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माहौल का रुख तो उत्तर बंगाल की हवाएं तय करेंगी

मुद्दा
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विष्णु प्रकाश त्रिपाठी – बंगाल के एक बड़े हिस्से का तापमान उत्तर से बहने वाली बयार तय करती है। इसी उत्तर दिशा के पहाड़ों से उतर कर महानंदा, तीस्ता और पद्मा जैसी नदियां सूबे के मैदान को सराबोर करती हैं। पहले चरण के तहत 18 अप्रैल को उत्तर बंगाल में होने वाले मतदान का रुख काफी हद तक इस बात का आभास करा देगा कि इस राज्य में बदलाव की बातों में कितना दम है, कितना खम है।

बंगाल में इस वक्त काल बैसाखी का आलम है। ये आलम उत्तर और दक्षिण के रास्ते दबे पांव मुख्य बंगाल में दाखिल होता है। दिन में उमस भरी गर्मी शाम होते-होते अंधड़ और बारिश की बौछार ले आती है। अब देखना यही होगा कि राज्य के चुनावी माहौल में ये काल बैसाखी इफेक्ट कितना पुरअसर होता है? बंगाल विधानसभा में इस क्षेत्र का लगभग बीस फीसदी दखल है यानी कुल 294 सीटों वाले सदन में उत्तर बंगाल के हिस्से 54 सीटें आती हैं। अतीत में इस इलाके को कांग्र्रेस के प्रभाव वाला माना जाता है। तृणमूल-कांग्र्रेस महाजोट को इस इलाके से भरपूर उम्मीद की आस बंधी है। आस की बिनाह दो साल पहले हुए लोकसभा चुनाव के नतीजे हैं, जब एक साथ लड़ी दोनों पार्टियां सब पर भारी पड़ी थीं।

महाजोट की पूरी कोशिश इतिहास को दोहराने की है। वहीं वाममोर्चा का सोच है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव के पैमाने अलग-अलग होते हैं, इसलिए इन दोनों चुनावों को अलग-अलग पैमानों से आंकना चाहिए।

ऐसा तो वाम काडर भी मानता है कि अगर पिछला विधानसभा चुनाव तृणमूल और कांग्र्रेस ने मिलकर लड़ा होता तो तस्वीर कुछ अलग होती। आंकड़े भी कुछ यही बयान करते हैं। दोनों पार्टियों का मत प्रतिशत मिला कर देखें तो पिछले विधानसभा चुनाव में तृणमूल-कांग्र्रेस की सीटें 14 से बढ़कर दोगुनी हो सकती थीं। हां, ये बात अलग है कि पन्नों पर सांख्यिकी जो बोलती है, धरातल पर बिल्कुल वैसा नहीं होता। महाजोट को अपने बागी प्रत्याशियों से सबसे ज्यादा इसी इलाके में जूझना पड़ रहा है।

उत्तर बंगाल में पहाड़ का मूड अलग है। चाय बागान की महकती हरियाली से भरपूर दार्जिलिंग हिल्स, कर्सियांग और कलिंपोंग के अलावा डुआर्स की कमोबेश दो सीटों पर अलग गोरखालैंड का मुद्दा तारी है। यहां अपने-अपने तरीके से गोरखालैंड की लड़ाई लड़ रही गोरखाली पार्टियों के बीच जोर आजमाइश है, जिनमें गोरखा जन मुक्ति मोर्चा (गोजमुमो) और गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा ही प्रमुख हैं। आंकड़ों की बिसात पर गोजमुमो का पलड़ा भारी है। ये एक दिलचस्प तथ्य है कि लोकसभा चुनाव में गोजमुमो की बैसाखी के बूते दार्जिलिंग लोकसभा सीट जीतने वाली भाजपा पहाड़ के परिदृश्य में दूर दूर तक कहीं नहीं दिखती। राजस्थान से आकर लोकसभा चुनाव जीतने वाले जसवंत सिंह बंगाल से एकमात्र भाजपा सांसद हैं। उनका होना, एक तरह से नहीं होने के बराबर है। एक दिलचस्प तथ्य ये भी है कि विगत लोकसभा चुनाव में भाजपा का झंडा उठाने वाली पार्टी गोजमुमो ने शेष बंगाल के लिए ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्र्रेस को एकतरफा समर्थन का एलान कर रखा है और ममता बनर्जी ने समर्थन के इस एलान को तवज्जो तक नहीं दी है।

पहाड़ से अलग खालिस मैदानी इलाकों में महाजोट बनाम वाममोर्चा ही है। मुद्दा सिर्फ बदलाव है। चर्चा सिर्फ परिवर्तन का है। एक पक्ष परिवर्तन की जबर्दस्त वकालत कर रहा है तो दूसरा बदलाव की बातों को सिर्फ बतकही तक सीमित बता रहा है। वाममोर्चा काडर यानी मस्तान को अपने अस्तित्व की फिक्र है। ममता का यूथ ब्रिगेड अपनी नई भूमिका यानी संपूर्ण व्यवस्था में वाम काडर की जगह लेने को लालायित है। वैसे बदलाव की इस तरह की बातें 2001 के विधानसभा चुनाव में भी की जा रही थीं लेकिन तब के और अब के माहौल कुछ फर्क जरूर है। ज्योति बसु जैसे चेहरे और अनिल विश्वास जैसे रणनीतिकारों की गैरमौजूदगी के साथ ही वाममोर्चा की ऊपरी सतह के बिखराव का असर नीचे तक आना स्वाभाविक है। वहीं ममता के सामने सबसे बड़ी दिक्कत इलाकाई कांग्र्रेसी दिग्गजों का भरोसा हासिल करना और उन्हें हमकदम बनाना है।

सक्रिय राजनीति से अलग रहते हुए भी एक तबका जो परिवर्तन की उम्मीद लगाए बैठा है, उसकी उम्मीदों में कुछ किंतु-परंतु भी हैं। जैसे ममता बनर्जी के राजनीतिक-प्रशासनिक व्यवहार की अनिश्चितता और बहुमत हासिल होने की स्थिति में कांग्र्रेस के सरकार में शामिल होने के अनिर्णय की स्थिति। एक संशय उस अवसरवादी जुटान के आचरण को लेकर भी है जो मौके की नजाकत भांप वामपक्ष से नाता तोड़ तृणमूल-कांग्र्रेस महाजोट के खेमे का हिस्सा बन बैठा है। देखने वाली बात ये भी होगी कि वाममोर्चा की खेद प्रकाश के स्वर में क्षमा प्रार्थना नाराज-निराश होकर तटस्थ या विरोधी हो गए समर्थकों को वापस अपने घर लौटा लाने में कितनी कामयाब होती है?

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17 अप्रैल को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “पश्चिम बंगाल और सत्ता का खेल” पढ़ने के लिए क्लिक करें

साभार : दैनिक जागरण 17 अप्रैल 2011 (रविवार)
मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.

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