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थोड़ा है ज्यादा की जरूरत

मुद्दा
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वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा कि ‘भारत एक बहुल और विविधता वाला देश है और यदि हमने सदियों से वंचित, उपेक्षित और गरीब तबके पर विशेष ध्यान नहीं दिया तो समाज के कई वर्ग पीछे छूट जाएंगे।’ लेकिन इस उपेक्षित तबके की तरफ जो बजटीय आवंटन के माध्यम से ध्यान दिया गया है, वह वर्तमान जरूरतों के लिहाज से नाकाफी है।

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सामाजिक सेवाओं मसलन शिक्षा, युवा कल्याण, खेल, स्वास्थ्य, जल आपूर्ति और सफाई इत्यादि पर पिछले साल की तुलना में खर्च में मामूली बढ़ोतरी की गई है। यदि इसको जीडीपी के लिहाज से देखा जाये तो इसमें 2012-13 (संशोधित अनुमान) के 1.7 प्रतिशत की तुलना में 2013-2014 में महज 1.9 (बजटीय अनुमान) प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है।

2013-14 में इन क्षेत्रों में कुल बजटीय खर्च जीडीपी के सात प्रतिशत के आस-पास है। सामाजिक क्षेत्र में यह खर्च विकसित और कई विकासशील देशों के औसत स्तर की तुलना में काफी कम है। उल्लेखनीय है कि ओईसीडी देशों में यह औसत जीडीपी का 14 प्रतिशत है।


सामाजिक सुरक्षा स्कीमों के लिहाज से केवल राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरबीएसवाई) के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। इसका दायरा बढ़ाते हुए कुछ अन्य श्रेणियों को इसमें शामिल किया गया है। नेशनल सोशल असिस्टेंस प्रोग्राम (एनएसएपी) के लिए बजटीय आवंटन पिछले साल के 8,382 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 9,541 करोड़ रुपये किया गया है। लेकिन इस मामूली बढ़ोतरी से लाभार्थियों का दायरा बढ़ने की गुंजाइश नहीं दिखती।

शिक्षा

इस क्षेत्र में कुल सार्वजनिक खर्च जीडीपी का 3.31 प्रतिशत है। जबकि कोठारी कमीशन ने जीडीपी का छह प्रतिशत खर्च किए जाने की अनुशंसा की है। इस बजट में शिक्षा पर कुल बजटीय आवंटन जीडीपी का 0.69 प्रतिशत किया गया है जो 2012-13 के संशोधित अनुमान (आरई) जीडीपी के 0.66 प्रतिशत की तुलना में मामूली रूप से बेहतर है। शिक्षा के अधिकार (आरटीई) एक्ट के क्रियान्वयन का जिम्मा सरकार के सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) पर है लेकिन इसके लिए बजटीय आवंटन पिछली बार की तुलना में महज 3,613 करोड़ रुपये बढ़ाया गया है। इसमें 2012-13 के 23,645 करोड़ रुपये के बजटीय आवंटन (आरई) की तुलना में 2013-14 में धनराशि को बढ़ाकर 27,258 करोड़ रुपये किया गया है। निर्धारित अवधि के भीतर आरटीई लक्ष्यों की प्राप्ति के लिहाज से यह नाकाफी है। स्पष्ट है कि इस तरह के अपर्याप्त बजटीय प्रावधानों से सभी  बच्चों की पढ़ाई का सपना दूर की कौड़ी ही साबित होगा।


नई राष्ट्रीय उच्च शिक्षा स्कीम लांच की गई है लेकिन उसके लिए भी महज 400 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है। हालांकि राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के लिए बजटीय प्रावधान पिछले साल के 2,423 करोड़ रुपये की तुलना में इस बार बढ़ाकर 3,124 करोड़ किया गया है लेकिन यह भी 12वीं पंचवर्षीय योजना में की गई सिफारिशों की तुलना में कम है।


