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समस्याओं को जन्म देता अनियंत्रित नगरीकरण

संपादकीय ब्लॉग
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सभ्यता की दौड़ में नगरीकरण का उदय तो स्वाभाविक है. प्राचीन काल से ही इसके साक्ष्य मिलते है. भारत में हड़प्पा युगीन नगरों का अस्तित्व था और जनपद युग में तो वृहदाकार नगरों का प्रमाण मिलता है. वर्तमान काल में विश्व के सभी देशों में विकास के प्रमुख चिन्ह के रूप में निरंतर शहरीकरण हो रहा है. लेकिन यही नगर जब अनियंत्रित रूप से वृद्धि करते हैं तब एक नए प्रकार की समस्या जन्म लेने लगती है. आधारभूत संरचना का अभाव, स्लम बस्तियां, जीवनोपयोगी वस्तुओं की कमीं से शहर एक प्रकार के नारकीय जीवन को साक्षात ही प्रस्तुत कर रहे हैं. विकसित देशों के नगरों की हालत तो ठीक है किंतु विकासशील देशों के नगर तमाम समस्याओं का गढ़ बन चुके हैं.

 

शहर मानव की सबसे जटिल संरचनाओं में से एक है. शहर में व्यवस्थाएं और अव्यवस्थाएं साथ-साथ चलती हैं. पिछले सप्ताह जारी संयुक्त राष्ट्र हैबिटाट की द्विवार्षिक रिपोर्ट में शहरों को आर्थिक विकास का इंजन बताया गया है. आज दुनिया की आधी जनसंख्या शहरों में रह रही है और अनुमान है कि वर्ष 2050 तक यह अनुपात बढ़कर 70 प्रतिशत हो जाएगा. उस समय विकसित देशों की 14 प्रतिशत और विकासशील देशों की मात्र 33 प्रतिशत जनसंख्या शहरी सीमा से बाहर होगी. शहरीकरण की गति विकासशील देशों में सबसे तेज है.

 

शहरीकरण में वृद्धि कई कारकों के सम्मिलित प्रभाव का परिणाम है. जैसे भौगोलिक स्थिति, जनसंख्याई वृद्धि, ग्रामीण-शहरी प्रवास, राष्ट्रीय नीतिया, आधारभूत ढाचा, राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियां. वर्ष 1990 के दशक में विकासशील देशों में शहर 2.5 प्रतिशत वार्षिक की गति से बढ़ रहे थे, लेकिन इसके बाद उदारीकरण, भूमंडलीकरण ने विकासशील देशों में शहरीकरण को तेजी से बढ़ाया. विशेषज्ञों के अनुसार विकासशील देशों में शहरीकरण की गति तभी धीमी पड़ेगी, जब अफ्रीका और एशिया के ग्रामीण बहुल क्षेत्र शहरी केंद्रों में बदल जाएंगे. वर्ष 2050 तक विकासशील देशों की शहरी जनसंख्या 5.3 अरब हो जाएगी, जिसमें अकेले एशिया की भागीदारी 63 प्रतिशत या 3.3 अरब की रहेगी.

 

भारत और चीन के पांच सबसे बड़े महानगर इन देशों की आधी संपदा रखते हैं, लेकिन शहरों की ओर प्रवास ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ तोड़ रहा है, क्योंकि शहरों से भेजा गया धन ग्रामीणों की आय का स्त्रोत रहा है. इसके साथ ही शहरों में गंदी बस्ती, असमानता, हिंसा जैसी प्रवृत्तियां उभर रही हैं. महानगरों में बढ़ती भीड़ से एक ओर आसपास की कृषि भूमि रिहाइशी इलाकों में बदलती जा रही है. विकसित देश ऊंची उत्पादकता, संसाधनों की तुलना में कम आबादी, औद्योगिकरण, मशीनीकृत खेती आदि माध्यमों से शहरों में बसी जनसंख्या को रोजी-रोटी मुहैया कराने में सफल हुए, लेकिन विकासशील देशों में ऐसी स्थिति नहीं है.

 

इन देशों में उत्पादक जनसंख्या के प्रवास से गावों में बुजुर्ग व महिलाओं की संख्या बढ़ी, जिससे कृषि कार्य बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. यही कारण है कि खाद्यान्न पैदा करने वाले परिवार अब खरीदकर खा रहे हैं. ऐसे में यह सवाल उठना स्वारभाविक है कि विकासशील देशों के अरबों शहरी लोगों की क्षुधापूर्ति कैसे होगी? संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून के अनुसार गरीबी, प्राकृतिक आपदाएं और खाद्यान्न व ईधन की कीमतों में बढ़ोतरी का तेजी से होते शहरीकरण से महत्वपूर्ण संबंध है. अगर गरीब आबादी को अपना जीवन स्तर सुधारने या रोजगार ढूंढ़ने के अवसर नहीं मिले तो भारी अशांति फैलेगी. दरअसल, इस समय विकास के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती गरीबी का शहरीकरण रोकने की है.

 

विकसित देशों की भाति शहरीकरण के लिए जिस बड़े पैमाने पर संसाधनों की जरूरत होती है, उसका विकासशील देशों के पास अभाव है. अभी जो शहरीकरण का स्तर है, उसमें भी जल-मल निकासी, गंदे पानी के शोधन, पार्किग, पेयजल, आवास, अस्पताल की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है. ऐसे में भावी शहरीकरण अपने साथ समस्याओं का अंबार लेकर आएगा. दरअसल, शहरों का बुनियादी ढांचा एक निश्चित आबादी को ध्यान में रखकर बनाया गया है. ऐसे में बढ़ते जन-दबाव से वह चरमरा रहा है. इससे सांस्कृतिक तनाव की भी स्थितियां पैदा हो रही हैं. उदाहरण के लिए मुंबई में राज ठाकरे द्वारा उत्तर भारतीयों के विरुद्ध चलाया जा रहा अभियान.

 

विकासशील देशों की बहुसंख्यक आबादी का आधार कृषि एवं ग्रामीण जीवन रहा है. भले ही हम शहरीकरण से पश्चिमी संस्कृति से प्रतिस्पिर्धा कर सकते हैं, लेकिन इतनी विशाल जनसंख्या को शहरीकरण की प्रक्रिया में शामिल करना लगभग असंभव है. अत: विकासशील देशों को चाहिए कि वे शहरीकरण के बजाए आधुनिकीकरण, यंत्रीकरण तथा प्रौद्योगिकरण पर अधिक बल दें. इन देशों में गांवों व कस्बों में फैक्टरी लगाने, औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा देने और स्वरोजगार के साधन मुहैया कराने की जरूरत है. इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में बनने वाले सामानों की गुणवत्ता बढ़ानी होगी ताकि उनके निर्यात से हमें विदेशी मुद्रा प्राप्त हो सके. गांवों के विकास के लिए इस तरह की योजना बने कि ग्रामीणों को स्थानीय स्तर पर शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, बिजली और पेयजल उपलब्ध हो.

Source: Jagran Yahoo

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