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तेल कीमतों में हलचल का असर दुनिया भर में महसूस होता है। आखिर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों का निर्धारण कैसे किया जाता है? किस तरह तेल बाजार काम करता है? पेश है एक नजर :
कच्चा तेल (क्रूड ऑयल)
विश्व की इस सबसे ज्यादा सक्रिय कारोबारी कमोडिटी के सौदे इस तरह किए जाते हैं।
भविष्य के समझौते
इस प्रकार के लेन-देन में खरीदार, बेचने वाले से निश्चित तेल की मात्रा पूर्व निर्धारित कीमतों पर किसी विशेष स्थान पर लेने पर सहमत होता है। ये सौदे केवल नियंत्रित एक्सचेंजों द्वारा ही किए जाते हैं। भुगतान रोजाना और ताजा कीमतों के आधार पर तय किया जाता है। न्यूनतम खरीदारी 1,000 बैरल की होती है। एक बैरल में करीब 162 लीटर कच्चा तेल होता है
वैश्विक मानदंड (बेंचमार्क)
चूंकि कच्चे तेल की कई किस्में और श्रेणियां होती हैं। इसलिए खरीदार और विक्रेताओं को कच्चे तेल का एक बेंचमार्क बनाने से सहूलियत होती है। ब्रेंट ब्लेंड कच्चा तेल को आमतौर पर वैश्विक मानदंड के रूप में स्वीकार किया जाता है। इंटरनेशनल पेट्रोलियम एक्सचेंज (आइपीई) के अनुसार दुनिया में दो तिहाई कच्चे तेल की कीमतें ब्रेंट के आधार पर ही तय होती हैं। खाड़ी में दुबई क्रूड एशियाई क्रूड कीमतों का आधार है। इसी तरह अमेरिका का बेंचमार्क वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआइ) है।
ओपेक बास्केट
ङ्क्त15 विभिन्न क्रूड कीमतों के औसत से ओपेक बॉस्केट प्राइस का निर्धारण किया जाता है।
ङ्क्तओपेक बाजार में तेल पर नियंत्रण रखता है। इसका मकसद बास्केट कीमतों को पूर्व निर्धारित दरों पर रखना है।
देश में
ङ्क्तदेश में लगभग 80 फीसदी तेल का आयात किया जाता है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चा तेल प्रति बैरल के हिसाब से खरीदा और बेचा जाता है।
ङ्क्तजिस कीमत पर हम पेट्रोल खरीदते हैं उसका करीब 48 फीसद उसका बेस यानि आधार मूल्य होता है। इसके अलावा करीब 35 फीसद एक्साइज ड्यूटी, करीब 15 फीसद सेल्स टैक्स और दो फीसद कस्टम ड्यूटी लगाई जाती है। तेल के बेस प्राइस में कच्चे तेल की कीमत, प्रॉसेसिंग चार्ज और कच्चे तेल को शोधित करने वाली रिफाइनरियों का चार्ज शामिल होता है। एक्साइज ड्यूटी कच्चे तेल को अलग-अलग पदार्थों जैसे पेट्रोल, डीजल और किरोसिन में तय करने के लिए किया जाता है। वहीं, सेल्स टैक्स यानी बिक्री कर संबंधित राज्य सरकार द्वारा लिया जाता है
तेल पर कर
राज्यों द्वारा लिया जाने वाला बिक्री कर ही विभिन्न राज्यों में पेट्रोल की कीमत के अलग-अलग होने के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। यही वजह है कि मुंबई में पेट्रोल दिल्ली की तुलना में महंगा है क्योंकि दिल्ली में बिक्री कर कम है और इसी वजह से अलग-अलग शहरों में तेल की कीमत भी कम-ज्यादा होती है। विभिन्न राज्यों में ये बिक्री कर या वैट 17 फीसद से लेकर 37 फीसद तक है।
विनिमय दर का निर्धारण
यह सर्वविदित तथ्य है कि वस्तुओं एवं उत्पादों की तरह विनिमय दरों का निर्धारण भी बाजार की शक्तियां ही करती हैं। किसी मुद्रा का मूल्य भी उसकी मांग पर निर्भर करता है। लोग किसी मुद्रा को अधिक खरीदते हैं तो उसका मूल्य बढ़ेगा। कम खरीदी जाने वाली मुद्रा का मूल्य गिरता है। अमेरिकी डॉलर बनाम रुपये के मामले में भी यही बात लागू होती है। कुछ अन्य कारक भी हैं जो विनिमय दर निर्धारण में अहम भूमिका निभाते हैं :
1. अर्थव्यवस्था की वृद्धि
2. मुद्रास्फीति
3. रोजगार/बेरोजगारी
4. सरकार
5. सार्वजनिक कर्ज
6. ब्याज दरें
7. कभी-कभी सट्टेबाजी या भय
8. अर्थव्यवस्था की ताकत (इसमें आयात और निर्यात भी शामिल)
ये सारे कारक की किसी मुद्रा की मांग को घटाते या बढ़ाते हैं। यदि ये सभी कारक किसी देश के लिए अनुकूल हैं तो उस देश की स्थिरता के बारे में दुनिया भर में लोग आश्वस्त होते हैं। इससे वहां निवेश का बेहतर माहौल बनता है। नतीजतन मुद्रा की मांग भी बढ़ती है।
उदाहरण : 2006-2007 में उपरोक्त में से अधिकांश कारक देश के लिए अनुकूल थे। लिहाजा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रुपये की स्वीकार्यता बढ़ी। स्थिर सरकार होने के साथ अनुकूल आर्थिक माहौल था। बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने देश में निवेश करना शुरू किया और रुपये को अधिकाधिक खरीदा। रुपये की मांग बढ़ी और इसके मूल्य की स्वीकार्यता में बढ़ोतरी हुई।
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