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लोकपाल पर तकरार के अहम मसले

मुद्दा
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11 सदस्यीय लोकपाल संस्था होनी चाहिए :


सिविल सोसाइटी- सीबीआइ (भ्रष्टाचार शाखा), केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) और शिकायत निवारण प्रकोष्ठ का लोकपाल में विलय कर देना चाहिए
सरकार का पक्ष
लोकपाल की अपनी स्वतंत्र जांच एजेंसी होगी। सीबीआइ (भ्रष्टाचार शाखा) और केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) को इसमें शामिल नहीं करना चाहिए



लोकपाल संस्था का कैसे चुनाव किया जाय
सिविल सोसाइटी-
एक सर्च कमेटी लोकपाल के लिए 11 सदस्यों का चुनाव करेगी। इस कमेटी में दो राजनेता, दो सांविधानिक पद धारक और चार जज शामिल होंगे
सरकार का पक्ष
लोकपाल के सदस्यों का चुनाव करने के लिए 10 सदस्यीय सर्च कमेटी में से छह सदस्य राजनेता होने चाहिए। सर्च कमेटी चयन पैनल द्वारा चुनी जानी चाहिए



लोकपाल सदस्यों की पदमुक्ति किस प्रकार होगी
सिविल सोसाइटी-
कोई भी नागरिक लोकपाल सदस्य के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में शिकायत कर सकता है और उसके हटाने की मांग कर सकता है। लोकपाल के स्टाफ के खिलाफ किसी शिकायत की दशा में एक स्वतंत्र निकाय द्वारा जांच की जाएगी। इस स्वतंत्र निकाय का गठन करना पड़ेगा
सरकार का पक्ष
यदि सरकार सुप्रीम कोर्ट में लोकपाल को हटाने के लिए अनुशंसा करती है तो सुप्रीम कोर्ट द्वारा उसको हटाया जा सकेगा। इससे गलत और किसी भी प्रकार से प्रेरित शिकायतों की प्रवृत्ति को झटका लगेगा।  लोकपाल के अन्य सदस्यों की जांच खुद लोकपाल करेगा



क्या न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे में आना चाहिए
सिविल सोसाइटी-
लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में न्यायपालिका को भी आना चाहिए। फिलहाल 1991 के सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय के मुताबिक मुख्य न्यायाधीश की अनुमति के बिना हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के खिलाफ प्राथमिकी (एफआइआर) दर्ज नहीं हो सकती। अभी तक कई न्यायाधीशों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले दर्ज हुए हैं लेकिन मुख्य न्यायाधीश ने केवल एक मामले में जांच की अनुमति दी है
सरकार का पक्ष
न्यायपालिका के लोकपाल के दायरे में आने से इससे न्यायिक स्वतंत्रता प्रभावित होगी। इसके अलावा लोकपाल सदस्यों के खिलाफ मामलों की जांच सुप्रीम कोर्ट करेगा। लेकिन, भ्रष्टाचार के मसले पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश खुद लोकपाल की जांच के दायरे में होंगे। कुल मिलाकर दोनों एक दूसरे के अधीन होंगे। जो कि व्यवहारिक दृष्टि से उचित नहीं है



क्या लोकपाल को भ्रष्ट नौकरशाहों को हटाने का अधिकार होगा
सिविल सोसाइटी-
पहले कहा था कि किसी भ्रष्ट नौकरशाह के खिलाफ जांच की दशा में उसको पदावनित, निलंबित या बर्खास्त करने का अधिकार होगा। बाद में अपने रुख में नरमी बरतते हुए कहा कि लोकपाल उस नौकरशाह के खिलाफ कार्रवाई के लिए अनुशंसा कर सकेगा जो सरकार के लिए बाध्यकारी होगी। हालांकि बाद में उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह के निर्णयों को हाईकोर्ट स्टे नहीं करेगा
सरकार का पक्ष
लोकपाल द्वारा भ्रष्ट नौकरशाहों को हटाने से विषम संवैधानिक स्थिति पैदा हो सकती है। संविधान में नौकरशाहों को दी गई नौकरी की सुरक्षा को  लोकपाल नहीं छीन सकता। वह केवल सुझाव दे सकता है। इसकी अनुशंसा को आगे संघ लोक सेवा आयोग के पास उसकी सलाह और जरूरी कदम उठाने के लिए आगे भेजा जाएगा। यदि तब आवश्यक हुआ तो इस पर यथा उचित कार्रवाई की जाएगी



