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काश! हाईप्रोफाइल दोषियों को भी मिलता सबक

मुद्दा
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भ्रष्टाचार: 2 जी स्पेक्ट्रम आवंटन और राष्ट्रमंडल खेल घोटाले। दोनों में शीर्ष आरोपी हैं जनता की रहनुमाई करने वाले माननीय नेताजी। स्पेक्ट्रम घोटाले में जहां तत्कालीन टेलीकॉम मंत्री ए राजा द्वारा मनमाने ढंग से स्पेक्ट्रम को आवंटित किया गया वहीं राष्ट्रमंडल खेल की हर डील में एक नया घोटाला सामने आ रहा है। पूरी आयोजन समिति कटघरे में हैं । इसके पूर्व मुखिया सुरेश कलमाड़ी सीबीआइ की गिरफ्त में हैं । घोटाले में शामिल अन्य लोगों पर भी जांच की आंच आ सकती है।

जंग: स्पेक्ट्रम घोटाले में पहले ही ए राजा को गिरफ्तार किया जा चुका है। इन घोटालों के सूत्रधारों पर सीबीआइ का जाल पड़ने के साथ अब दोनों मामलों में नतीजे निकलने की चर्चा को बल मिलने लगा है। देर से ही सही, लेकिन खुद को पाक साफ बताने वाले इन घोटालेबाजों की गर्दन जकड़ने से भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही जंग को एक नई संजीवनी मिली है। हालांकि पूर्व में हाईप्रोफाइल लोगों के ऐसे मामलों में बाइज्जत बरी होने की घटनाएं बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देती हैं।

अभूतपूर्व: इन घोटालों की व्यापकता और इनसे हुए नुकसान का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इतिहास में पहली बार एक साथ उच्च पदों पर बैठे हुए कई लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किए गए तो कई को गिरफ्तार भी किया गया। लोगों में इन घोटालों की परत-दर-परत जानकारी की उत्सुकता चरम पर है। राष्ट्रमंडल खेल और 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले के आरोपियों को सजा मिलना और इन मामलों की प्रभावी परिणति बड़ा मुद्दा है।

पूर्व सूचना व संचार प्रौद्योगिकी मंत्री ए राजा और सुरेश कलमाड़ी समेत बड़े औद्योगिक घरानों के अधिकारियों को सलाखों के पीछे पहुंचने और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री करुणानिधि की बेटी कनीमोरी के खिलाफ चार्जशीट दाखिल होने से उच्च पदों पर बैठे भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई की उम्मीद एक बार फिर जगी है। लेकिन पुराने रिकार्ड से साफ है कि एफआइआर या चार्जशीट के बावजूद हाईप्रोफाइल आरोपी सीबीआइ की चंगुल से बेदाग बच निकलता है।

ऐसे ही हाईप्रोफाइल लोगों की संलिप्तता वाले घोटालों पर पेश है एक नजर:

बोफोर्स घोटाला: 1986 में बोफोर्स तोप खरीद घोटाले में सीबीआइ ने 1990 में एफआइआर दर्ज कर जांच शुरू की। 2000 में दाखिल चार्जशीट में बोफोर्स कंपनी और उसके मालिक मार्टिन अर्डबो समेत विन चड्डा, ओतावियो क्वात्रोची, तत्कालीन रक्षा सचिव एके भटनागर और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को घोटाले के लिए जिम्मेदार ठहराया। इनमें एसके भटनागर और विन चड्डा की 2001 में मौत हो गई। 2002 में पूरक चार्जशीट में हिंदुजा बंधुओं को भी आरोपी बनाया, लेकिन 2004 में दिल्ली हाईकोर्ट ने राजीव गांधी को और 2005 में हिंदुजा बंधुओं को आरोपों से बरी कर दिया। 2003 में क्वात्रोची के लंदन स्थित दो बैंक खातों को सील कराने वाली सीबीआइ 2006 तक आते-आते उनको खुलवाने पर सहमत हो गई। 2007 में अर्जेंटीना में गिरफ्तार क्वात्रोची को लाने में विफल रहने के बाद सीबीआइ ने 2008 में रेड कार्नर नोटिस वापस ले लिया और अंतत: 2009 में क्वात्रोची के खिलाफ केस वापस लेने के लिए अदालत में अर्जी लगा दी। इसी साल चार जनवरी को इस अर्जी को स्वीकार करते हुए अदालत में बोफोर्स घोटाले के ताबूत में आखिरी कील ठोक दी गई। मजेदार बात यह है कि 64 करोड़ रुपये के घोटाले की जांच पर सीबीआइ ने 250 करोड़ रुपये खर्च किया।

