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हाय ये कैसी-कैसी मजबूरियॉ!

संपादकीय ब्लॉग
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गठबंधन राजनीति की अनेक समस्याएं होती हैं. गठबंधन में शामिल दल अकसर अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए सरकार गिराने की धमकी देते रहते हैं. कई बार प्रधानमंत्री को विवशतावश तमाम मंत्रियों को मंत्रिपरिषद में बनाए रखने की मजबूरी होती है जिन पर गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप लगे होते हैं. यूपीए सरकार भी गठबंधन की ऐसी ही खामियों को लेकर चल रही है, जिस पर लेखक एवं वरिष्ठ स्तंभकार ए. सूर्यप्रकाश ने प्रकाश डाला है.

 

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने जैसे ही दूसरे साल में प्रवेश किया, वैसे ही यह स्पष्ट हो गया कि गठबंधन की राजनीति सार्वजनिक जीवन में मानक कायम रखने में एक बड़ी बाधा है. हालिया घटनाओं से पता चलता है कि प्रधानमंत्री का कार्यालय अनुशासन बनाए रखने या मंत्रिमंडल से गैर कांग्रेसी मंत्रियों को हटाने में अक्षम है.

 

प्रधानमंत्री की सीमाओं का चौंकाने वाला उदाहरण तब सामने आया, जब उनकी सरकार को संसद में दो मंत्रियों की अक्षम्य हरकतों का बचाव करना पड़ा. ये हैं, संचार मंत्री ए राजा तथा रसायन व खाद मंत्री एमके अलागिरी. इसका एकमात्र कारण यह है कि ये दोनों मंत्री द्रमुक पार्टी से संबद्ध हैं. सरकार नहीं चाहती कि कठोर कार्रवाई का नतीजा इन दलों के गठबंधन से बाहर जाने के रूप में सामने आए. इन दोनों मंत्रियों का मंत्रिमंडल में बने रहना कांग्रेस और सरकार के दोहरे मानदंडों का भी परिचायक है, खास तौर पर तब जब बिगड़ैल मंत्रियों से निपटने का सवाल हो.

 

वास्तव में, भ्रष्टाचार और पक्षपात के गंभीर आरोपों के बावजूद ए राजा का सरकार में बने रहना गठबंधन सरकार में प्रधानमंत्री की लाचारी का सटीक उदाहरण है. राजा 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले का केंद्रबिंदु हैं. 2007 में मंत्री बनने के तुरंत बाद उन्होंने 2जी लाइसेंस जारी करने का फैसला किया और उसी साल एक अक्टूबर को प्रार्थना-पत्र जमा करने की अंतिम तिथि की घोषणा कर दी. आरोप है कि बाद में राजा ने लाइसेंस के लिए निविदा की अंतिम तिथि 25 सितंबर, 2007 कर दी.

 

यही नहीं, संचार विभाग ने सफल आवेदकों को डिमांड ड्राफ्ट जमा करने के लिए मात्र एक घंटे का समय दिया. हैरानी की बात यह है कि एक हजार करोड़ रुपए की यह राशि सफल आवेदकों ने निर्धारित समय के भीतर ही जमा कर दी. आरोप यह है कि मंत्री ने बोली लगाने वालों और कुछ बिचौलियों के साथ मिलीभगत की तथा नीलामी प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से संचालित नहीं की. चूंकि लाइसेंस जारी करने में काफी घालमेल हुआ था, इसलिए सीबीआई और आयकर विभाग सहित अनेक विभागों ने इसकी जांच शुरू कर दी. आयकर विभाग ने एक बिचौलिया महिला के साथ मंत्री की बातचीत टैप कर ली और पाया कि लाइसेंस की पूरी प्रक्रिया ही फर्जी थी. यह बिचौलिया अनेक कंपनियों के लिए काम कर रही थी.