क्या सांसद को लोकपाल के दायरे में आना चाहिए
सिविल सोसाइटी-
पहले कहा था कि सांसद के खिलाफ किसी मामले की जांच संबंधित सदन के अध्यक्ष के अनुरोध पर लोकपाल करेगा। लोकपाल संबंधित मामले में अपनी जांच पूरी करने के बाद रिपोर्ट अध्यक्ष को सौंप देगा। बाद में अध्यक्ष द्वारा उस रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखा जाएगा। उसके बाद सदन में संबंधित सांसद के खिलाफ मामले का निर्णय किया जाएगा। बाद में सिविल सोसाइटी ने इस बात में संशोधन करते हुए कहा कि सदन के भीतर किसी सांसद के खिलाफ भ्रष्टाचार से जुड़े मसले की जांच भी इसके दायरे में आनी चाहिए।
सरकार का पक्ष
सदन के भीतर सांसद का आचरण उसका संसदीय विशेषाधिकार है। संविधान में इस तरह के विशेषाधिकारों की व्याख्या की गई है। इसलिए सदन के भीतर सांसद की गतिविधियों की जांच लोकपाल के दायरे में नहीं लाई जा सकती। इस लिहाज से यदि  किसी सांसद के खिलाफ सदन के भीतर बोलने या वोट देने के संबंध में यदि कोई भ्रष्टाचार का मामला बनता है तो उसकी जांच का अधिकार लोकपाल को नहीं दिया जा सकता। हालांकि सरकारी ड्राफ्ट में इस बात पर सहमति दी गई है कि सदन के बाहर सांसद के आचरण की जांच लोकपाल कर  सकता है।


क्या प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में आना चाहिए
सिविल सोसाइटी-
संसदीय प्रणाली में सरकार का मुखिया होने के नाते प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। जब प्रधानमंत्री के अधीन मंत्रालयों एवं मंत्रियों की जांच लोकपाल कर सकता है तब उसको प्रधानमंत्री की जांच करने का भी अधिकार होना चाहिए। इसके पीछे एक प्रमुख तर्क यह भी है कि न्याय का सिद्धांत सभी पर एक समान लागू होता है। ऐसे में प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे से बाहर नहीं रखना चाहिए। उसको भी लोकपाल के दायरे में आना चाहिए। चूंकि प्रधानमंत्री के पास कई अहम मंत्रालय होते हैं। ऐसे में उसके लोकपाल की सीमा के भीतर नहीं आने से ये सारे मंत्रालय जांच की परिधि से बाहर ही रहेंगे। यानी कि इनमें व्याप्त भ्रष्टाचार की जांच मुश्किल होगी
सरकार का पक्ष
यदि प्रधानमंत्री लोकपाल के अधीन हो जाएगा तो पूरा प्रशासनिक ढांचा चरमरा कर लकवाग्रस्त हो जाएगा। जांच के दायरे में किसी मंत्री के आने पर उससे मंत्रालय वापस लिया जा सकता है या उसकी कैबिनेट से छुट्टी हो सकती है। इससे सरकार की कार्य प्रणाली में किसी तरह की दिक्कत नहीं पेश आएगी। उसके स्थानापन्न का आसानी से चयन करके संबंधित मंत्रालय का काम-काज पूर्ववत चलाया जा सकता है। लेकिन प्रधानमंत्री के सवाल पर इस तरह के विकल्प की गुंजायश नहीं है। हालांकि सरकार इस बात से सहमत है कि प्रधानमंत्री द्वारा अपने पद का त्याग करने के बाद वह भी लोकपाल के दायरे में आ जाएंगे और उनके खिलाफ मामले की जांच हो सकेगी



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साभार : दैनिक जागरण 03 जुलाई 2011 (रविवार)


नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.

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