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हाल ही में इच्छामृत्यु पर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वह देश में निष्क्रिय इच्छामृत्यु की इजाजत देने वाला कानून बनाने की दिशा में काम कर रही है. सरकार के इस फैसले से इच्छामृत्यु पर चल रही दशकों पुरानी बहस एक बार फिर से चर्चा में आ गई है.
भारत में सक्रिय और निष्क्रिय इच्छामृत्यु पर हमेशा बहस होती रही है लेकिन आज भी लोग इस दोनों प्रकार की इच्छामृत्यु के बारे में पूरी जानकारी नहीं रखते. इच्छामृत्यु का मतलब किसी गंभीर और लाइलाज बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को दर्द से मुक्ति दिलाने के लिए डॉक्टर की सहायता से उसके जीवन का अंत करना है.
इच्छामृत्यु को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है. सक्रिय इच्छामृत्यु में लाइलाज बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के जीवन का अंत डॉक्टर की सहायता से उसे जहर का इंजेक्शन देने जैसा कदम उठाकर किया जा सकता है. सक्रिय इच्छामृत्यु को भारत सहित दुनिया के ज्यादातर देशों में अपराध माना जाता है.
जबकि निष्क्रिय इच्छामृत्यु में लाइलाज बीमारी से पीड़ित व्यक्ति जोकि लंबे समय से कोमा में होकर रिश्तेदारों की सहमति से डॉक्टरों द्वारा जीवन रक्षक उपकरणों के बंद होने से उसके जीवन का अंत किया जाता है.
7 मार्च 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने भारत में निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति दे दी थी. यह फैसला 42 वर्ष तक कोमा में रहने वाली मुंबई की नर्स अरुणा शानबाग को इच्छामृत्यु दिए जाने को लेकर दायर याचिका के बाद दिया गया था.
दूसरी तरफ भारत में ‘जीवन जीने के अधिकार’ की पैरवी करने वाला बुद्धिजीवी वर्ग इच्छामृत्यु के प्रति आपराधिक दृष्टिकोण रखते हैं. उनका मानना है कि इस तरह से किसी पीड़ित की मर्जी जाने बिना केवल उसके रिश्तेदारों और डॉक्टर की सहमति पर किसी की जान लेना हत्या है क्योंकि पीड़ित व्यक्ति इस अवस्था में नहीं होता कि अपनी राय जाहिर कर सके.
ऐसे में इच्छामृत्यु के मुद्दे पर दो तरह की विचारधाराएं देखने को मिल रही हैं. इस बारे में आपकी राय क्या है? क्या आप इच्छामृत्यु को भारत में लागू करने को सही मानते हैं या फिर इस कानून के बनने से जीवन जीने के अधिकार का उल्लंघन होगा?
आप अपने विचार ‘जागरण जंक्शन’ के मंच के साथ सांझा कर सकते हैं.
नोट : अपना ब्लॉग लिखते समय इतना अवश्य ध्यान रखें कि आपके शब्द और विचार अभद्र, अश्लील और अशोभनीय न हो तथा किसी की भावनाओं को चोट न पहुंचाते हो.
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