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बोफोर्स तोप सौदे के दलाल ओट्टवियो क्वात्रोची के खातों पर लगाई गई रोक हटाने, वोट के बदले नोट कांड में लीपापोती करने, राष्ट्रमंडल खेलों के नाम पर किस्म-किस्म के घोटाले होने देने, 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में पहले मनमानी होने देने और फिर ए.राजा को क्लीनचिट देने, दागी अतीत के बारे में बताए जाने के बावजूद पीजे थॉमस को केंद्रीय सतर्कता आयुक्त बनाने, देवास-एंट्रिक्स के बीच संदिग्ध समझौता हो जाने देने और कोयला ब्लाक आवंटन में घोटाला करने वाली केंद्र सरकार से यह उम्मीद करना खुद को धोखे में रखने या फिर दिन में सपने देखने के अलावा और कुछ नहीं कि वह हेलीकॉप्टर सौदे की तह तक जाने की कोई ईमानदार कोशिश करेगी। ऐसा बिल्कुल भी नहीं होने वाला। हर किसी को इसके लिए तैयार रहना चाहिए कि इस घोटाले की जांच में भी अंतत: लीपापोती होगी। कोई भी आसानी से इस पर शर्त लगा सकता है कि हेलीकॉप्टर सौदे की जांच में समय और पैसे की बर्बादी के अलावा कुछ भी हासिल नहीं होने वाला। यदि इस घोटाले का सच सामने आना होता तो एक साल तक चुप्पी क्यों छाई रहती? कोई चमत्कार ही इस घोटाले का सच सामने ला सकता है। यह चमत्कार भी तब हो सकता है जब जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो और सीबीआइ के कामकाज में सरकार का रत्ती भर भी दखल न हो।
यदि ऐसा नहीं हुआ तो इस मामले की जांच में भी वैसा ही कुछ हो सकता है जैसा 2जी घोटाले की जांच में होता दिख रहा है। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी के बावजूद सीबीआइ का एक वकील एक अभियुक्त से साठगांठ करता पाया गया। सीबीआइ वही करेगी जैसा सरकार चाहेगी और आखिर सरकार यह क्यों चाहेगी कि उसके अपने लोगों के सामने कोई मुसीबत खड़ी हो? केंद्रीय सत्ता के नीति-नियंताओं को इसका आभास अवश्य होगा कि दलाली किसने खाई, लेकिन वह ऐसे व्यवहार कर रही है जैसे उसने पहली बार दलाली शब्द सुना है। हालांकि इस सौदे में पूर्व वायुसेना प्रमुख एसपी त्यागी का भी नाम आ रहा है, लेकिन यदि उन पर लग रहे आरोपों को एक क्षण के लिए सही मान लिया जाए तो भी यह नहीं कहा जा सकता कि सारी दलाली उन्हें या उनके भतीजों को ही मिली होगी। बोफोर्स तोप सौदे में 64 करोड़ रुपये की दलाली का लेन-देन हुआ था, लेकिन इस मामले की जांच में इससे अधिक पैसा खप गया और आखिर में सीबीआइ ने ही बेशर्मी के साथ कहा कि इस प्रकरण को बंद कर दिया जाना चाहिए। हेलीकॉप्टर सौदे में भी लीपापोती होने के भरे-पूरे आसार नजर आ रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह इस सौदे में कुछ गड़बड़ होने की सुगबुगाहट होने के बावजूद केंद्र सरकार का एक साल तक निष्कि्रय बने रहना है। इस सौदे में जिन तीन त्यागी भाइयों के नाम इन दिनों खूब चर्चा में हैं उनका जिक्र कई अखबारों और टीवी चैनलों ने एक साल पहले भी किया था, लेकिन मनमोहन सरकार ने निष्कि्रय रहना ही बेहतर समझा। ऐसा तब हुआ जब रक्षा मंत्री के पद पर एके एंटनी विराजमान थे।
एंटनी की ईमानदारी का उतना ही ढोल पीटा जाता है जितना मनमोहन सिंह की नेकी का। तथ्य यह है कि मनमोहन सिंह की नाक के नीचे तमाम घोटाले हो गए और वह कुछ नहीं कर पाए। कुछ मामलों में तो उन्होंने उन्हीं लोगों को क्लीनचिट दे दी जिन पर घोटाले की साजिश रचने के आरोप थे। दूरसंचार मंत्री ए. राजा को सबसे पहले मनमोहन सिंह ने ही क्लीनचिट दी थी। बाद में उन्हें उनका इस्तीफा लेने के लिए बाध्य होना पड़ा। राष्ट्रमंडल खेलों में तमाम घोटालों के सूत्रधार सुरेश कलमाड़ी भी इसीलिए मनमानी कर सके, क्योंकि अनियमितताओं के तमाम आरोपों के बावजूद प्रधानमंत्री उन पर अपना भरोसा बनाए रहे। यह और कुछ नहीं भ्रष्ट तत्वों को अलिखित आदेश था कि लूट सको तो लूट लो। ऐसा लगता है कि यह आदेश अभी भी प्रभावी है। दरअसल जितनी खोखली ईमानदारी प्रधानमंत्री की साबित हुई उतनी ही रक्षामंत्री की भी। जिस तरह किस्म-किस्म के घपलों-घोटालों और उनकी नाकाम जांच ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को प्रतिष्ठाहीन कर दिया और उनकी विनम्रता एवं ईमानदारी उपहास का विषय बन गई उसी तरह एंटनी की ईमानदारी भी किसी काम की साबित नहीं हो पाई। जिस तरह प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत ईमानदारी उनके शासकीय कार्यो में नहीं झलक पा रही है उसी तरह रक्षामंत्री का ईमानदार होना भी रक्षा सौदों को साफ-सुथरा बनाने में सहायक नहीं साबित हो रहा है।
फिलहाल कोई नहीं जानता कि हेलीकॉप्टर सौदे की दलाली किसने खाई? आसार यही हैं कि इस सवाल का जवाब कभी नहीं मिले, लेकिन इस सवाल का जवाब तो सामने आना ही चाहिए कि हमारे विशिष्ट व्यक्तियों को करीब 300 करोड़ रुपये का एक हेलीकॉप्टर खरीदने की क्यों सूझी? क्या कथित तौर पर ईमानदार, विनम्र, संवेदनशील लोगों की सरकार में किसी को भी इस पर लाज नहीं आई कि तीन-तीन सौ करोड़ रुपये के 12 हेलीकॉप्टर खरीदने के बाद यह दावा किस मुंह से किया जा सकेगा कि हम आम आदमी के हितों की रक्षा के प्रति सजग हैं? क्या किसी ने यह सुना-जाना है कि अमुक-अमुक समय अति विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा इसलिए खतरे में पड़ गई थी, क्योंकि उनके पास उन्नत किस्म के हेलीकॉप्टर नहीं थे? एक के बाद एक अनगिनत घपलों-घोटालों के कारण केंद्र सरकार न तो देश में मुंह दिखाने लायक रह गई है और न ही दुनिया में, फिर भी वह ऐसी कोई व्यवस्था करने के लिए तैयार नहीं कि भ्रष्टाचार के मामलों की सही तरह जांच हो सके। वह खुद की ईमानदारी का ढोल पीटने के लिए इधर-उधर के तमाम उपाय कर रही है ताकि आम जनता को उसके इरादों को लेकर संदेह न हो, लेकिन वह सीबीआइ को स्वायत्त बनाने के लिए तैयार नहीं। वह सीबीआइ मुखिया का उस तरह से चयन करने के लिए भी तैयार नहीं जैसे सीवीसी का किया जाता है।
इस आलेख के लेखक राजीव सचान हैं
बोफोर्स तोप सौदे, भारतीय राजनीति
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