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बाबा का वार
गरममुद्दा, बड़ा समर्थन वर्ग फिर कहां चूक गए बाबा रामदेव! उनकी लड़ाई हालांकि जारी है। लोगों के मन में यह सवाल उठने लगे हैैं कि उन्होंने आखिर ऐसी क्या चूक कर दी कि उनके कुछ साथी ठिठक गए तो कुछ दूरी बनाने लगे? फरवरी में रामलीला मैदान से ही जब रामदेव ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेड़ी तो अन्ना हजारे, जीआर खैरनार, विश्वबंधु गुप्ता, डॉ सुब्रमण्यम स्वामी, स्वामी अग्निवेश समेत कई विख्यात लोग उनके साथ खड़े थे। चार जून आते आते कुछ दूर हो गए तो कुछ के मन में असमंजस घिरने लगा।
योगके जरिए करोड़ों के मन में श्रद्धा पा चुके बाबा के व्यापक समर्थक वर्ग को लेकर शायद ही किसी के मन में आशंका हो। यह उनकी सबसे बड़ी ताकत है। भ्रष्टाचार के खिलाफ उन्होंने जंग छेड़ी तो उनकी यह ताकत दिखी भी। शायद यही कारण है कि शुरुआती दिनों में सरकार घुटनों पर चलती उन्हें मनाने आई। पर रणनीतिक कमजोरी ने ताकत को कम कर दिया।
बाबाके पास अनुकरण तो था पर रणनीति नहीं थी। योग गुरू शायद यह आंकने में भूल कर गए थे कि राजनीतिक महत्वाकांक्षा उनके साथियों को अलग कर देगी। उनकी इसी घोषणा ने बाद में सरकार को भी मौका दे दिया। बाबा कैंप की खामी यह थी कि उनके पास कोई ऐसा लेफ्टिनेंट नहीं था जिसके सहारे बाबा सीधी वार्ता से खुद को दूर रख सकते। वर्ना आचार्य बालकृष्ण की चिट्ठी भी सरकार को आक्रामक होने का मौका नहीं देती।
गंभीरमुद्दे थे पर तैयारी नहीं थी। लिहाजा सरकार की राह आसान थी। माना जा रहा है कि पुलिस कार्रवाई ने उन्हें एक मौका दिया था जिसे उन्होंने गंवा दिया। समय थोड़ा और गुजरा तो उन्होंने फौज बनाने की बात कर साथियों को और दूर कर दिया। बाबा अपने भक्तों के अलावा समाज के दूसरे वर्गों को जोड़ने में असफल हो गए। लिहाजा मुद्दे तो है पर उनका नेतृत्व संकुचित हो गया। (आशुतोष झा)
गुप्त पत्र
सरकारऔर रामदेव के बीच बात बनते–बनते बिगड़ गई। दोनों पक्ष राजी थे। ऐन वक्त पर सरकार और रामदेव के बीच तीन तारीख को हुए गुप्त समझौते की चिट्ठी को केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने सार्वजनिक कर पूरी कहानी पलट दी
अपनी फौज
हरिद्वारपहुंचकर बाबा ने कहा कि वे 11 हजार युवक–युवतियों की फौज तैयार करेंगे, जिन्हें शस्त्र–शास्त्र की पूरी ट्रेनिंग दी जाएगी, क्योंकि रामलीला मैदान में होने वाली रावण लीला में अब मार नहीं खाएंगे
बालकृष्ण प्रसंग
दिल्लीके रामलीला मैदान की घटना के बाद से ‘गायब’ चल रहे आचार्य बालकृष्ण सात तारीख की शाम अचानक पतंजलि योगपीठ में प्रकट हो गए। बाद में पूछने पर वे इस सवाल का कोई जवाब नहीं दे सके कि वह तीन दिनों तक पतंजलि योगपीठ क्यों नहीं आए। उन्होंने इस बात का भी कोई जवाब नहीं दिया कि वह सात तारीख को पतंजलि कैसे पहुंचे।
अपनेभारतीय नागरिक न होने के मुद्दे पर सफाई देते हुए आचार्य बालकृष्ण ने साफ किया कि उनके माता–पिता नेपाली मूल के हैं, लेकिन उनका जन्म हरिद्वार में हुआ, सारी पढ़ाई–लिखाई भी यहीं हुई। वह अपने को जन्म और कर्म से भारतीय मानते हैं। उनका कहना है कि 1950 की भारत–नेपाल संधि के अनुसार भी वह भारतीय हैं। जो लोग इस मुद्दे को तूल दे रहे हैं, वे भारतीय संविधान का अपमान कर रहे हैं
दिग्विजय सिंह (कांग्रेस महासचिव)
रामदेव ठग हैं। उन्होंने पहले अपने गुरु को ठगा और अब बिना मेडिकल और आयुर्वेद की डिग्री के दवाएं बेचकर लोगों को ठग रहे हैं। अनशन का ड्रामा रचकर देश को ठगने की साजिश रच रहे थे, जिसे सख्ती ने विफल कर दिया। आचार्य बालकृष्ण अपराधी हैं। वह नेपाली हैं और भारत में बसने के लिए योग और आयुर्वेद का सहारा ले रहे हैं। इनके पासपोर्ट की जांच होनी चाहिए।
पी चिदंबरम (केंद्रीय गृह मंत्री)
