस्लिम चरमपंथियों ने तस्लीमा नसरीन के एक लेख को लेकर कर्नाटक के कई शहरों में जमकर उत्पात मचाया. हिंदू देवी-देवताओं का नग्न चित्र बनाने वाले एमएफ हुसैन की रक्षा में ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ का नारा लगाने वाले सेकुलरिस्ट इस मामले में खामोश रहे. क्यों? जब तस्लीमा नसरीन पर इस्लामी चरमपंथियों ने हमला किया तो वामपंथी उनके साथ आ जुटे थे और नसरीन को अंतत: रातोरात पश्चिम बंगाल से बाहर कर दिया गया. मुस्लिम कट्टरता के पोषण से आतंकवाद का खात्मा संभव नहीं है, बल्कि भारत का शाश्वत सनातन स्वरूप, जिसके कारण यहा बहुलतावादी संस्कृति है, उस पर गंभीर खतरा है.

Source: Jagran Yahoo

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