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कांग्रेस की 125वीं वर्षगांठ पर कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि अगले साल हम उन महत्वपूर्ण लोगों को याद करेंगे जिनके बलिदान और योगदान के बिना हम आज यहां नहीं होते। हम उन घटनाओं को भी चिह्निंत करेंगे जिन्होंने समकालीन भारत को परिभाषित किया है। इन घटनाओं को हमारे उन नेताओं ने आकार प्रदान किया है, जिन्होंने राष्ट्र के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक इतिहास पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है। सोनिया गांधी के अनुसार पार्टी बेहद सौभाग्यशाली है कि उसमें ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने बड़े साहस, ईमानदारी, दृढ़ता और समर्पण से हमारा नेतृत्व किया है।
अपने संबोधन के दौरान सोनिया गांधी ने जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की भूरि-भूरि प्रशंसा की और लाल बहादुर शास्त्री की तारीफ में भी कुछ शब्द कहने की उदारता दिखाई, लेकिन उन्होंने नरसिंह राव का जिक्र तक नहीं किया जो हमारे समय के महानतम प्रधानमंत्रियों में से एक हैं। हम अपने गणतंत्र की 60वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, इसलिए वे तमाम नागरिक जो भारत के आर्थिक शक्ति बनने में गर्व का अनुभव करते हैं, अगर सोनिया गांधी द्वारा राव का नाम न लिए जाने का विरोध नहीं करेंगे तो वे भारत के असली नायकों के योगदान को भुला देने का संदेश देंगे। नरसिंहा राव 21 जून, 1991 को प्रधानमंत्री बने थे। जब उन्होंने कार्यभार संभाला तो देश की अर्थव्यवस्था चरमराई हुई थी। विदेशी मुद्रा भंडार खतरनाक स्तर तक गिर चुका था और महंगाई दर 13 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ते-बढ़ते 17 प्रतिशत तक पहुंच गई थी। दीवालिया होने से बचने के लिए चंद्रशेखर के नेतृत्व में पूर्ववर्ती सरकार ने 20 करोड़ डालर जुटाने के लिए बैंक आफ इंग्लैंड के पास सोना गिरवी रखा था। विदेशी मुद्रा भंडार में कुल 21 अरब डालर रह गए थे। इस राशि से महज दो सप्ताह का आयात बिल चुकाया जा सकता था। जब 2004 में राव ने पद छोड़ा तो भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 140 अरब डालर पर पहुंच चुका था। दिसंबर के आखिरी सप्ताह में जब सोनिया गांधी ने कांग्रेस की 125वीं जयंती पर राव का उल्लेख करना जरूरी नहीं समझा तब भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 285 अरब डालर था। विदेशी मुद्रा भंडार के अलावा देश ने प्रति व्यक्ति आय और सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर में शानदार प्रदर्शन किया था। जिस मीडिया और संचार प्रौद्योगिकी की आज धूम मची है वह राव के उस फैसले के कारण संभव हुई जो उन्होंने इस क्षेत्र में सरकार का एकाधिकार खत्म करने के संबंध में लिए थे। आज भारत विश्व में दूसरी सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है और प्रत्येक देश इसका लाभ उठाने को बेकरार है। संक्षेप में, भारतीय मानस को जगाने में राव अब्दुल कलाम से भी आगे थे।
राव की दूसरी किंतु इतनी ही महत्वपूर्ण उपलब्धि वह साहस और दूरदर्शिता थी, जिस कारण वह पंजाब से आतंकवाद का सफाया कर पाए। पंजाब में अलगाववाद के बीज इंदिरा गांधी के कार्यकाल में बोए गए थे और राजीव गांधी के समय तक यह फसल लहलहाती रही। 1989 में जब राजीव गांधी ने पदत्याग किया तब पंजाब में हालात काबू से बाहर नजर आ रहे थे। अलगाववादी तत्वों को शिकस्त देने के लिए राव जैसे साहसी प्रधानमंत्री की आवश्यकता थी। नरसिंह राव की दृढ़ता के अभाव में पंजाब देश से अलग होने वाला पहला राज्य बन चुका होता। फिर भी, कांग्रेस अध्यक्ष ने राव को इस लायक भी नहीं समझा कि उनका उल्लेख ही कर देतीं!