सशस्त्र सेना बनाने के एलान से बाबा रामदेव का असली रंग और उद्देश्य सबके सामने आ गया है। उन्हें ऐसा करने तो दें, कानून उनकी खबर ले लेगा। बाबा का आंदोलन संघ प्रायोजित कार्यक्रम है।
अन्ना का प्रहार
अन्ना ने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का मुद्दा उठाया। यह काफी जटिल और तकनीकी मसला था। देश के सारे बड़े अर्थशास्त्री या कानूनविद् एकजुट हो कर लोगों को भरोसा दिलाते कि इस तरीके से देश से भ्रष्टाचार खत्म हो सकता है तो भी लोग संदेह करते। मगर अन्ना द्वारा सुझाए उपाय पर किसी को रत्ती भर संदेह नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि सरकारी व्यवस्था में लोकपाल नाम की एक एजेंसी होनी चाहिए। इसके लिए अलग से एक कानून बनाना पड़ेगा। और मैं बता रहा हूं कि यह कानून कैसा हो। देखते ही देखते देश के सबसे पढ़े-लिखे तबके के लोग इस मामूली से दिखने वाले शख्स के पीछे-पीछे चल रहे थे। लोगों को पता चला कि इसने पहले भी अपने इलाके में इस बीमारी का कामयाब इलाज किया है और लोगों को मूर्ख नहीं बनाया।
सरकारी व्यवस्था में लोकपाल नाम की एक एजेंसी हो या नहीं इस बारे में आम लोगों को इससे पहले बहुत मालूम नहीं था। कानून के मसौदे में सरकार से बाहर के लोगों की भूमिका के बारे में भी अपने देश में कभी सुना नहीं गया था। लेकिन लोग तुरंत साथ आ गए। लोगों को इस आदमी की ईमानदारी और जिद पर भरोसा था।
अन्ना को हर तबके का समर्थन जरूर मिला, लेकिन बाबा रामदेव जैसे शुरुआती साथी का अलग आंदोलन शुरू करना उन्हें एक कमजोर रणनीतिकार साबित कर गया। इसी तरह वे ईमानदार छवि वाले बहुत से दूसरे सामाजिक कार्यकर्ताओं और कई प्रतिष्ठित विशेषज्ञों को भी अपनी बातें नहीं समझा सके। उनके तरीके और फार्मूले से असहमत आवाजें लगातार आती रही हैं। साझा मसौदा समिति के गठन के रूप में अन्ना को शुरुआती कामयाबी भले मिली हो, लेकिन अभी बड़ी लड़ाई बाकी है। ऐसे में यह आम लोगों को तय करना होगा कि वे इस ऐतिहासिक मौके का फायदा उठा पाते हैं या फिर यह आंदोलन गैर-जरूरी सवालों और टकराव में उलझ कर टूट जाता है। (मुकेश केजरीवाल)
अन्ना के बदलते तेवर
9 अप्रैल, 2011
यह तो बस शुरुआत है। हम आश्वस्त हैं कि लोकपाल बिल का ड्राफ्ट समय पर तैयार कर लिया जाएगा और संसद में पास हो जाएगा
(अनशन को खत्म करने के बाद लोकपाल बिल को दोबारा ड्राफ्ट करने के लिए संयुक्त पैनल के गठन संबंधी एलान के बाद दिया गया बयान)
11 अप्रैल, 2011
यदि कपिल सिब्बल को लगता है कि लोकपाल बिल से कुछ नहीं होने वाला तो उनको संयुक्त कमेटी से इस्तीफा दे देना चाहिए
(लोकपाल के मसले पर मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल के बयान पर दी गई प्रतिक्रिया)
16 अप्रैल, 2011
हमारी मीटिंग बढ़िया रही। मीडिया के कारण ही हम यह सफलता प्राप्त करने में सफल रहे
(संयुक्त पैनल की पहली बैठक के बाद अन्ना हजारे की पहली प्रतिक्रिया)
5 जून, 2011
हम इस कार्रवाई की भत्र्सना करते हैं। इसके विरोध में हम एक दिन का अनशन करेंगे और छह जून की संयुक्त पैनल की बैठक में हिस्सा नहीं लेंगे
(रामदेव के खिलाफ पुलिसिया कार्रवाई पर बयान)
सीडी प्रकरण
एक सीडी विवाद ने सिविल सोसायटी सदस्यों में से पिता-पुत्र शांति भूषण और प्रशांत भूषण को विवाद के घेरे में ला दिया। इस सीडी में एक केस के सिलसिले में शांति भूषण, अमर सिंह और सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव की बातचीत का कथित ब्योरा था। इसी तरह नोएडा में भूषण परिवार को फार्म हाउस आवंटन के मसले पर भी लपेटने की कोशिश की गई। हालांकि भूषण परिवार ने आरोपों को खारिज किया।
12 जून को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “मुहिम के मसीहा” पढ़ने के लिए क्लिक करें
साभार : दैनिक जागरण 12 जून 2011 (रविवार)
नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.
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