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प्राचीन भारत में समृद्धि और गौरव का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र बिहार हुआ करता था. आज की आधुनिक पीढ़ी से अगर यही बात कही जाए तो कइयों के लिए यह मजाक की बात हो जाएगी. किंतु भारत में बौद्धिक क्राति की शुरुआत बिहार में नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना से हुई थी. इस प्रयास ने भारत को अंतरराष्ट्रीय जगत में गौरवान्वित किया. उन दिनो विश्व में भारत के उत्कर्ष और गौरव का केंद्र बिहार था. बिहार का भाग्य और भविष्य देश के भाग्य और भविष्य से जुड़ा हुआ है. आजादी के बाद भी कई वर्षों तक भारत में बिहार ने अहम भूमिका निभाई. 1918 में बिहार के चंपारण जिले की सरजमीं से ही महात्मा गाधी ने नमक सत्याग्रह का बिगुल फूंका. स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद बिहार प्रात से ही आए. अंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक प्रशासन विशेषज्ञ पी. अपेलबी के अनुसार, 1950 के दशक में बिहार राज्य भारत के सभी राज्यों की अपेक्षा अधिक कुशल संचालित राज्य था. ऐसे में सवाल है कि आखिर कहा चूक रह गई कि आज स्थिति इतनी दयनीय हो गई?
1990 के दशक में सोशल इंजीनियरिंग द्वारा पिछड़ी जातियों के हितों की रक्षा और उत्थान के प्रयास हुए. इस माध्यम से बिहार की सामंतशाही प्रथा के कारणों से समाज के मुख्यधारा से कटे लोगों को सामाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रोत्साहन मिला पर आर्थिक उत्थान की बात पीछे रह गई. जब अन्य प्रांत विकास दर की तेज रफ्तार में तीव्र गति से गतिमान थे, बिहार भारत में सबसे कम विकास दर के क्रम से गुजरने लगा. लूट, अपहरण, फिरौती, हत्या, जैसे घिनौने कारनामे खूब सुनने, देखने को मिलने लगे. संस्थाओं और संस्थानों की गुणवत्ता में गिरावट आई.
विकास प्रक्रिया बाधित होने के कारण बिहार में रह रहे लोगों का पलायन अन्य विकसित राज्यों जैसे पंजाब, महाराष्ट्र आदि में होने लगा. ‘बिहारी’ शब्द का मतलब गंवार, पिछड़े से लगाया जाने लगा. बिहार से बाहर गए मजदूरों और छात्रों को देश के कई भागों में वहां के लोगों का रोष भी झेलना पड़ा, जो अभी भी परिलक्षित होता है. कुल मिलाकर बिहार के अंदर इसकी अर्थव्यवस्था में और बाहर बिहार की छवि में गिरावट आई.
हाल में आई रिपोर्ट ने बिहार राज्य की सालाना विकास दर करीब 11 प्रतिशत होने की बात कही, जो सभी राज्यों में सर्वाधिक विकास दर के आस-पास है, किंतु इस विकास दर से भी 25 साल बाद बिहार की प्रति व्यक्ति आय महाराष्ट्र की प्रति व्यक्ति आय की महज 20 प्रतिशत ही होगी. विकास के कई मापदंडों जैसे- साक्षरता, कृषि उत्पादकता, औद्योगिक विकास, गरीबी रेखा से नीचे की संख्या, प्रति व्यक्ति आय, जीडीपी इत्यादि में बिहार सभी राज्यों में गरीब और पिछड़ी श्रेणी में है. बुनियादी सुविधाओं जैसे- बिजली, पानी, सड़क इत्यादि की हालत खस्ता है. बाढ़ और सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं की पुनरावृत्ति प्राय: हर वर्ष होती है. इन परिस्थितियों के कारण बिहार में निवेश मुख्य रूप से प्रभावित होता है.
बिहार में रोजगार की समस्या भयावह है. बिहार राज्य का आबादी घनत्व देश में बहुत ऊंचा है. इसका मतलब यह हुआ कि जमीन और प्राकृतिक स्रोतों के मामले में बिहार की प्रति व्यक्ति हिस्सेदारी भारत के विभिन्न राज्यों की तुलना में कम है. फिर भी, कई मायनों में बिहार महत्वपूर्ण माना जाता है. प्रजातंत्र में संख्या का महत्व होता है और बिहार जनसंख्या के मामले में बहुत राज्यों से आगे है. अब आवश्यकता इस बात की है कि इस राज्य को रचनात्मक अर्थव्यवस्था के केंद्र के रूप में स्थापित किया जाए. इसके लिए कई क्षेत्रों में उपयोगी रणनीति बनानी होगी, जिसमें मानव संसाधन विकास, कृषि उत्पादकता, बिजली, पानी, सड़क जैसे मूलभूत ढ़ाचागत और बुनियादी सुविधाओं के विकास के साथ-साथ एक अच्छी प्रशासनिक व्यवस्था और पर्यटन प्रमुख हैं.
कुल मिलाकर सबसे अधिक आवश्यकता है सुशासन की, एक ऐसी राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था की जो जाति, उपजाति, पंथ आदि के नाम पर विभाजकता को प्रमुखता न देकर धीमी पड़ी विकास प्रक्रिया में तेजी लाने पर ध्यान दे. केंद्र सरकार को भी बिहार को विशेष व्यवस्था द्वारा सहयोग देना होगा, ताकि अगले 30 वर्षों में होने वाला विकास पूरे देश में समानता लाए और आम मानस के लिए न्यायसंगत और उचित हो. पुराने बिहार के गौरव का मूल कारण यह था कि हर क्षेत्र में जैसे राजनीति, अर्थव्यवस्था, शिक्षा, कला और संस्कृति इत्यादि में श्रेष्ठता और नूतनता को प्राथमिकता दी गई. आज के बिहार को भी इन्हीं रास्तों पर चलना होगा. शायद तब बिहार आने वाले वषरें में भारत में अपना उचित स्थान बना सकेगा और खोया हुआ वैभव, गौरव, कीर्ति, यश प्राप्त कर सकेगा.
Source: Jagran Yahoo
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