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जिज्ञासा मन में उठती है तो उठने दो…..! क्या करें, क्या न करें का उहा पोह…………! अंततः एक फैसला ले लिया. परिणाम, पूरी जिंदगी अभिभावक और स्वयं का मानसिक संत्रास. ऐसा क्यों होता है? सही समय पर शिक्षा संबंधी पर्याप्त जानकारी का उपलब्ध न होना. पाठ्यक्रम, संस्थान तथा उसकी उपयोगिता और भविष्य की जानकारी अभिभावक और बच्चे को नहीं मिल पाती. तकनीकी उन्नति और पत्रपत्रिकाओं, सूचनाओं के मात्रात्मक वृद्धि से भी उपर्युक्त समस्या का समाधान कहाँ हो पाया? अलग-अलग उपलब्ध सूचनायें एकत्रित कैसे करें और उसका आशय कैसे निकालें आदि….आदि….
समय बीतने के बाद बच्चा कहता है कि यदि फला कोर्स फला संस्था से करता तो मेरे रूचि का होता और मुझे करियर बनाने में सफलता मिल जाती. अभिभावक माथे पर हाथ रखकर सोचता है कि काश! उस समय इतनी जानकारी मिल गयी होती तो बच्चे के साथ बुरा नहीं होता. मेरा अनुभव बताता है कि आधे से अधिक बच्चे सही समय पर कोर्स और संस्थान की जानकारी न होने के कारण अपनी रूचि की पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं. और ताउम्र पश्चाताप करते हैं……….
उपरिलिखित समस्याओं का समाधान हमें ढूँढना होगा. समाधान भी ऐसा होना चाहिए जिससे समाज के अधिकतम लोगों को फायदा मिले. शिक्षा से जुड़े लोग………….नहीं..नहीं………..शिक्षा से तो सभी लोग जुड़े हैं. समाज का प्रत्येक व्यक्ति इसमें भागीदार है. अतः सभी से गुजारिश है कि आप सब बताएं कि ऐसी समस्या वास्तव में कितनी है और इसका क्या उपाय आप सभी सोचते हैं. समस्या को प्रकाशित कीजिये………बहस कीजिये……..समाधान जरूर निकलेगा.
संपादक-करेंट अफेयर्स, एम.एम.आई. ऑनलाइन
English Translation: The Problem of Choice
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