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Aam Aadmi Party: हर इम्तिहान को तैयार

मुद्दा
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हर इम्तिहान को तैयार

संजय सिंह

(मुख्य रणनीतिकार, आप)

हम यह अच्छी तरह समझते हैं कि लोकसभा चुनाव में पूरे देश भर में अपने उम्मीदवार खड़े करना हमारे लिए कोई मामूली चुनौती नहीं है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपनी जगह बनाने से यह चुनौती कई मामलों में बिल्कुल अलग भी है। यूं तो 309 जिलों में हमारा संगठन है। कुछ जिलों में ब्लॉक और गांव के स्तर पर भी हम अपना संगठन बना चुके हैं, लेकिन यह भी सच है कि अभी हमें देश के अधिकांश भाग में अपना संगठन खड़ा करना है। यह आसान काम नहीं।

दूसरी तरफ एक सच्चाई यह भी है कि देश की दो सौ से ज्यादा लोकसभा सीटों पर शहरी मतदाताओं का प्रभाव है। इन तक हमारी बातें पहले से ही पहुंचने लगी है और दिल्ली चुनाव के बाद जम कर चर्चा हो रही है। इन सीटों पर हमें दिल्ली के अनुभव का लाभ मिलेगा। दिल्ली चुनाव में बहुत से कार्यकर्ता अच्छी तरह प्रशिक्षित हो गए हैं। इस बार उनके अनुभव का फायदा उनके अपने क्षेत्र में लिया जाएगा।


हम देश भर में राज्य और जिला स्तरीय कार्यकर्ता सम्मेलन करने के अलावा प्रमुख सीटों पर बड़ी जनसभाएं करेंगे। दिल्ली चुनाव में भी हमने उम्मीदवार चयन की प्रक्रिया बहुत पहले शुरू कर दी थी। इसका फायदा हमें मिला। अब लोकसभा के लिए भी हमें उम्मीदवार चयन की प्रक्रिया अगले दो महीने में पूरी कर लेनी होगी। दिल्ली की ही तरह देश भर में हमारा पूरा जोर साफ-सुथरी छवि और जनाधार वाले उम्मीदवारों पर होगा। शराब और पैसे बांटने की राजनीति को चुनौती देने के लिए यह बेहद अहम कदम होगा।

कांग्रेस और भाजपा जहां राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ेंगी, आम आदमी पार्टी मुद्दों पर चुनाव लड़ेगी। भ्रष्टाचार के अलावा हम बिजली, पानी, चिकित्सा और शिक्षा के मुद्दों को पूरे देश में उठाएंगे। इस बार किसान और उनकी समस्या हमारी प्राथमिकता में रहेंगे। हम स्वराज की बात भी रखेंगे। इसके मुताबिक कानून बनाने, नीतियां बनाने और विकास की योजनाएं बनाने तक में जनता की भागीदारी होगी। डॉक्टर, मास्टर और दरोगा की ट्रांसफर-पोस्टिंग का फैसला मोहल्ला सभा में होगा। हमें पूरा यकीन है कि गांव की जनता इन बातों को समझने और स्वीकारने में शहरवालों से भी आगे निकलेगी।


आप जैसे और

आम आदमी पार्टी की तर्ज पर देश-दुनिया में अन्य कई संगठन काम कर रहे हैं। इनमें से कई संगठन राजनीति से सक्रिय रूप से जुड़कर जनहित से जुड़े मसलों पर काम कर रहे हैं। कुछ संगठन राजनीति में नहीं आए हैं लेकिन वे एक दबाव समूह बनाकर बाकायदा उन राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों का समर्थन करते हैं जो उनके एजेंडे को आगे बढ़ाने का काम करते हैं। एक नजर:

आंध्र प्रदेश में लोकसत्ता नामक एक जन आंदोलन की शुरुआत 1996 में शुरू हुई। देखते ही देखते इसका असर मुंबई सहित देश के अन्य हिस्से में भी दिखने लगा। लोकसत्ता ने अन्य संगठनों के साथ मिलकर राजनीतिक सुधार की दिशा में कई काम किए। मुंबई में ‘वोट जुहू’ और ‘वोट मुंबई’ अभियान के अलावा जागो रे! वन बिलियन वोट्स में भी इसकी अहम हिस्सेदारी रही। चुनी गई सरकार का छोटा मंत्रिमंडल रखना, सूचना के अधिकार के प्रति जागरुकता फैलाना, राजनीतिक चुनावी उम्मीदवारों द्वारा उनकी संपत्तियों और आपराधिक मामलों को सामने लाना जैसे अहम मसले इसके एजेंडे में रहे। लगातार इस दिशा में काम करते रहने के दौरान जब इस संगठन को लगा कि मौजूदा तंत्र और राजनीतिक संस्कृति में आमूलचूल बदलाव बिना राजनीति में कूदे नहीं लाया जा सकता तो 2006 में लोकसत्ता पार्टी का गठन किया गया। इसका गठन आंध्र प्रदेश के जाने माने एक्टिविस्ट और आइएएस जयप्रकाश नारायण ने किया। राजनीतिक दल बनने से पहले ही इसके पूरे आंध्र प्रदेश में साठ हजार से अधिक सदस्य बन चुके थे। 2008 में पहली बार इस पार्टी ने प्रदेश के विधानसभा उप चुनावों में भाग लिया। चार सीटों में से दो सीटों पर यह दूसरे स्थान पर रही जबकि जयप्रकाश नारायण ने अपनी सीट से जीत हासिल की। आज तमिलनाडु, कर्नाटक महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में इसकी मौजूदगी है।