झारखंड मुक्ति मोर्चा सांसद खरीद कांड: जुलाई 1993 में पीवी नरसिंह राव सरकार के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव 14 मतों से खारिज हो गया। आरोप लगा कि सरकार ने अपने पक्ष में वोट करने के लिए झामुमो के चार सांसद समेत कई सांसदों को लाखों रुपये की रिश्वत दी थी। नरसिंह राव के सत्ता से बाहर हो जाने के बाद सीबीआइ ने इस मामले में राव समेत कई आरोपियों के खिलाफ एफआइआर दर्ज की। लगभग आठ महीने में जांच पूरी कर सीबीआइ ने सांसदों की खरीद फरोख्त के लिए नरसिंह राव, बूटा सिंह, सतीश शर्मा, शिबू सोरेन समेत कुल 20 हाईप्रोफाइल आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। लेकिन 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में रिश्वत लेने वाले सभी नौ सांसदों के खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगा दी। 2000 में स्थानीय अदालत ने फैसले में केवल दो आरोपियों नरसिंह राव और बूटा सिंह को दोषी करार दिया। लेकिन 2002 में दिल्ली हाइकोर्ट ने इन दोनों को भी आरोपों से बरी कर दिया।

तांसी भूमि घोटाला: 1992 में जयललिता पर तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहते हुए तमिलनाडु स्माल इंडस्ट्रीज कारपोरेशन की जमीन औने-पौने दामों में जया पब्लिकेशन को आवंटित कराने का आरोप लगा। आरोपों की जांच के बाद स्थानीय पुलिस ने 1996 में जयललिता और उनकी सहेली शशिकला समेत छह लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। इन पर राज्य को साढ़े तीन करोड़ रुपये के नुकसान का आरोप लगा। बाद में स्थानीय अदालत ने इन सभी को आरोपी बनाते हुए कानूनी कार्रवाई शुरू की और 2000 में जयललिता को दोषी करार देते हुए तीन साल की सजा सुना दी। 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में जयललिता को पूरी तरह से सभी आरोपों से बरी कर दिया। इस घोटाले के अलावा इनके खिलाफ लगभग आधा दर्जन दूसरे केस भी दर्ज किए गए थे, लेकिन सभी की नियति तांसी जैसी ही हुईं।

सुखराम (आय से अधिक संपत्ति मामला): यह एकमात्र मामला है जिसमें हाईप्रोफाइल आरोपी को सजा हुई है। 1996 में सीबीआइ ने तत्कालीन सूचना मंत्री सुखराम के सरकारी आवास पर छापा मारकर 2.45 करोड़ रुपये नकद बरामद किया। उसी दिन हिमाचल प्रदेश के मंडी स्थित उनके घर पर छापे में सीबीआइ को 1.16 करोड़ रुपये और मिले। इसके आधार पर सीबीआइ ने आय से अधिक संपत्ति का केस दर्ज कर जांच शुरू की। सुखराम के खिलाफ दिल्ली की तीसहजारी अदालत में 1997 में चार्जशीट दाखिल कर दी। लगभग चार करोड़ की नकदी की बरामदगी के बावजूद अदालत में 12 साल तक सुनवाई चलती रही और अंतत: 2009 में उन्हें तीन साल की सजा सुनाई गई। वैसे सुखराम ने इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की है और वे फिलहाल जमानत पर बाहर हैं।

चारा घोटाला: 1991 में लालू प्रसाद यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद पशुपालन विभाग में हुए 950 करोड़ रुपये से अधिक के घोटाले की जांच पटना हाईकोर्ट के आदेश के बाद 1996 में शुरू हुई। इस मामले में सीबीआइ ने 64 अलग-अलग मामले दर्ज किए। इन सभी की जांच कर 2003- 2004 में आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी। इनमें 37 मुकदमों में अदालत अब तक 350 से अधिक आरोपियों को सजा सुना चुकी है। हालांकि जिस मामले में लालू आरोपी हैं , उसमें अभी तक अदालत में सुनवाई चल रही है।

