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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीतिक शाखा के रूप में जनसंघ से शुरू हुई भाजपा की राजनीतिक यात्रा बेहद उतार-चढ़ाव वाली रही है। काडर के रूप में पली-बढ़ी इस पार्टी की असली ताकत उसका संगठन है। संगठन के सारे सूत्र राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से आए प्रचारकों के हाथों में रहते है और इसी वजह से संघ का अप्रत्यक्ष, लेकिन प्रभावी नियंत्रण पार्टी पर रहता है। आंतरिक लोकतंत्र है, लेकिन पार्टी अनुशासन से बंधा। सत्ता का स्वाद चखने के बाद पार्टी के प्रबंधन तंत्र में संगठन का एकाधिकार टूटा है।
विचारधारा अभिन्न अंग
मौजूदा भाजपा अब जनसंघ के दिनों वाली पार्टी नहीं रही है। डेढ़ दशक पहले केंद्रीय सत्ता में आने के बाद पार्टी की चाल, चेहरा व चरित्र में बदलाव आया है। 1980 में ‘पार्टी विद डिफरेंस’ [सबसे अलग पार्टी] का नारा देने वाली भाजपा देश के राजनीतिक बदलावों में खुद भी काफी बदल गई है। कहने को तो विचारधारा अब भी पार्टी का अभिन्न अंग है, लेकिन सत्ता की दौड़ में उसे उससे समझौता करने में भी कोई गुरेज नहीं होता है।
संघ की पकड़
इस समय पार्टी साढ़े तीन दशकों से चले आ रहे अटल-आडवाणी का युग समाप्त होने के बाद संक्रमण काल से गुजर रही है। ऐसे में संघ बीते एक दशक में पार्टी पर ढीली पड़ी अपनी पकड़ को फिर से मजबूत करने पर जुटा है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की बीमारी व लालकृष्ण आडवाणी से जुड़े जिन्ना विवाद से संघ को इसका मौका भी मिला। सरसंघचालक के रूप में संघ की कमान संभालने के बाद मोहन भागवत ने भाजपा को फिर से सीधे संघ के नियंत्रण में लेने में देर नहीं लगाई। पार्टी की मजबूत केंद्रीय नेताओं वाली दूसरी पंक्ति के बीच मतभेदों का फायदा उठाते हुए उसने अपनी पसंद के महाराष्ट्र की राजनीति कर रहे नितिन गडकरी को राष्ट्रीय कमान सौंप दी। इससे पार्टी के भीतर का घमासान बढ़ा है। यह विरोध मुखर इसलिए नहीं है, क्योंकि संगठन की ताकत संघ के हाथों में है और संघ गडकरी के साथ है।
पार्टी प्रबंधन
भारतीय जनता पार्टी का प्रबंधन ढांचा पूरी तरह का काडर आधारित है। पार्टी का अपना संविधान है और उस पर अमल करते हुए नियमित रूप से मंडल स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक संगठन चुनाव भी होते हैं। प्रबंधन तंत्र और संगठन ढांचा एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। मंडल, जिला व प्रदेश स्तर की समितियों के बाद सबसे प्रभावी तंत्र केंद्रीय स्तर होता है। पार्टी की सर्वोच्च नीति निर्धारक संस्था केंद्रीय संसदीय बोर्ड है, जो कोई भी आपातकालीन फैसला लेकर लागू कर सकती है। हालांकि सबसे अहम राष्ट्रीय कार्यकारिणी है, जो पार्टी की रीति-नीति व रणनीति तय करती है। इसकी बैठक हर तीन माह बाद होती है। राष्ट्रीय परिषद की बैठकें भी समय समय पर होती है। गौरतलब है कि भाजपा देश की एक मात्र पार्टी है जिसने अपने संगठन में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण दिया है।
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