टी पार्टी मूवमेंट

यह अमेरिका में चलने वाला एक राजनीतिक आंदोलन है। यह आंदोलन मुख्य रूप से सरकार द्वारा अपने खर्चों और कर में कटौती करके अमेरिका के राष्ट्रीय घाटे और बजट घाटे को कम करने की वकालत करता है। 2009 से इस आंदोलन ने राजनीतिक उम्मीदवारों का समर्थन और विरोध करना शुरू किया। इसका नाम बोस्टन टी पार्टी से लिया गया है। अमेरिका के इतिहास में यह एक महत्वपूर्ण घटना थी। 1773 के दौरान अमेरिका में चाय पर ब्रिटिश टैक्स लगा दिया गया। लिहाजा वहां के स्थानीय निवासियों द्वारा इसका उग्र्र विरोध किया गया।


सइरिजा

कोलीशन ऑफ द रेडिकल लेफ्ट- यूनीटेरी सोशल फ्रंट ग्र्रीस का एक लेफ्ट विंग राजनीतिक दल है। ज्यादातर लोग इसे इसके संक्षिप्त नाम सइरिजा से जानते हैं। इस गठबंधन में विभिन्न विचारों वाले निर्दलीयों, डेमोक्रेटिक, सोसलिस्ट और ग्र्रीन लेफ्ट समूहों जैसी विचारधारा के लोग शामिल हैं। 2012 के संसदीय चुनावों में यह ग्र्रीस की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। इस पार्टी की शुरुआत 2004 के प्रांतीय चुनावों से पहले की गई थी। इस गठबंधन में अलग-अलग ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और विचारधाराओं वाले राजनीतिक दल शामिल हैं, लेकिन देश और जनहित से जुड़े कई मसलों पर उनका राजनीतिक एजेंडा एक जैसा है। इनमें कोसोवो युद्ध, निजीकरण, सामाजिक और नागरिक अधिकार जैसे मसले शामिल हैं।

…………

आप बने खास

देश और दुनिया में परंपरागत तौर पर राजनीति करने वाली पार्टियां बहुत हैं। इन सभी दलों के जड़ में कहीं न कहीं जन आंदोलन का हाथ भी रहा है। यानी सभी राजनीतिक पार्टियों का उद्भव किसी न किसी आंदोलन के बाद ही हुआ है, लेकिन आम आदमी पार्टी की कार्यशैली इन सबसे हटकर है। यही रणनीति इसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में खास स्थान देती है। इस राजनीतिक दल के अस्तित्व में आने की पूरी कहानी पर एक नजर:


शुरुआत

कहानी की जड़े तो बहुत पुरानी हैं लेकिन घटनाक्रम में नया मोड़ देने वाला वक्त 2011 रहा। भ्रष्टाचार के खिलाफ लंबे अर्से से मुहिम चलाने वाले समाजसेवी अन्ना हजारे ने इस पर आर पार करने की ठानी। लिहाजा दिल्ली के जंतर-मंतर पर आमरण अनशन पर बैठे। उनके अनशन को अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाले संगठन इंडिया अगेंस्ट करप्शन का भी पूरा साथ मिला। भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए जन लोकपाल बिल को मांग को लेकर 2011 से लेकर 2012 तक कई बार अनशन किए गए। हालांकि इन अनशनों को हमारे राजनेताओं ने अनसुना कर दिया। एक तरह से उन्हें राजनीतिक दल बनाकर उचित तरीके से आने की पेशकश कर उनकी खिल्ली उड़ाई जाती रही।


मतभेद

अन्ना हजारे जन लोकपाल बिल को लेकर चलाए जा रहे आंदोलन को विशुद्ध गैर राजनीतिक बनाए जाने के पक्ष में थे, लेकिन अरविंद केजरीवाल का मानना था कि इस बिल के लिए वर्तमान राजनीतिक दलों से बातचीत में इस तरीके से कुछ निकलने वाला नहीं है। ऊपर से आंदोलन कमजोर करने वाली शक्तियां और प्रभावी हो जाएंगी। इसी दौरान इंडिया अगेंस्ट करप्शन संगठन ने सोशल साइटों के माध्यम से एक व्यापक सर्वे किया जिसमें आंदोलन के राजनीतिकरण किए जाने को व्यापक समर्थन मिला।


