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यूपी को विकास की नई ऊंचाइयों तक ले जाते हैं,
चलो आज मिलकर कल बनाते हैं।
जब यूपी की प्रगति पूरे देश को महकाती है,
फिर क्यों नहीं सूबे के हर घर, हर दरवाजे को खटखटाती है,
हम जो आपस में हिम्मत की इक गांठ बना लें,
एकजुट हों, ख्वाहिशों को दो कदम चला दें,
अपने यूपी की एक नई शक्ल बनाते हैं,
चलो आज मिलकर कल बनाते हैं………….
प्रिय पाठकों,
देश का सबसे अधिक आबादी वाला राज्य उत्तर प्रदेश जिसने देश को कई काबिल प्रधानमंत्री दिए आज अपने अस्तित्व और अपनी पहचान को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है। 403 विधानसभा क्षेत्रों और 80 संसदीय क्षेत्रों वाले राज्य उत्तर प्रदेश को योजना आयोग द्वारा बीमारू (बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर-प्रदेश) राज्यों की श्रेणी में रखा है, जिन्हें विकास और प्रगति की नितांत आवश्यकता है।
भारत की राजनीति की दशा को परिवर्तित करने वाले उत्तर प्रदेश के सामने आज कई बड़ी चुनौतियां सिर उठाए खड़ी हैं। यूं तो उत्तर प्रदेश एक कृषि प्रधान राज्य है और इसकी लगभग 63 प्रतिशत आबादी आज भी कृषि पर ही निर्भर है लेकिन फिर भी इसे पंजाब, हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे राज्य चुनौती दे रहे हैं जिसे नजरअंदाज किया जाना नासमझी ही होगी। वहीं दूसरी बड़ी चुनौती है जोत का आकार लगातार घटते जाने की।
विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तर-प्रदेश की दशा सुधारने के लिए लगभग 16,700 अरब के तात्कालिक निवेश की दरकार है। इतना ही नहीं, 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान उत्तर प्रदेश की आर्थिक विकास दर को 10 प्रतिशत प्रतिवर्ष के निर्धारित लक्ष्य की रफ्तार देने के लिए औद्योगिक क्षेत्र में 11.2 फीसदी और सेवा क्षेत्र में 11.9 फीसदी विकास दर को भी हासिल करना होगा जो अपने आप में किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है।
बढ़ती आबादी को देखते हुए राज्य का बुनियादी ढांचा कमजोर और असफल साबित होता जा रहा है। राज्य के नागरिकों के सिर पर छत मुहैया करवाने के लिए भी 24 लाख आवासीय इकाइयों की दरकार है। इतना ही नहीं इतने बड़े प्रदेश के नगरीय निकायों में पेयजल, सीवरेज व सफाई, कूड़ा प्रबंधन, नगरीय यातायात, मार्ग प्रकाश, बस रैपिड ट्रांसपोर्ट प्रणाली और ई-गवर्नेन्स को सुदृढ़ बनाना भी अपने आप में एक टेढ़ी खीर है।
उत्तर-प्रदेश में स्वास्थ्य हालातों को सुधारने के लिए लगभग 8,000 नए अस्पताल बनाए जाने चाहिए। आबादी ज्यादा होने का अर्थ कई बड़ी परेशानियों के साथ भी जोड़ा जा सकता है। एक अनुमान के अनुसार दिनोंदिन घटते पर्यावरणीय संतुलन को बचाने के लिए प्रदेश में सघन वृक्षारोपण की आवश्यकता है।
जरूरत तो बहुत है लेकिन यह सब कब संभव हो पाएगा यही उत्तर-प्रदेश की सबसे बड़ी विडंबना है।
विकास और प्रगति की बाट जोह रहे उत्तर-प्रदेश से संबंधित निम्नलिखित प्रश्न हमारे सामने प्रस्तुत हैं जिनका जवाब ढूंढ़ना वर्तमान समय की मांग है, जैसे:
1. क्या वास्तव में उत्तर प्रदेश के अंदरूनी हालात इस कदर खराब हैं जितना कि तमाम सरकारी और गैर-सरकारी एजेंसियों द्वारा प्रचारित किया गया है?
2. राजनीतिक दृष्टि से उत्तर प्रदेश का स्थान हमेशा अहम रहा है तो ऐसे में इस राज्य को असंतुलित दर्शाना कोई राजनैतिक हथकंडा तो नहीं है?
3. उत्तर-प्रदेश की आबादी दिनोंदिन बढ़ती जा रही है और बढ़ती आबादी के लिए सुविधाएं मुहैया करवाना बहुत कठिन काम है, ऐसे में क्या उत्तर-प्रदेश कोबीमारू श्रेणी से बाहर निकाल पाना संभव है?
4. उत्तर प्रदेश की आर्थिक-आधारिक संरचना को कैसे दुरुस्त किया जा सकता है?
5. क्या उत्तर प्रदेश को भारत के आर्थिक मानचित्र पर सुदृढ़ किए बगैर सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से उच्च प्रतिष्ठित करवाया जा सकता है?
6. विकास के विभिन्न आयामों में से कौन से आयाम को सर्वप्रथम प्राप्त किया जाना चाहिए?
जागरण जंक्शन मंच अपने सभी सम्मानित पाठकों और ब्लॉगरों से इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करने का आह्वान करता है। देश के दूसरे सबसे बड़े राज्य की वर्तमान स्थिति और परिमार्जन की आवश्यकता पर अपने विचार रखने के लिए आप अपना स्वतंत्र ब्लॉग या ब्लॉग श्रृंखला बना सकते हैं। आप चाहे तो कमेंट के माध्यम से भी अपनी राय और सुझाव दूसरे पाठकों के साथ साझा कर सकते हैं। यदि आप अपना स्वतंत्र ब्लॉग प्रस्तुत कर रहे हैं तो शीर्षक के साथ डैश देकर Forum अवश्य लिखें।
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