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लाल गलियारे का बढ़ता दायरा

संपादकीय ब्लॉग
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नक्सल आंदोलन के रूप में देश एक ऐसे खतरे का सामना कर रहा है जिस पर यदि तुरंत लगाम नहीं लगाया गया तो फिर एक साथ कई समस्याएं सर उठा कर खड़ी हो जाएंगी. केंद्रीय गृह सचिव ने पिछले दिनों कहा था कि नक्सली समानांतर सरकार चलाना चाहते हैं और सेना के कुछ रिटायर अफसरों की मदद से उनका लक्ष्य 2050 तक भारत सरकार का तख्ता पलट कर अपनी सत्ता स्थापित करना है. लेकिन इस गंभीर रहस्योद्धघाटन की जैसी प्रतिक्रिया अपेक्षित थी वह नहीं हुई.

 

आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा होने के बावजूद नक्सलियों से निपटने के लिए साझी रणनीति पर अमल नहीं हो पा रहा है. आठ राज्यों के 34 जिले नक्सलियों की गिरफ्त में आ चुके हैं . 40,000 वर्ग किमी इलाके पर कब्जा कर 1400 करोड़ रुपये सालाना की वसूली करने वाले नक्सलियों की देश के खनिज संसाधनों पर बढ़ती पकड़ आर्थिक विकास की गाड़ी को पटरी से उतार सकती है. निरंतर गंभीर होती परिस्थितियों में नक्सलियों के अधिक ताकतवर होने का इंतजार नहीं किया जा सकता. लेकिन नक्सलियों से दो-दो हाथ करने के साथ-साथ उन कारणों को भी दूर करना होगा जिनके कारण नक्सली हिंसा तेजी से पाव फैला रही है.

 

स्वतंत्रता के बाद पूंजी व तकनीक प्रधान विकास रणनीति अपनाने के कारण देश भर में विकेंद्रित परंपरागत लघु व कुटीर उद्योगों का तेजी से पतन हुआ. आदिवासी बहुल क्षेत्रों में बड़ी परियोजनाएं लगीं, लेकिन स्थानीय समुदायों को उनका लाभ नहीं मिला. यहां दामोदर वैली कार्पोरेशन का उल्लेख प्रासंगिक होगा.

 

1948 में दामोदर व उनकी सहायक नदियों पर शुरू हुई इस परियोजना को पूरा हुए आधी शताब्दी से ज्यादा समय बीत चुका है, लेकिन इससे विस्थापित हुए लोग आज भी मुआवजे के लिए अदालतों के चक्कर काट रहे हैं, जबकि इस परियोजना से पैदा हुई बिजली का लाभ लेकर हजारों लोग करोड़पति हो चुके हैं. खनिज संसाधनों से संपन्न किंतु आर्थिक रूप से पिछड़े नक्सली क्षेत्र दुनिया में सबसे ज्यादा सस्ता श्रम मुहैया कराते हैं. यहा एक ओर बेशकीमती खनिज निकालने के लिए अरबों डालर झोंके जा रहे हैं वहीं दूसरी ओर आदिवासियों को उनके घरों व जंगलों से उजाड़ा जा रहा है. इन क्षेत्रों में राज्य सरकारों और कॉरपोरेट घरानों का ऐसा गठजोड़ उभर चुका है जो सस्ते श्रम और सस्ते संसाधनों को किसी भी कीमत पर अपने कब्जे में करने की होड़ में लगा है. इससे स्थानीय समुदायों की जीविका खतरे में पड़ रही है.

 

देश की ज्यादातर गरीब जनसंख्या पिछड़े क्षेत्रों में रहती है. अत: समेकित विकास के लिए इन क्षेत्रों पर फोकस बढ़ाना होगा. इन क्षेत्रों में ढाचागत सुविधाएं और संपर्क बढ़ाने पर विशेष ध्यान देना होगा. इससे न केवल बाजार से जुड़ी गतिविधियां बढ़ेंगी, बल्कि संस्थागत बाधाओं को भी दूर किया जा सकेगा. सबसे बढ़कर राजनीतिक भ्रष्टाचार दूर करने के गंभीर उपाय करने होंगे. राजनीतिक भ्रष्टाचार और एकागी विकास रणनीति का परिणाम अमीरी-गरीबी की बढ़ती खाई के रूप में सामने आ रहा है . 2008 में ‘जर्नल ऑफ कंटम्प्रेरी’ एशिया में छपे एक लेख के अनुसार दुनिया की सबसे बड़ी गैर बराबरी भारत में पाई जाती है, जहां पैंतीस खरबपति परिवारों की दौलत इस देश के अस्सी करोड़ भूमिहीन किसानों, मजदूरों और शहरी गंदी बस्तियों के लोगों की कुल दौलत से अधिक है.

 

नक्सलवाद को काबू करने के क्रम में ऊंच-नीच और अमीरी-गरीबी के फासले को मिटाना आज की सबसे बड़ी चुनौती है. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि चुनौती भारी है और एकांगी दृष्टिकोण की बजाय एकीकृत दृष्टिकोण को अपनाकर ही समस्या को काबू में किया जा सकता है.
Source: Jagran Yahoo

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