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बजट से उम्मीदें

संपादकीय ब्लॉग
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लोक सभा में विपक्ष के बहिर्गमन के बावजूद भी बजट प्रस्तुत कर दिया जिसमें कई जरूरी मदों के ऊपर व्यय के आवंटन में कंजूसी दिखाई गयी है जबकि मध्यम वर्ग को टैक्स स्लैब में बदलाव द्वारा खुश करने की कोशिश की गयी.

 

लेकिन पेट्रोलियम उत्पादों के दाम में वृद्धि की घोषणा से दी गयी रियायतों का मतलब अपने- आप ही खत्म हो जाता है. इस मसले पर पूरा विपक्ष एकजुट होकर आन्दोलन करने की तैयारी में आ चुका लगता है. वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी इन बाधाओं को कोई खास महत्व देने के मूड में नहीं लगते हैं.

 

उनका कहना है कि लोकतंत्र में सभी को अपना मत रखने का अधिकार है और वे लोकतांत्रिक तरीके से अपने विरोधियों से बातचीत करने को तैयार भी हैं. वे मानते हैं कि कुछ लोगों को छोड़ कर समाज के अधिकांश वर्ग ने उनके बजट को सिर-आंखों पर लिया है.

 

वित्त मंत्री के अनुसार इस बजट की तैयारियां जब शुरू की गई तो स्थिति कई मायने में काफी असामान्य थी. वर्ष की शुरुआत हमने काफी कठिनाइयों के साथ की. सब कुछ अनिश्चित था. दुनिया को यह भरोसा नहीं था कि इस दौरान कोई अर्थव्यवस्था तेजी की राह पर लौट भी सकती है, लेकिन वर्ष के समाप्त होते-होते हमें तेजी से सुधार के संकेत मिलने लगे. चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में कृषि में दो फीसदी की गिरावट होने के बावजूद छह फीसदी की विकास दर का हासिल होना बताता है कि मैन्यूफैक्चरिंग व सर्विस क्षेत्र बहुत तेजी से विकास कर रहा है. विकास दर के मद्देनजर हमें राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में करने का रोडमैप बनाना था. राजकोषीय घाटे के मौजूदा स्तर को ज्यादा दिनों तक जारी रखना संभव नहीं था. महंगाई का मुद्दा भी सामने था. इस सबको ध्यान में रखते हुए अर्थव्यवस्था की जरूरत के हिसाब से हमने बजट तैयार किया. उम्मीद है कि अर्थव्यवस्था चालू वित्त वर्ष के दौरान 7.2 फीसदी की विकास दर को हासिल करने में सफल रहेगी.
कुछ बजटीय प्रावधानों को मुद्रास्फीति बढ़ाने वाला माने जाने पर वे कहते हैं कि बजट तैयार करने में महंगाई की भूमिका महत्वपूर्ण रही है. मगर आंकड़े गवाह हैं कि महंगाई के लिए मौद्रिक तथ्यों से ज्यादा आपूर्ति में रुकावट जिम्मेदार रही है. सरकार की नीति इन वजहों को दूर करने की रही है. सबसे ज्यादा समस्या खाद्य उत्पादों की मंहगाई से हो रही है. यह मुख्य तौर पर तीन खाद्यान्नों चीनी, दाल और खाद्य तेलों की आपूर्ति में बाधा पहुंचने से उत्पन्न हुई है. इनकी आपूर्ति बढ़ाने पर ध्यान देना जरूरी है. इसके लिए प्रशासनिक या वित्तीय तरीके से हरसंभव कोशिश जारी है. आयात हो रहा है, शुल्क हटा दिये गये हैं. खुले बाजार से बेचने की नीति का विस्तार किया गया है.

 

बजट के कुछ प्रावधान महंगाई पर थोड़ा-बहुत असर डाल सकते हैं, लेकिन उनका समायोजन करना मुश्किल नहीं होगा.
पेट्रोलियम उत्पादों के बढ़े दामों को वापस लेने के मुद्दे पर प्रणब दा कहते हैं कि बजटीय प्रावधानों की घोषणा लागू करने के लिए की जाती है वापस लेने के लिए नहीं, लेकिन हम इस मुद्दे पर अपने सहयोगी दलों के साथ बातचीत कर रहे हैं. गठबंधन सरकार में विभिन्न सहयोगी दलों के बीच अलग-अलग विचार रखना कोई नई बात नहीं है. उन्हें लोकतांत्रिक तरीके से सुलझाया जाता है.

 

देश में दूसरी हरित क्रांति शुरू करने लेकिन इसके लिए केवल 400 करोड़ रुपये आवंटित करने के सवाल पर उनका मानना है कि यह तो शुरुआत है. मेरा मानना है कि हरित क्रांति केवल रुपये के बल पर सफल नहीं हो सकती. इसके लिए हमें ग्रामीण क्षेत्र में बेहतर ढ़ांचागत क्षेत्र की जरुरत होगी, बीज की गुणवत्ता सुधारनी होगी, भूमि सुधार करना होगा, सिंचाई व्यवस्था ठीक करनी होगी, किसानों को बेहतर विपणन तरीका देना होगा, उन्हें कोल्ड स्टोरेज की सुविधा देनी होगी. हरित क्रांति फिर से शुरू करने का मतलब यह नहीं है कि केंद्र सरकार इसके लिए वित्तीय मदद देने जा रही है. यह एक नया विचार है जिसकी सफलता को देखते हुए आगे आवंटन और बढ़ाया जा सकता है. हमने राजीव गांधी आवास योजना या विशिष्ट पहचान योजना के साथ ऐसा किया है.

Source: Jagran Yahoo

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