सहमति

राजनीति में उतरने के परस्पर विरोधी फैसले पर अन्ना और अरविंद के बीच 19 सितंबर 2012 को सहमति हुई।  राजनीति में आने के अरविंद केजरीवाल के समर्थन में आंदोलन से जुड़े कई दूसरे लोग भी आए। इनमें प्रशांत भूषण और शांति भूषण भी शामिल थे। उधर अरविंद के फैसले से असहमति जताते हुए किरण बेदी और संतोष हेगड़े अन्ना के साथ ही रहे।


नई पार्टी

अरविंद केजरीवाल ने महात्मा गांधी के जन्मदिन के मौके पर दो अक्टूबर को नई पार्टी बनाने की घोषणा की। इस राजनीतिक दल का गठन 26 नवंबर को किया गया। संयोग से इसी दिन 1949 में भारतीय संविधान को अपनाया गया था। आम आदमी पार्टी का संविधान 24 नवंबर, 2012 को अपनाया गया। इसी के साथ 320 सदस्यों वाली राष्ट्रीय परिषद और 23 सदस्यीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी का गठन किया गया। मार्च, 2013 में इसे एक राजनीतिक दल के रूप में चुनाव आयोग ने पंजीकृत किया।


खासियत

एक साल पहले ही अस्तित्व में आई आम आदमी पार्टी ने मुख्यधारा की राजनीति करने वाली पार्टियों को कड़ी टक्कर देते हुए सियासी पहचान बनाने में जबरदस्त कामयाबी पाई है। पहचान की राजनीति से दूर, संरक्षणवाद, मध्यमार्गी संतुलन और वैचारिक दृढ़ता इसके उभार की कहानी को परिभाषित करते हैं :

सुशासन : आम आदमी पार्टी की केंद्रीय विचारधारा सुशासन का नारा है। इससे पहचान की राजनीति से यह मुक्त हो गई। इसके चलते यह किसी खास समुदाय से ताल्लुक रखने वाली पार्टी की पहचान से बच गई

संरक्षण : कांग्रेस के सत्ता में रहने की मुख्य वजह उसकी संरक्षणवाद की राजनीति रही है। इसीलिए शहरी और ग्रामीण गरीब लोगों की निष्ठा कांग्रेस की तरफ रही है क्योंकि इन लोगों को अपेक्षाकृत साधन संपन्न शहरी मध्य वर्ग की तुलना में संरक्षण की जरूरत महसूस होती रही है। अभी तक कांग्रेस के प्रतिनिधि आम आदमी के लिए राशन कार्ड बनवाने जैसे काम करते रहे हैं। अब आम आदमी पार्टी भी वही काम कर रही है


जुड़ाव : कोई कंपनी जिस तरह नए उत्पाद को लांच करती है उसी तरह आप ने लोगों की समस्याओं को पहचाना। इसने पाया कि बिजली की ऊंची दरें दिल्ली के निम्न मध्य वर्ग और गरीबों को सबसे ज्यादा प्रभावित कर रही हैं। जनता से जुड़े इस प्रकार के मसले उठाने के कारण इसकी खास किस्म की छवि बनी। पहचान की राजनीति से असंबंद्ध आप जैसी पार्टियां इस तरह की छवि के चलते सभी वोटरों से जुड़ पाती हैं

पहचान की राजनीति : बसपा, भाजपा जैसी इस तरह की पार्टियों को भी महसूस होता है कि उनको सभी वर्गों को साथ लेकर चलना होगा। आप के रणनीतिकारों ने पहले ही इस बात को समझ लिया। कई लोगों का कहना है कि लोकपाल आंदोलन अपने चरित्र में मध्यम वर्ग का था लेकिन आप ने अमीर और गरीब दोनों ही तबके को जोड़ने में सफलता अर्जित की। इसके लिए उसने आम आदमी का नारा दिया

विचारधारा का सवाल : आप की एक बड़ी खूबी यह है कि इसमें विभिन्न विचारधाराओं का मिश्रण हैं। प्रशांत भूषण से लेकर कुमार विश्वास तक विचारधाराओं के व्यापक फलक का नेतृत्व करते हैं। भारतीय समाज विचारधारा के स्तर पर मध्यमार्गी (सेंट्रिस्ट) रुख रखता है। इस खूबी की झलक आप में दिखती है। उसमें धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और नव-उदारवादी विचारों का प्रतिबिंब दिखता है|


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