गांधी परिवार ने अपने परिवार से अलग किसी भी राष्ट्रीय नेता के योगदान को स्वीकारने में हमेशा कंजूसी बरती है। यह विशेषता जवाहर लाल नेहरू के समय से ही चली आ रही है, जब 564 रियासतों को भारत संघ में सफलतापूर्वक मिलाने वाले सरदार पटेल और संविधान समिति की अध्यक्षता करने वाले बीआर अंबेडकर के योगदान को दबाने के हरसंभव प्रयास किए गए। यही रुख इंदिरा गांधी और राजीव गांधी का रहा। स्पष्ट है, सोनिया गांधी भी परिवार की परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं। इसीलिए यद्यपि वह यह कह रही हैं कि पार्टी उन नेताओं को स्मरण करेगी जिन्होंने भारत के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक इतिहास पर अमिट छाप छोड़ी है, फिर भी राव का जिक्र नहीं कर रही हैं। इसके अलावा, यद्यपि वह कहती हैं कि पार्टी बेहद सौभाग्यशाली है कि उसमें ऐसी व्यक्ति थे, जिन्होंने बड़े साहस, ईमानदारी, दृढ़ता और समर्पण से हमारा नेतृत्व किया है, लेकिन उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति व्यक्ति के योगदान को स्वीकार करने की शिष्टता दिखाना उचित नहीं समझा जिसने नाजुक वक्त में साहस और दढ़ता का परिचय दिया।
जहां तक सोनिया गांधी के भाषण का संबंध है, उसमें केवल राव की उपलब्धियों को दबाया ही नहीं गया है। बड़ी समस्या यह है कि आर्थिक मोर्चे पर राव की उपलब्धियों को अपने दिवंगत पति राजीव गांधी के खाते में जोड़ने का प्रयास किया गया है। यह उनके परिवार की ही एक और विशेषता है जो दूसरे नेताओं, चाहे वह सरदार पटेल हों, अंबेडकर हों या फिर नरसिंह राव, उनकी उपलब्धियों को गांधी परिवार के अपने खाते में जोड़ दिया जाता है। उन्होंने एक असाधारण दावा किया कि राजीव गांधी सूचना क्रांति के प्रणेता थे और 1991 में कांग्रेस पार्टी का घोषणापत्र ही अगले पांच सालों में लागू की गई आर्थिक नीतियों का आधार बना, जिसकी वजह से हमारी अर्थव्यवस्था और समाज को नई ताकत और दिशा मिली। इसका सीधा मतलब यह है कि नरसिंह राव ने प्रधानमंत्री के रूप में जो उपलब्धियां हासिल कीं उसके श्रेय से उन्हें वंचित किया जा रहा है।
हमें इस दावे की पड़ताल करने की जरूरत है। 31 अक्टूबर, 1984 को राजीव गांधी ने पांच साल के लिए प्रधानमंत्री का पदभार संभाला था। पद से हटने के मुश्किल से एक साल बाद ही भारत को बैंक आफ इंग्लैंड में सोना गिरवी रखने को मजबूर होना पड़ा और वह भी महज 20 करोड़ डालर की छोटी सी राशि के लिए। और सोनिया गांधी हमें विश्वास दिलाना चाहती हैं कि राजीव गांधी ने आर्थिक उत्थान की नींव रखी! उनके द्वारा किए गए एक और दावे से अधिक मिथ्या कुछ और नहीं हो सकता कि राजीव गांधी ने देश के अशांत भागों में शांति की स्थापना की। नवंबर 1984 में बोट क्लब पर अपने कुख्यात भाषण में उन्होंने सिखों के नरसंहार का बचाव किया। उनके कार्यकाल में पंजाब में अशांति और हिंसा चरम पर थी और आए दिन हत्याएं और बम विस्फोट हो रहे थे। उन दिनों दिल्ली और पंजाब में किसी सिनेमा हाल में फिल्म देखने और यात्रा करने में हिम्मत की जरूरत पड़ती थी। जिस व्यक्ति ने भारत के लिए पंजाब को बचाया और शांति की पुनस्र्थापना की वह नरसिंह राव थे। अंतत:, यद्यपि कांग्रेस की वर्षगांठ पर सोनिया गांधी का भाषण संकीर्णता और असत्य से भरा हुआ है, फिर भी इसका कुछ न कुछ इस्तेमाल तो हो ही सकता है। इसे कानून के पाठ्यक्रम में सच्चाई को दबाने और झूठ को स्थापित करने के आदर्श उदाहरण के रूप में पेश किया जा सकता है।
[ए. सूर्यप्रकाश: लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं]
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