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इस नवरात्रि समाज के दोहरे मापदंड की बेड़ियों को भी तोड़ डालिए

Jagran Junction Blog
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वो खुद को मां काली का सबसे बड़ा भक्त समझता है. काली मां के मंदिर जाए बिना कोई काम नहीं करता, लेकिन जब शादी के लिए उसके लिए सांवली लड़की का रिश्ता आया, तो उसने उसके रंग की वजह से रिश्ते से साफ इंकार कर दिया.’ उसके इस दोहरे चरित्र को देखकर खुद काली मां के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई, ‘एक व्यंग्यभरी मुस्कान.’


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आधुनिक समय में ऐसी दोहरी मानसिकता के न जाने कितने ही लोग आपको मिल जाएंगे, जो एक तरफ धर्म की विभिन्न रीतियों को पूरे श्रद्धाभाव के साथ निभाते हैं और दूसरी तरफ जीवन को व्यावहारिकता के तराजू में तोलते हैं.



जैसे, दोहरी मानसिकता के शिकार लोग, एकतरफ तो नौ दिन के नवरात्रों का व्रत रखते हैं और दूसरी तरफ भीड़ में चलती किसी लड़की को छेड़ने या छूने से कोई परहेज नहीं करते, वहीं कुछ लोग अष्टमी-नौवी को कन्या पूजन करते हैं लेकिन वंश बढ़ाने के लिए चाहते हैं कि घर में बेटा ही पैदा हो और भ्रूणहत्या का कारोबार यूं ही फलता-फूलता रहता है. वहीं खुद को धार्मिक और दानी बताने वाले लोग मंदिरों में लाखों रुपए का दान दे देते हैं लेकिन अपने बेटे की शादी के वक्त दहेज लेने में उन्हें कोई गुरेज नहीं होता. कई बार तो लड़की के पिता पर घर बेचने तक की नौबत आ जाती है.


समाज ऐसे ही दोहरे मापदंडों से भरा हुआ है. आज के युग में नवरात्रि का पूजन करने से पहले हम सभी के लिए नवरात्रि का वास्तविक मर्म समझना बहुत जरूरी है. दीए में ज्योत जलाने से पहले हमें अपने मन में सच्चाई की ज्योत जलानी होगी, माता वैष्णो के नौ अवतार पूजने से पहले स्त्री के हर रूप की इज्जत करनी सीखनी होगी. माता को पूजा के फूल और पूजन समाग्री अर्पण करने से पहले महिलाओं को उनका अधिकार देना होगा, तब कहीं जाकर नवरात्र का वास्तविक अर्थ सार्थक हो पाएगा.


आइए, इस नवरात्रि हम मां शक्ति की आराधना करने से पहले, जाने-अनजाने दोहरे चरित्र में फंसे इस जाल से बाहर निकलें. जरा सोचिए, आप जिस मां वैष्णो की पूजा करते हैं, स्त्री भी उन्हीं का रूप है.


नवरात्र और स्त्री पर थोपे हुए समाज के दोहरे मापदंडों पर आप अपने विचार ‘जागरण जंक्शन’ मंच के साथ सांझा कर सकते हैं. साथ ही इन मापदंडों और जर्जर पड़ चुकी बेड़ियों को कैसे तोड़ा जा सकता है, इस पर भी आप प्रकाश डालें.


नोट : अपना ब्लॉग लिखते समय इतना अवश्य ध्यान रखें कि आपके शब्द और विचार अभद्र, अश्लील और अशोभनीय न हो तथा किसी की भावनाओं को चोट न पहुंचाते हो.

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