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सोचिए, आपका सबसे बड़ा सपना पूरा हो गया और आप अपनी खुशियां बांटने के लिए अपने सबसे अच्छे दोस्त के घर जा पहुंचते हैं. उससे मिलकर आप इतने खुश हो जाते हैं कि आप अपने दोस्त को जर्बदस्ती मिठाई खिलाते ही जाते हैं. ज्यादा मिठाई खाने से आपके दोस्त की तबियत बिगड़ जाती है और वो पहुंच जाता है अस्पताल.
इस काल्पनिक घटना को सुनकर शायद आप में से कुछ लोग मुस्कुराकर मजाक ही समझेंगे, लेकिन इस घटना का भाव ये है कि कभी-कभी हम अपनी खुशियों में इतने मग्न हो जाते हैं कि हमें पता ही नहीं चलता कि हमारी खुशियों का बोझ दूसरों के लिए कितना खतरनाक साबित हो सकता है.
ये बिल्कुल वैसी ही बात है जैसे दीवाली के जोश में अक्सर हम होश खो बैठते हैं. आतिशबाजी और पटाखों के शोर में हम अपने आसपास के उन लोगों को अनदेखा कर देते हैं, जिनके लिए पटाखों का शोर और प्रदूषित हवा किस्तों में मौत लेकर आ सकती है.
हर साल दीवाली पर प्रदूषण, शोर जैसे ही मुद्दे सुनाई पड़ते हैं, लेकिन कितनी हैरानी की बात है कि दीवाली पर प्रदूषण का ये मुद्दा सिर्फ किताबों तक सिमटकर रह गया है.
दीवाली पर प्रदूषण का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दीवाली के अगले दिन अधिकतर लोगों को सांस लेने में परेशानी होने के साथ सेहत से जुड़ी कई तरह की परेशानी घेर लेती है.
पटाखों के शोर और धुएं से होने वाले प्रदूषण से नवजात बच्चे, बुजुर्ग लोग और जानवर प्रभावित होते हैं.
आपको जानकर हैरानी होगी कि दीवाली के बाद अस्पतालों में अचानक दिल के मरीजों की संख्या बढ़ जाती है. वहीं दूसरी तरफ हवा में भी प्रदूषकों की मात्रा बढ़ जाती है.
हमारी खुशियां हमारे पर्यावरण और मानव जीवन पर बहुत भारी पड़ती है. ऐसे में पटाखे मुक्त दीवाली मनाने से दीवाली का उत्साह बिल्कुल भी कम नहीं होता. आप इस विषय पर क्या सोचते हैं? क्या पटाखे मुक्त दीवाली सम्भव नहीं है? दीवाली और प्रदूषण पर आपकी क्या राय है? आप इस विषय पर अपने विचार ‘जागरण जंक्शन’ के मंच पर शेयर कर सकते हैं.
नोट : अपना ब्लॉग लिखते समय इतना अवश्य ध्यान रखें कि आपके शब्द और विचार अभद्र, अश्लील और अशोभनीय न हो तथा किसी की भावनाओं को चोट न पहुंचाते हो.
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