
Posted On: 6 Sep, 2012 Others में
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हिंदी का प्रचार-प्रसार और उसका सर्वस्वीकृतिकरण क्या केवल एक भावनात्मक मुद्दा रह गया है? हिंदी के उत्थान की कसमें अंग्रेजी में खाई जाती हैं तो ये काफी हास्यास्पद होने के साथ बहुत ही वेदना उत्पन्न करने वाला सिद्ध होता है। “हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में कैसे प्रतिष्ठित कराया जा सकता है?” इस पर अब सभी हिंदी प्रेमियों को गहन चिंतन करना ही होगा।
प्रिय पाठकों,
14 सितंबर, 1949 को भारतीय संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी भाषा को अखण्ड भारत की प्रशासनिक भाषा के ओहदे से नवाजा था। यही वजह है कि हर वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। लेकिन आज देश की यही राज भाषा स्वयं अपने अस्तित्व की तलाश कर रही है। अंग्रेजी के प्रसार-प्रचार ने मानों हिंदी से उसका अधिकार छीन लिया है।
कहने को तो लोग हिंदी को अपनी मातृ भाषा कहते हैं लेकिन युवा, जिन्हें हम देश का भविष्य कहकर भारी-भरकम जिम्मेदारी सौंप देते हैं, खुद हिंदी के महत्व को नकारता जा रहा है। उनके लिए हिंदी में बोलना अपने स्टेटस को कम करने जैसा है। यूं तो हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में लगभग सभी स्कूल, कॉलेजों में कोई ना कोई आयोजन किया जाता है, जिनमें भागीदारी निभाने वालों की संख्या नगण्य होती है, पर जब बोलचाल और पढ़ाई की बात आती है तो उनकी प्राथमिकता अंग्रेजी को ही जाती है।
हम चाहे इस बात को कितना ही नजरअंदाज क्यों ना करें लेकिन सच यही है कि हिंदी भाषा के औचित्य पर प्रश्न चिह्न स्वयं हमने ही लगाया है।
कुछ ही दिनों में हिंदी दिवस आने वाला है। इस मौके पर जागरण जंक्शन मंच अपने सभी सम्मानजनक ब्लॉगरों और पाठकों से हिंदी के घटते वर्चस्व और व्यक्तिगत तौर पर उसकी उपयोगिता जैसे विषय पर लिखने का आग्रह करता है। आप जंक्शन के मंच पर अपने स्वतंत्र ब्लॉग के माध्यम से हिंदी से जुड़े सभी पहलुओं पर प्रकाश डाल सकते हैं और अन्य ब्लॉगरों के साथ भी विचार विमर्श कर सकते हैं।
नोट: अपना ब्लॉग लिखते समय इतना अवश्य ध्यान रखें कि आपके शब्द और विचार अभद्र, अश्लील और अशोभनीय ना हों तथा किसी की भावनाओं को चोट ना पहुंचाते हों।
धन्यवाद
जागरण जंक्शन परिवार
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