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Aam Aadmi Party: नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी

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नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी

प्रो पुष्पेश पंत

(प्रो जेएनयू)

दिल्ली में आम आदमी की सहानुभूति व्यापक रूप से आप तथा अरविंद केजरीवाल के साथ थी लेकिन यह जरूरी नहीं कि सहानुभूति और समर्थन की यह लहर देर तक और दूर तक बनी रहे। ड़ा सवाल यह है कि क्या यह चमत्कार केजरीवाल के करिश्मे का है या अन्ना के उस जन आंदोलन की विरासत है जिसे ध्वस्त करने की साजिश में सभी राजनीतिक दल एकजुट नजर आए थे? यह सोचना कम तर्कसंगत नहीं लगता कि भ्रष्टाचार से त्रस्त आम आदमी ने आदर्शवाद के दौरे वाले झटके में आप को सरकार बनाने के इतने करीब पहुंचा दिया।


मतदाता ‘नये’ को एक मौका देने का जोखिम उठाने को तैयार होने लगा है यह तो निर्विवाद है पर क्या आप पार्टी को वास्तव में नया मान सकते हैं? क्या यह सच नहीं कि जहां भी-जिस किसी सूबे में कांग्र्रेस तथा भाजपा से इतर कोई विकल्प मतदाता के सामने दिखलाई दिया उसने उसी का वरण किया है चाहे वह अस्मिता की राजनीति करने वाला जातीय, स्थानीय-क्षेत्रीय दल हो या इन तथाकथित राष्ट्रीय दलों की ‘विचारधारा’ से अलग विचारधारा वाला कोई दल। असली सवाल यह है कि क्या आप देश भर में तीसरे विकल्प के रूप में उभर सकती है?


दिल्ली को पूरे देश के मतदाता का सूक्ष्मरूप नहीं समझा जा सकता। राजधानी का मिजाज और संस्कार गांव देहात ही नहीं, कस्बों और छोटे शहरों से भी भिन्न है। इसका विस्तार से बखान यहां जरूरी नहीं पर यह जोड़ने की जरूरत है कि दिल्ली के मतदाता के दोहरे गुस्से का विस्फोट इन नतीजों में नजर आया। राष्ट्रकुल खेलों के आयोजन से जुड़े भ्रष्टाचार से लेकर वसंत विहार सामूहिक दुष्कर्म तक केंद्र तथा दिल्ली सरकार की निर्लज्ज अकर्मण्यता और मदांध अहंकार ने नागरिकों को इस बात का अहसास कराया कि वह कितने निर्बल, असहाय, असुरक्षित एवं उत्पीड़ित, अपमानित हैं। अन्ना आंदोलन स्वत: स्फूर्त था या प्रायोजित, यह बहस अभी तय नहीं हो सकी है पर इस बारे में दो राय नहीं हो सकती कि कांग्र्रेस तथा संप्रग के कुकर्मों का घड़ा इतना भर चुका था कि उसका फूटना टाला नहीं जा सकता था। यह बात आंशिक रूप से ही सही है कि दिल्ली में भाजपा को भी जनादेश नहीं मिला है- जिस तरह कांग्र्रेस नेस्तनाबूद हुई है उसकी तुलना भाजपा के ‘हश्र’ से नहीं की जा सकती। भाजपा इस घड़ी दोबारा कमर कस रही है पर कांग्रेस की मायूसी लंबे समय तक दूर होने वाली नहीं। यह कहना नाजायज नहीं कि आम आदमी पार्टी को विजयश्री थाली में परोस कर देने का काम कांग्र्रेस ने किया है। लगता है कि थैली शाह, बाहुबली एवं  खुद को जन्मसिद्ध शासक समझने वाले पाखंडी और घमंडी हुक्मरानों को सबक सिखाने का फैसला मतदाता ने किया है। कांग्रेस तो इस वज्रपात के बाद यही सोच कर तसल्ली ले-दे रही है कि बिजली कड़ककर दो बार एक ही ठूंठ पर नहीं गिरती!


