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‘होली के मौसम में रंगों के सपने, सपनों के रंगों में भीगे सब अपने’. प्रेम और अपनेपन से सराबोर इस पंक्ति की तरह ही है रंग भरे होली का त्योहार. होली के विषय में एक बात हम सभी बचपन से सुनते आ रहे हैं कि ‘इस दिन दुश्मन भी गले मिल जाते हैं यानि सभी प्रकार के वैचारिक मतभेद और ऊंच-नीच आदि को भुलाकर लोग एक दूसरे के साथ मिलकर होली मनाते हैं’.
आधुनिक जीवनशैली में होली को मनाने के तरीकों में काफी बदलाव आ गया है. दूसरी तरफ होली की मूल भावना भी बदलती जा रही है. आधुनिकता का दम भरने वाले लोग आज एक-दूसरे से कटते जा रहे हैं. ऐसा लगता है जैसे निजी आरोप-प्रत्यारोप का एक स्याह दौर देश के भविष्य को चुनौती दे रहा है. कहीं ‘अभिव्यक्ति’ को लेकर असमंजस है तो कहीं ‘देशद्रोह-देशभक्ति’ के दायरों में मतभेद है. उसी तरह कुछ लोग धर्म और जाति के मुद्दे से ऊपर उठकर नहीं सोच पा रहे हैं. इन सब घटनाओं के पीछे वजह जो भी हो लेकिन इन बातों का परिणाम ये हुआ है कि देश एक बार फिर से हाशिए पर खड़ा दिख रहा है. ऐसा लगता है जैसे व्यक्ति जीवन और नैतिकता की मूल भावना को खोता जा रहा है.
जिसका असर कहीं न कहीं विभिन्न त्योहारों पर भी पड़ा है. आज त्योहारों पर दशकों पुराना वो मेलजोल और भाईचारा देखने को नहीं मिलता, जो पहले देश की पहचान हुआ करता था. ऐसे में होली मनाने का वास्तविक मर्म आंशिक ही कहा जा सकता है लेकिन हम सब यदि अपनी नकारात्मकताओं पर विजय पाकर, देश को होली के बहाने एक रंग में भिगोने का संकल्प कर लें तो कोई ताकत या होली के सही अर्थ को पूरा करने से हमें नहीं रोक सकती.
इसी तरह होली के बहाने यदि आप देश में चल रहे गैर जरूरी और सद्भावना विरोधी मुद्दों को भुलाकर, आपस में भाईचारे और मीठी बोली के साथ होली मनाने का संदेश देना चाहते हैं तो अपने विचार और सन्देश लेख के माध्यम से ‘जागरण जंक्शन’ के मंच पर साझा करें.
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