 

अनुमान है कि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले से ए राजा ने देश के खजाने को एक लाख करोड़ रुपये की चपत लगा दी. पूरे मामले पर निगाह रखने वाले प्रधानमंत्री ने संचार मंत्री से कहा कि उनकी अनुमति के बगैर 2जी स्पेक्ट्रम मामले में फैसला न लें. किंतु मंत्री ने प्रधानमंत्री के निर्देश को ठेंगा दिखा दिया. टेलीफोन की टैपिंग से पता चलता है कि केंद्रीय मंत्री का व्यवहार इस हद तक संदिग्ध था कि सरकार आश्वस्त हो गई कि इसकी जांच होनी चाहिए. कर अधिकारियों और सीबीआई द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य आपराधिक मामला चलाने के लिए पर्याप्त थे, किंतु इसके लिए पहला कदम तो यही था कि आरोपी मंत्रियों को मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखाया जाता.

 

गठबंधन के प्रमुख घटक की नाराजगी को देखते हुए प्रधानमंत्री ऐसा करने के इच्छुक नजर नहीं आते. एक अन्य मंत्री एमके अलागिरी भी मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखाए जाने लायक हैं. इस मंत्री को न तो मंत्रालय में और न ही संसद में देखा गया है. गत नवंबर को लोकसभा में खाद और बीजों की तंगी पर बहस के दौरान मंत्री की गैरहाजिरी पर काफी बवाल हुआ था. हाल ही में संपन्न हुए बजट सत्र के दौरान भी मंत्री की अनुपस्थिति पर दोनों सदनों में भारी हंगामा हुआ था. सरकार ने बताया था कि मंत्री बाहर गए हुए हैं.

 

संसद की खुली अवमानना करते हुए मंत्री 17 अप्रैल को ही छुट्टी मनाने मालदीव रवाना हो गए थे, जबकि 15 अप्रैल से बजट सत्र शुरू हो चुका था. कांग्रेस का कोई भी मंत्री इतना दुस्साहस नहीं कर सकता था. द्रमुक के अलागिरी जैसे मंत्री जानते हैं कि सरकार का अस्तित्व उनके समर्थन पर टिका है. इसलिए वे प्रधानमंत्री की अवमानना करते हैं और ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे वे तमाम कायदे-कानून से ऊपर हों. मंत्री के संसद से गैरहाजिर रहने से खुद संसद की अवमानना हुई है.

 

गठबंधन सहयोगियों के मंत्रियों के मामले के विपरीत कांग्रेस के मंत्रियों के संबंध में प्रधानमंत्री जरा भी लाचार और लचर नजर नहीं आते. ट्विटर पर टिप्पणियों के कारण शशि थरूर को सार्वजनिक फटकार लगाई गई थी. इसके बाद सुनंदा पुष्कर और आईपीएल प्रकरण में थरूर को चलता कर दिया गया. ऐसे मामलों में त्वरित न्याय की कांग्रेस की परंपरा रही है, खासतौर पर तब जब इस प्रकार के विवादों का केंद्र गांधी-नेहरू परिवार का सदस्य न हो. किंतु जब गठबंधन के सहयोगी दलों के मंत्रियों से निपटने का मामला सामने आता है तो प्रधानमंत्री कमजोर और लाचार हो जाते हैं. इसका स्पष्ट कारण है कि उनकी पहली प्राथमिकता लोकसभा में बहुमत सिद्ध करने की रहती है.

 

यह गठबंधन राजनीतिक का सबसे नकारात्मक पहलू है. अगर हम चाहते हैं कि कार्यपालक संसद के प्रति जवाबदेह रहें तो हमें राजा व अलागिरी जैसे मंत्रियों को पद का दुरुपयोग करने और मंत्रियों व संसद की मर्यादा गिराने से रोकने के लिए कुछ उपाय करने होंगे. यह तभी संभव है जब लोकसभा और राज्यसभा के पीठासीन अधिकारी इस प्रकार के मंत्रियों को संसद के प्रति जवाबदेह बनाने के लिए कदम उठाएं. लोकसभा के स्पीकर और राज्यसभा के चेयरमैन के समझदारी भरे रुख के कारण ही प्रधानमंत्री छोटी पार्टियों के अत्याचार से बच सकते हैं और गठबंधन के अधर्म का अंत हो सकता है.

Source: Jagran Yahoo

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