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वो जिसे ज़िंदा जलाया गया ईमानदार…निष्कपट रहा होगा इसकी गारंटी उसके सिवा कोई नहीं ले सकता था। कस्बों और जिलों में पत्रकारिता के नाम पर जो किया जा रहा है वह भी अधिकांश लोगों से छिपा नहीं है। इन सबके बावज़ूद जिन परिस्थितियों से उसे गुजरना पड़ा उसकी भयावहता का अंदाजा केवल उन्हें ही हो सकता है जो स्वयं उन परिस्थितियों से गुजरे हों। इसके अलावा निश्चित है कि कोई नहीं!
इस स्थिति की कल्पना मात्र ही रूह कँपाने के लिए काफी है कि कोई किसी को पकड़े, पीटे और मरने के लिए जलता हुआ छोड़ दे। भयावहता की सीमा का तब और विस्तार हो जाता है जब मारने और मरने के लिए जलता हुआ छोड़ देने वालों में वर्दीधारी भी हों, जिनके जिम्मे संविधान की रक्षा हो!
जिसे जलाया गया वह पत्रकार रहा होगा, जो मरा वह इंसान था। जिसने गुंडे-पुलिस भेजे, मारा और जलाया वह भी इंसानी बिरादरी का ही था। क्या इंसान इतना जहरीला हो सकता है कि वह अपने जैसे किसी हाड़-माँस वाले को मरने के लिए जलता हुआ छोड़ दे?
आठ सौ साल पहले 15 जून के दिन ही हमने तय किया कि कानून सबसे ऊपर रहेगा, पर अफ़सोस कि 21 सदी में भी पूँजी, व्यवसाय और राजनीति का गठजोड़ कानून को नंगा कर नचाते आ रहा है। समाज में रह कर यह तमाशा देखने वाले उन लोगों को धिक्कार जो चुप हैं हैवानियत के ऐसे नंगे नाच पर! धिक्कार उन कानून पसंद लोगों को भी जिनकी मज़बूरियों ने उनके लबों पर खामोशी का ताला लटका दिया है। पत्रकारिता, राजनीति, कानून और गुंडागर्दी समाज की ही उपज है। इसलिये समाज ही अपने जीने के तरीके तय कर सकता है?
सच्चाई उजागर करने वाले जागेंद्र सिंह और उन जैसे पत्रकारों की पिटायी और हत्या पर आप अपनी चुप्पी जागरण जंक्शन के माध्यम से तोड़ सकते हैं। इस मसले पर आप अपने मनोभाव और अनुभव टाइप कर लाखों लोगों तक पहुँचा सकते हैं।
नोट: अपना ब्लॉग लिखते समय इतना अवश्य ध्यान रखें कि आपके शब्द और विचार अभद्र, अश्लील और अशोभनीय ना हों और किसी की भावनाओं को चोट ना पहुँचाते हों।
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