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पहले जैसा सम्मान वाकई अब सेना के जवानों को नहीं मिल रहा है। जिसके कारण पंजाब के युवाओं का सेना में भर्ती होने का क्रेज खत्म होता जा रहा है। सेना के अधिकारियों से लेकर समाज के लोग सभी इस बात को भूलते जा रहे हैं कि सेना के जवान ही देश के रक्षक हैं।
मुझे याद है साल 1960 का वो दिन जब मैंने मेजर सिद्धू को मिले सम्मान के कारण ठान लिया था कि मैं सेना में ही जाऊंगा और देश की सेवा करूंगा। 1965 की जंग जीतने के बाद जब मैं लौटा तो माहौल कुछ पर्व से कम नहीं था। लोग हमें लेने के लिए स्टेशन पर पहुंचे। बैंड बाजा के साथ हमारा स्वागत किया गया। अब ऐसा नहीं होता। फौजी जंग जीतने के बाद रिटायर होता है और उसे आखिरकार अपने परिवार का पेट पालने के लिए सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करनी पड़ती है। इसकारण युवा सेना के जवानों से प्रेरित नहीं होता।
पंजाब का युवा अब विदेशों में जाकर डॉलर कमाने के सपने देखता है। सेना में शामिल होकर देश की सेवा करने की प्राथमिकता गौड़ हो चली है। दूसरा बड़ा कारण है फौज में सिविलियन जॉब के मुकाबले प्रमोशन कम मिलना।
एक आइएएस अफसर रिटायर होते तक चीफ सेक्रेटरी तक पहुंच जाता है, लेकिन सेना का जवान मेहनत करने के बावजूद लेफ्टिनेंट कर्नल की पोस्ट से ऊपर नहीं पहुंच पाता। सेना के मेजर का रैंक पहले एसएसपी के रैंक के बराबर होता था, लेकिन अब सेना ही अपने रैंक के सम्मान को बरकरार नहीं रख पा रही। सेना के रैंक नीचे आते जा रहे हैं। युवा पूर्व सैनिकों के हालात को देखते हैं। उन्हें पता है कि 40 से 45 साल में सेना के जवानों को रिटायर होना पड़ेगा, क्योंकि देश युवा फौज चाहता है। रिटायरमेंट के बाद फौजियों को अनस्किल्ड लेबर का तमगा मिल जाता है और सिर्फ सिक्योरिटी गार्ड की जॉब करने के अलावा कुछ नहीं बचता।
इन सबके बावजूद सेना की नौकरी के तहत देश की सेवा में कम आकर्षण नहीं है। हैरानी की बात यह है कि पंजाब में बेरोजगारी बढ़ने के बावजूद युवा वर्ग इस ओर आकर्षित नहीं हो रहा। वह शायद जल्द व कम मेहनत से पैसा कमाना चाहता है। ग्लैमर या फिर यूं कहें कि दिखावे की दुनिया में रहना चाहता है।
मैं यह भी महसूस करता हूं कि अब देशसेवा की भावना भी कम होती जा रही है और पैसा लोगों पर ज्यादा हावी हो रहा है। युवाओं की प्रवृत्ति बदल गई है। अब युवा सेवा नहीं बल्कि डॉलर कमाना चाहते हैं। ऐसा न हो पाने पर वह कुंठित होने लगता है और अवसाद या नशे की लत लगा बैठता है। अपने जोश और एनर्जी का इस्तेमाल युवा देश की रक्षा करने में नहीं कर रहे। विदेश जाने की दीवानी पंजाब की जवानी का दम जाता रहा है। यही कारण है कि अब जो लोग खुली भर्ती में सेना में जाना भी चाहते हैं उनमें भी ज्यादातर अनफिट घोषित हो जाते हैं।
एक बात तय है कि अगर पहले जैसा सम्मान सेना के जवानों को मिलने लगे तो युवा जरूर सेना की ओर अपना रुख करेंगे।-कर्नल हरबंस सिंह काहलों[सेवानिवृत्त] [लेखक 1971 में वीरचक्र विजेता रह चुके हैं]
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साभार : दैनिक जागरण 13 नवंबर 2011 (रविवार)
नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.
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