अपनी जिम्मेदारी से कतराने वाली मुद्रा से भी आप को नुकसान हो सकता है। कुछ लोगों को लगता है कि जीत के इतना करीब पहुंच कर भी सरकार न बना सकना उसके लिए सौभाग्य ही है। अन्यथा किए वादों को पूरा करने में असमर्थता के कारण जनता का मोहभंग और भी घातक हो सकता था। अन्ना के साथ आप के रिश्ते भी बुरी तरह उलझे हैं। इन हालातों में यह निष्कर्ष जल्दबाजी लगता है कि भारतीय जनतंत्र को नई-सही दिशा मिल गयी है।

…………

जिम्मेदारी से क्यों इन्कार

सुधांशु त्रिवेदी

(प्रवक्ता, भारतीय जनता पार्टी)

कांग्रेस के कुशासन और असफलता ने आम आदमी पार्टी को पनपने का मौका तो दिया लेकिन राष्ट्रीय क्षितिज  पर उभरने के लिए ‘आप’ को यह साबित करना होगा कि वह ‘मिशन’ के सिद्धांत से ऊपर उठकर अब ‘राजनीति’ के सिद्धांत पर बढ़ने के लिए तैयार है। फिलहाल जनमत ने उसे एक मौका दिया है लेकिन आप ऐसे परीक्षार्थी की तरह व्यवहार कर रही है जो उसमें शामिल होने से पहले ही फिर से परीक्षा की बात कर रही है। जनमत से भूमिका की मांग करने के बाद अब वह पीछे भाग रही है।


‘आप’ के उत्थान पर बहस के पहले इसकी जमीन को समझ लेना चाहिए। दरअसल केंद्र और राज्य की कांग्रेस सरकार ने ही कुशासन, अराजकता और संवैधानिक संस्थाओं पर हमला कर वह जमीन मुहैया कराई थी। आप के कार्यकर्ताओं ने उसका फायदा उठाया और यह साबित करने की कोशिश की कि पूरी व्यवस्था खराब है। जाहिर तौर पर दिल्ली के लोगों ने उन्हें समर्थन दिया तो इस आसरे ही वह व्यवस्था ठीक करेंगे। लेकिन अतिरेक में किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि विकल्प के रूप में आप को नहीं देखा गया। तीन राज्यों में भाजपा ने बहुमत की सरकार बनाई तो दिल्ली में व्यवस्था से त्रस्त जनता ने सबसे ज्यादा सीटें भाजपा को दी। हम बहुमत तक नहीं पहुंच पाए तो सरकार नहीं बना रहे है, लेकिन आप को तो कांग्रेस ने समर्थन की घोषणा कर दी है। फिर वह कर्तव्य निभाने से क्यों भाग रही है। जनता के विश्वास को इस तरह नहीं नकारा जा सकता है। समय का तकाजा है कि वह साबित करें कि अब वह मिशन से हटकर राजनीति के सिद्धांत पर काम करे।


राष्ट्रीय विकल्प बनने पर विचार करने से पहले आप को जनता के कई पैमानों से गुजरना होगा। दिल्ली में कर्तव्य पालन पहली चुनौती है। उसे विचारधारा आधारित संगठन बनना होगा। राष्ट्रीय मुद्दों पर उसकी अपनी विचारधारा को लोगों के सामने स्पष्ट करना होगा। उसे यह भी स्पष्ट करना होगा कि जन लोकपाल में आरोपियों को जांच से बाहर रखने वाले लोग जब स्टिंग आपरेशन में फंसे तो खुद ही जांच में कैसे शामिल हो गए। क्या उन्हें मीडिया की एक स्वतंत्र कमेटी बनाकर जांच के लिए नहीं कहना चाहिए था। यह दोहरा आचरण क्यों?


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