स्वास्थ्य

2012-13 में इस क्षेत्र में सार्वजनिक खर्च जीडीपी का महज एक प्रतिशत था। वैश्विक दृष्टि से इस मामले में हम निचले पायदान पर खड़े हैं। केवल स्वास्थ्य मदों में भारी खर्चे के कारण हर साल लाखों लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीने को विवश होते हैं। लिहाजा स्वास्थ्य सुविधाओं का ढांचा सुधारना सरकार के समक्ष बड़ी नीतिगत चुनौती है। बजट में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के लिए 21,239 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। यद्यपि इस मिशन का दायरा बढ़ाने की रणनीतियों के लिहाज से उम्मीद थी कि इस बार कुल स्वास्थ्य बजट में एनएचएम के हिस्से के आवंटन में बढ़ोतरी होगी लेकिन उसके बजाय इसमें गिरावट दर्ज की गई। हालांकि महत्वाकांक्षी स्वास्थ्य इंश्योरेंस कार्यक्रम के तहत राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरबीएसवाई) शुरू की गई है। इसमें रिक्शा-चालकों, ऑटो और टैक्सी ड्राइवर समेत गरीबी रेखा से नीचे गुजर बसर कर रहे (बीपीएल) श्रेणी के 3.4 करोड़ लोगों को शामिल किया गया है।


पेयजल और स्वच्छता

शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिए सरकार ने 11वीं पंचवर्षीय योजना तक 1,45,000 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। हालांकि 2011 की जनगणना के मुताबिक 43.5 प्रतिशत लोगों के पास वाटर सप्लाई की सुविधा है। 11 प्रतिशत लोग कुएं से जल प्राप्त करते हैं।


42 प्रतिशत लोग हैंडपंप/ट्यूबवेल और 3.5 प्रतिशत लोग अन्य स्रोतों से जल प्राप्त करते हैं। दूसरी तरफ स्वच्छता के मामले में तस्वीर निराशाजनक है। 51.1 घरों में अभी भी शौच की सुविधाएं नहीं हैं। समाज के पिछले वर्गों की हालत तो इस मामले में और भी दयनीय है। इसके बावजूद इस बार ग्रामीण पेयजल और स्वच्छता के मामले में बजटीय आवंटन जीडीपी का महज 0.13 प्रतिशत किया गया है जो पिछले साल 0.14 प्रतिशत था। कुल मिलाकर मानव विकास के इन बुनियादी पहलुओं पर सरकार ने अपेक्षित आवंटन नहीं किया है।

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न दुनियावी न चुनावी


बाजीगरी

अब तो वित्तमंत्री पी चिदंबरम बहुत खुश होंगे। आखिर उन्होंने संप्रग-दो सरकार का आखिरी बजट पेश कर दिया है। वह भी इतनी कारीगरी से कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। यानी अपना मकसद भी पूरा हो जाए और किसी का बुरा भी न हो। महिला, युवा और गरीब को केंद्र में रखकर पेश इस बजट में अन्य सभी को साधने की विवशता और अर्थव्यवस्था को उबारने की मजबूरी ने कभी ड्रीम बजट पेश करने वाले चिदंबरम की इस पेशगी ने कमोबेश सभी को निराश किया है। सेंसेक्स में गिरावट इसका ताजा प्रमाण है।


बदहाली

हममें से 40 फीसद लोग अति गरीब हैं। उनकी बदहाली की दास्तां किसी से छिपी नहीं है। दिन भर कमाते हैं तो रात को भोजन का इंतजाम होता हैं। अन्यथा भूखे पेट सोने को विवश होना पड़ता है। ‘दिहाड़ी बजट’ वाले इन लोगों की बस इतनी हसरत है कि उनका और उनके परिवार के जीवन स्तर में सुधार आए।


खुशहाली

इस बजट में वित्तमंत्री ने कई अच्छी और सकारात्मक घोषणाएं की हैं। कई ऐसी भी हैं जिनमें दी गई राहत दिखती है लेकिन पीठ पीछे लगने वाली अप्रत्यक्ष चपत का अभी आभास नहीं है। लगने पर ही वह समझ में आएगी। महज 42,800 अमीरों पर टैक्स बोझ बढ़ाने से गरीबों का कितना भला होगा! उनका भला तब होगा जब भूख लगने पर पोषक भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके। रहने के लिए एक छोटा ही सही लेकिन स्वच्छ आवास मुहैया हो। ऐसे में बजट के माध्यम से गरीबों का अधिकाधिक कल्याण किया जाना हम सभी के लिए बड़ा मुद्दा है।

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