लालू यादव-राबड़ी देवी (आय से अधिक संपत्ति का मामला): पटना हाईकोर्ट के निर्देश पर सीबीआइ ने 1996 में ही लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया था। लगभग चार साल की जांच के बाद सीबीआइ ने इन दोनों को आय से अधिक संपत्ति बनाने का आरोपी ठहराते हुए चार्जशीट दाखिल कर दी। 2000 से 2006 तक इस मामले में पटना की स्थानीय अदालत में सुनवाई चली। अदालत ने इन दोनों को आरोपों से बरी कर दिया, लेकिन केंद्र सरकार ने अपने रेल मंत्री लालू प्रसाद के खिलाफ सीबीआइ को पटना हाईकोर्ट में अपील करने की इजाजत नहीं दी। बिहार की नीतीश सरकार ने स्थानीय अदालत के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील जरूर की। लेकिन इसके खिलाफ लालू यादव सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए और सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार की हाईकोर्ट में अपील को खारिज कर दिया।

पेट्रोल पंप आवंटन घोटाला: पीवी नरसिंह राव सरकार में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री रहे सतीश शर्मा पर पेट्रोल पंप आवंटन का आरोप लगा। 1997 में सीबीआइ ने शर्मा पर 15 केस दर्ज किए। लेकिन सीबीआइ को शर्मा के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने के लिए गृह मंत्रालय से जरूरी अनुमति नहीं मिली। इसके आधार पर नवंबर 2004 में सीबीआइ अदालत से सभी 15 मामलों को बंद करने की अर्जी लगाई। सतीश शर्मा पेट्रोल पंप आवंटन घोटाले के आरोपों से बेदाग बच निकले।

वी जार्ज-सोनिया गांधी के निजी सचिव (आय से अधिक संपत्ति का मामला): सोनिया गांधी के निजी सचिव रहे वी जार्ज के खिलाफ सीबीआइ ने 2001 में आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया था। उस वक्त सीबीआइ ने जार्ज के पांच बैंक खातों को भी सील करते हुए कड़ी कार्रवाई के संकेत दिए थे। लेकिन आज 10 साल बाद सीबीआइ इस मामले में कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं है। पिछले 10 साल से सीबीआइ अधिकारियों का एक ही जवाब है कि जार्ज के पास अमेरिका से आए पैसे के स्नोत का पता लगाने के लिए अनुरोध पत्र (लेटर रेगोटरी) भेज दिया गया है और अमेरिका से इसका जवाब आने के बाद ही कार्रवाई की दिशा तय होगी।

छत्तीसगढ़ विधायक खरीद कांड: दिसंबर 2003 में छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी पर भाजपा विधायकों को खरीदने का आरोप लगा। सीबीआइ ने विधायकों को दिए गए पैसे के स्नोत को भी ढूंढ निकाला। फारेंसिक लेबोरेटरी की रिपोर्ट में टेलीफोन की बातचीत में आवाज और समर्थन पत्र पर हस्ताक्षर के रूप में मामले में अजीत जोगी के शामिल होने के सबूत भी मिल गए। अकाट्य सबूतों के बावजूद भी सीबीआइ अजीत जोगी के खिलाफ आठ साल बाद भी चार्जशीट दाखिल नहीं की है।

जैन हवाला कांड: सीबीआइ को जैन भाइयों (एके जैन, एनके जैन व बीआर जैन ) के यहां छापे में मिली डायरियों में देश के सत्ता और विपक्ष के वरिष्ठ नेताओं को करोड़ों रुपये दिए जाने की जानकारी मिली। 1990 और 1991 की इन डायरियों के आधार पर जैन बंधुओं के साथ-साथ नेताओं के खिलाफ कुछ मामलों में चार्जशीट हुई। लेकिन ट्रायल कोर्ट कुछ कर पाता, इसके पहले ही दिल्ली हाईकोर्ट ने डायरी को सुबूत मानने से इनकार करते हुए इसके आधार पर हो रही कार्रवाई पर रोक लगा दी। 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने भी इन डायरियों को सबूत मानने से इनकार कर दिया।

(नीलू रंजन, नई दिल्ली)

1 मई को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला” पढ़ने के लिए क्लिक करें

1 मई को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “राष्ट्रमंडल खेल घोटाला” पढ़ने के लिए क्लिक करें

साभार : दैनिक जागरण 1 मई 2011 (रविवार)
नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.

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