Menu
blogid : 133 postid : 302

नामकरण की राजनीति

संपादकीय ब्लॉग
संपादकीय ब्लॉग
  • 422 Posts
  • 640 Comments

आरंभ से ही यह एक प्रथा रही है कि योजनाओं और परियोजनाओं का नामकरण राजनेताओं और महापुरुषों के नाम पर किया जाए. हालांकि इसमें आपत्ति की कोई बात नहीं क्योंकि इससे जनता को योजनाओं से एक जुड़ाव सा महसूस होता है. किंतु समस्या तब उत्पन्न होने लगती है जबकि राजनेताओं द्वारा इस परंपरा का दुरुपयोग किया जाने लगता है.

 

ए. सूर्यप्रकाश ने इस मसले की ओर चुनाव आयोग का ध्यान खींचने का प्रशंसनीय प्रयास किया है. उन्होंने 13 मार्च, 2009 को चुनाव आयोग को बताया था कि केंद्र और राज्य सरकारों की योजनाओं का नामकरण कांग्रेस नेताओं के नाम पर करने से कांग्रेस को अनुचित लाभ मिल रहा है. केंद्र सरकार की योजनाओं में से अधिकांश नेहरू-गांधी परिवार के तीन सदस्यों के नाम पर चलाई जा रही हैं. उनके अनुसार अगर इस प्रक्रिया को नहीं रोका गया तो इससे कभी भी तमाम पार्टियों को समान अवसर नहीं मिल पाएंगे तथा यह सुनिश्चित करने के लिए सरकार को दिशानिर्देश दिए जाएं सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों का नामकरण राजनीतिक रूप से तटस्थ लोगों के नाम के आधार पर ही किया जाए.

 

मुख्य चुनाव आयुक्त को लिखे पत्र में मुख्य मुद्दे थे:

 

पिछले 18 सालों से भी अधिक समय में कांग्रेस तमाम प्रमुख सरकारी कार्यक्रमों, परियोजनाओं और संस्थानों का नामकरण गांधी-नेहरू परिवार के तीन सदस्यों, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के नाम पर कर रही है. मोटे तौर पर केंद्र और राज्य सरकार की करीब 450 योजनाएं, कार्यक्रम और संस्थान चल रहे हैं, जिनमें लाखों करोड़ रुपए व्यय हो रहे हैं. एक को छोड़कर सामाजिक क्षेत्र की तमाम योजनाएं इन तीन लोगों के नाम पर चल रही हैं. सैकड़ों सरकारी योजनाएं और कार्यक्रम ऐसे हैं जिनमें हजारों करोड़ रुपए का प्रावधान रखा गया है.

 

राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतिकरण योजना में 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 28 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान है. इसी प्रकार राजीव गांधी पेयजल अभियान में तीन साल के दौरान 21 हजार करोड़ रुपए खर्च होने हैं. जवाहरलाल नेहरू अर्बन रिन्यूवल मिशन में अगले सात साल में 50 हजार करोड़ रुपए खर्च किए जाने हैं. इसके अलावा इंदिरा आवास योजना का वार्षिक बजट करीब 8 हजार करोड़ रुपए और इंदिरा गांधी नेशनल ओल्ड ऐज पेंशन स्कीम का 3.4 हजार करोड़ रुपए है.

 

सार्वजनिक योजनाओं से लाभ उठाने के कांग्रेस के लालच की कोई थाह नहीं है. नेशनल क्रेच स्कीम में मात्र 90 करोड़ रुपए सालाना और लघु व अति लघु उद्यमिता के प्रोत्साहन के लिए जारी कार्यक्रम उद्यमी मित्र योजना कुल 1-2 करोड़ रुपए की ही है. ये कार्यक्रम भी राजीव गांधी के नाम पर चलाए जा रहे हैं.

 

प्रदेश सरकारों में भी गांधी-नेहरू परिवार के इन तीन सदस्यों के नाम पर योजनाओं का नामकरण करने की होड़ लगी है. उदाहरण के लिए, पॉडिचेरी में बच्चे जब भी नाश्ते करते हैं उनसे राजीव गांधी को याद करने की उम्मीद की जाती है, आंध्र प्रदेश में गरीब जब भी स्वास्थ्य योजना के कार्ड का इस्तेमाल करते हैं उन्हें राजीव गांधी को याद करना पड़ता है और इसी प्रदेश के किसानों की बछड़ा खरीदने से पहले इंदिरा गांधी को स्मरण करने की मजबूरी है. हरियाणा में, गरीब महिलाओं को शादी के वक्त इंदिरा गांधी का नाम लेना पड़ता है, क्योंकि इस उपलक्ष्य पर सरकार द्वारा शगुन के नाम पर दी जाने वाली धनराशि उन्हीं के नामकरण पर है.

 

वे कहते हैं कि उन्होंने चुनाव आयोग से प्रार्थना की थी कि वह केंद्र सरकार और तमाम राज्य सरकारों को निर्देश दे कि इन याजनाओं के नामों से ऐसे व्यक्तियों के नाम हटाए जाएं, जिन्हें जनता विशिष्ट राजनीतिक दलों के नायकों के रूप में जानती है. इस प्रकार के निर्देश से आचार संहिता वास्तविक रूप में लागू होना सुनिश्चित हो सकता है.

 

एक साल पहले उठाई गई मांग पर चुनाव आयोग की चुप्पी को आप क्या कहेंगे? क्या वास्तव में यह एक जन संस्थान है जो संविधानिक दायित्वों का निर्वाह कर सकता है और स्वतंत्र निर्णय लेने में सक्षम है? ए. सूर्य प्रकाश कहते हैं कि मैं इसका फैसला पाठकों पर छोड़ता हूं कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की वचनबद्धता पर खरा उतरने में आयोग की चुप्पी के क्या निहितार्थ निकालते हैं.

Source: Jagran Yahoo

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh