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अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा से लेकर रक्षा मंत्री राबर्ट गेट्स तक जो संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं वह यह है कि आतंकवाद दक्षिण एशिया के देशों को अस्थिर कर सकता है। क्षेत्र में रहने वाले लोग और सरकारें भी इस हकीकत से अवगत हैं। जो बात सुस्पष्ट है उसके बारे में उन्हें चेताए जाने की जरूरत नहीं है। फिर भी अमेरिका ने शायद ही कभी अपनी घृणित भूमिका को स्वीकारा हो। यह वाशिंगटन ही है, जिसने अनेक वर्ष पूर्व आतंकवादियों को प्रशिक्षित किया था और उन्हें हथियारों से लैस किया था। उनका इस्तेमाल शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ को चोट पहुंचाने और साम्यवाद को परास्त करने के लिए किया गया था। अमेरिका द्वारा धधकाई गई धर्मांधता की यही आग लोकतांत्रिक ताकतों को भस्म करती जा रही है।
गेट्स द्वारा की गई इस क्षेत्र की यात्रा महत्वपूर्ण थी। अमेरिका ने पहली बार भारतीय भूमि का उपयोग पाकिस्तान को आतंकवादियों के बारे में चेतावनी देने के लिए किया। उन्होंने कहा कि नई दिल्ली का धैर्य समाप्त होता जा रहा है और यदि नवंबर 2008 में मुंबई में हुए हमले जैसा कोई हमला हुआ तो उसकी परिणति युद्ध में हो सकती है। यह एक उत्तेजक वक्तव्य था। नई दिल्ली क्या करती है और क्या नहीं, यह तो उस समय की परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। इससे पहले अमेरिका ने आक्रोश के स्थान पर धैर्य को वरीयता दी थी, हालांकि राष्ट्रवादियों ने सामरिक हवाई हमलों पर जोर दिया था। जब दोनों देश परमाणु हथियारों से लैस हैं तो युद्ध कोई विकल्प नहीं है। भारत और पाकिस्तान के आपसी मतभेदों को सुलझाने में सहायता देने के नाम पर अमेरिका इसमें रोड़े अटका रहा है। बताया जाता है कि गेट्स ने यही चेतावनी प्रधानमंत्री युसुफ रजा गिलानी को तब दी थी जब दोनों में इस्लामाबाद में भेंट हुई थी। गिलानी ने जवाब दिया था कि जब पाकिस्तान खुद को ही आतंकवादियों से सुरक्षित नहीं रख पा रहा है तो वह यह गारंटी कैसे दे सकता है कि एक और 26/11 जैसा कांड उनके देश की धरती से नहीं होने दिया जाएगा। भारत के विदेश मंत्री एसएम कृष्णा का उत्तर भी दोस्ताना नहीं था। उन्होंने कहा कि यदि एक और 26/11 हुआ तो भारत की ओर से ‘प्रतिक्रिया’ होगी ही। क्या यह एक धमकी के समान नहीं है? यह भारत के विदेश मंत्री कह रहे थे, कोई कनिष्ठ अधिकारी नहीं। मृदुभाषी रक्षा मंत्री एंटनी ने भी देशवासियों को चेताया कि आतंकवादी हमला हो सकता है। उन्होंने कश्मीर एवं अमृतसर सीमाओं पर नियंत्रण रेखा के ‘उल्लंघन’ की ओर ध्यान दिलाया है। ये बयान दावानल भड़कने का खतरा दर्शा रहे हैं। गेट्स के इस सुझाव को खारिज करने का इस्लामाबाद के पास ‘ठोस कारण’ हो सकता है कि भारत सीमा के बजाय अफगानिस्तान से लगती पश्चिमी सीमा पर ‘अस्तित्व के लिए खतरा’ है। कितना भी समझाया जाए, पाकिस्तान बदल नहीं सकता, क्योंकि वह भारत को शत्रु मानता है। यह एक त्रासदी ही है, फिर भी गिलानी, कृष्णा और एंटनी की भाषा घबराहट पैदा करने वाली है। जिन शब्दों का इस्तेमाल हुआ है वे अविश्वास और पूर्वाग्रह से भरे हैं। ऐसी अभिव्यक्तियों से दोनों देशों के बीच मेलमिलाप की गुंजाइश कम होती है। ठीक है कि वे शांति की स्थापना नहीं कर सकते, किंतु उन्हें अपनी टिप्पणियों में अति राष्ट्रवाद तो व्यक्त नहीं करना चाहिए। वे शब्द प्रयोग में तो उदार हो सकते हैं।
नई दिल्ली इस बारे में आशंकित है कि भारत पर आतंकी हमला हो सकता है। यदि हम अपनी जानकारियों को इस्लामाबाद से साझा करें तो स्थिति सुधारने में सहायता मिल सकती है। संबंधों का स्तर चाहे जो भी हो, कोई भी सरकार इसकी उपेक्षा नहीं कर सकती कि अमुक-अमुक समूह अमुक-अमुक स्थान पर हमले की योजना बना रहे हैं। गेट्स अपने इस आकलन में सही थे कि अलकायदा ने तीन देशों- अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत में, ‘आपरेशन’ के लिए अलग-अलग नामावली अपनाई है और योजना बनाने और हमलों को अंजाम देने के मुद्दे पर सभी आतंकवादी एकजुट हैं। यह कहने की जरूरत ही नहीं है कि उनके विरुद्ध संघर्ष के लिए एक क्षेत्रीय सोच हो। किंतु सहयोग के लिए जुड़ाव का माध्यम इस्लामाबाद और नई दिल्ली के बीच समीकरण ही है और यह संभावना दिन-प्रतिदिन घट रही है। इंडियन प्रीमियर लोग नीलामी के दौरान पाकिस्तानी क्रिकेटरों को न चुने जाने के लिए जो ढंग अपनाया गया, वह यही दर्शाता है कि भारत अभी भी पाकिस्तान की संवेदनाओं के प्रति सजग नहीं है। खिलाडि़यों द्वारा सभी अपेक्षाओं को पूरा कर देने के बाद भी वे किसी गिनती में नहीं थे। इसलिए नहीं कि उनमें योग्यता की कमी थी, बल्कि इसलिए कि तथाकथित रूप से आईपीएल ने टीमों के मालिकों से कहा था कि पाकिस्तान खिलाडि़यों पर बोली न लगाएं। यह शायद गृहमंत्री पी चिदंबरम की विलंबित प्रतिक्रिया का प्रभाव है कि आईपीएल कमिश्नर ललित मोदी ने पाकिस्तानी खिलाडि़यों को शामिल करने का संकेत दिया। असल मुद्दा यह है कि यदि क्षोभ प्रदर्शित करना ही था तो यह आस्ट्रेलिया के खिलाफ होना चाहिए था, जहां साल भर में भारतीयों पर 1500 हमले हुए हैं।
पिछले साल जब आईपीएल टूर्नामेंट दक्षिण अफ्रीका में हुआ तो बहुत से लोगों को बुरा जरूर लगा होगा कि हमारी सुरक्षा व्यवस्था को खिलाडि़यों की सुरक्षा के लिए उपयुक्त नहीं माना गया था। ऐसा कहा जा रहा है कि इस बार आईपीएल ने शांति का जुगाड़ किया है। उसने शिवसेना को रिझाया है। बताया जाता है कि शिवसेना ने यह धमकी दी थी कि यदि पाकिस्तानी खिलाडि़यों को शामिल किया गया तो वह मैचों में खलल डालेगी। भारत सरकार को कौन संचालित कर रहा है, शिवसेना या कांग्रेस? महाराष्ट्र में कांग्रेस ने हालात बिगाड़ दिए हैं। पहले इस बात पर जोर दिया कि टैक्सी चालकों को अनिवार्य तौर पर मराठी भाषी होना चाहिए, इसमें मराठा संकीर्णतावाद की संतुष्टि नजर आती है। फिर उसने पलटी खाई कि हिंदी और गुजराती जानने से भी काम चल सकता है। फिर यह मांग की गई कि टैक्सी चालक 15 साल से महाराष्ट्र में रह रहा हो। यह भारत के संघीय ढांचे पर गंभीर हमला है।
महाराष्ट्र सरकार ने चाहे जो भी घालमेल किया हो, पाकिस्तान के गृह मंत्री रहमान मलिक की टिप्पणी भी कम भद्दी नहीं है। उन्होंने कहा है कि वे भारतीयों से ‘भेदभाव’ बरतेंगे। वह नहीं जानते कि आईपीएल के रवैये के विरुद्ध जनता में कितनी कड़ी प्रतिक्रिया हुई है। इस वाद-प्रतिवाद में 26/11 की उलझन को सुलझाने का एक महत्वपूर्ण सूत्र जाता रहा। मुंबई पर आतंकी हमला करने वालों और पाकिस्तान में बैठे उनके सूत्रधारों के बीच हुई बातचीत से पता लगा है कि इसमें कुछ हिंदी शब्दों का भी इस्तेमाल किया गया था। इससे यह सामान्य धारणा ही पुष्ट होती है कि जब मुंबई में हमला हुआ था तो भारत में भी कुछ सहयोगी थे। नई दिल्ली ने हमले के बारे में सब कुछ कहा है, परंतु उन लोगों के बारे में एक शब्द नहीं कहा जिन्होंने आतंकवादियों की मदद की। भारत और पाकिस्तान के बीच समग्र परिदृश्य उनके लिए कड़ा अवरोध है जो दोनों देशों के बीच सेतु बनाने के लिए प्रयत्नशील हैं। सद्भावना का जो भी ढांचा बनता है वह भरभरा कर गिर जाता है, क्योंकि एक या दूसरे पक्ष की ओर से अविवेकपूर्ण और उत्तेजक बयान आ जाते हैं। किंतु शांतिकामियों को हताश नहीं होना चाहिए क्योंकि भारत और पाकिस्तान के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों की स्थापना उनकी प्रतिबद्धता है।
[कुलदीप नैयर: लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं]
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