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दस के दम से भ्रष्टाचार बेदम!

मुद्दा
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Prevention of Corruptionभ्रष्टाचार। बड़ा मर्ज। इस रोग का चहुंमुखी व्यापक दुष्प्रभाव। जनता इस मर्ज को अपनी नियति मान बैठी थी। भला हो जननायक अन्ना हजारे का, जिनके आंदोलन ने जनता को जागरूक किया। अब जनता जाग चुकी तो जनार्दन को भी जागना पड़ रहा है।


जवाब: सरकार ने भ्रष्टाचार विरोधी और पारदर्शिता लाने वाले कई कदमों पर सक्रियता दिखाई है। सरकार लोकपाल के अलावा दस ऐसे नए कानूनों पर काम कर रही है जिससे भ्रष्टाचार को मुंहतोड़ जवाब दिया जा सके।


जनहित: जनता के हित से जुड़े किसी मसले पर उपजे जनाक्रोश के समय सरकार द्वारा उठाए जाने वाले फौरी कदम और बाद में सुस्त पड़ने वाली प्रवृत्ति सोचने पर विवश कर देती है। कहीं भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकारी सक्रियता के आगाज का अंजाम भी कुछ ऐसा ही न हो जाए। सरकार द्वारा भ्रष्टाचार से निपटने की दिखाई जा रही प्रतिबद्धता को अंजाम तक पहुंचना एक बड़ा मुद्दा है।


हाल के कुछ महीनों में भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुई बहस के ठोस नतीजे में भले ही देर हो, लेकिन उसने इस मसले पर उदासीन संप्रग सरकार को सात साल में पहली बार हिलाकर रख दिया। बात आगे बढ़ी और पहली बार ऐसा हुआ जब कोई सरकार भ्रष्टाचार विरोधी और पारदर्शिता लाने वाले कई कानूनों पर एक साथ काम शुरू करने पर मजबूर हुई। अब सरकारी अफसरों के भ्रष्टाचार पर अंकुश के कदम उठने लगे हैं। ऐसे मामलों में जल्द सुनवाई के लिए ज्यादा से ज्यादा फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की जल्दी है। इस मुद्दे पर सरकार की बेचैनी और छटपटाहट अब आसानी से देखी जा सकती है।


जन लोकपाल को लेकर समाजसेवी अन्ना हजारे के इस साल अप्रैल में पहले अनशन ने सरकार को कठघरे में खड़ा किया। तो पिछले महीने के आमरण अनशन ने तो सरकार को कहीं का नहीं रखा। हालांकि सरकार भ्रष्टाचार से निपटने के ठोस उपायों को सुझाने के लिए जनवरी में ही मंत्रियों का एक समूह बना चुकी थी, लेकिन शायद वह उस पर बहुत गंभीर नहीं थी। तभी तो अन्ना को सुनने में लोगों ने उसे अनसुना कर दिया।


भ्रष्टाचार को लेकर चल रही ताजा बहस में अब सरकार रोज-ब-रोज अपना नजरिया लेकर सामने है। उसके तमाम दावे हैं। उस दिशा में वह बढ़ती भी दिख रही है। कानून मंत्री सलमान खुर्शीद सिर्फ भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों से निपटने के लिए मोटे तौर पर लगभग दस नये कानूनों की सरकारी तैयारी की बात कर रहे हैं। उनमें से पांच विधेयक पर तो सरकार की सक्रियता देखी जा सकती है। न्यायिक मापदंड व जवाबदेही विधेयक पर संसदीय स्थायी समिति चर्चा कर चुकी है। सरकार उसे संसद के शीतकालीन सत्र में पारित कराना चाहती है। लोकपाल विधेयक तो अगले सत्र में सबसे बड़ी प्राथमिकता है ही।


सरकारी दफ्तरों में रोजमर्रा के कामकाज में आम जनता को समयबद्ध नतीजों के कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय जनसेवा आपूर्ति एवं जनशिकायत निवारण विधेयक तैयार कर रहा है। ग्राम्य विकास समेत दूसरे मंत्रालय उसमें अपना योगदान दे रहे हैं। इसी तरह भ्रष्टाचार के मामलों का खुलासा करने वालों को संरक्षण के लिए व्हिसल ब्लोअर विधेयक को संसदीय समिति की मंजूरी मिल चुकी है। जबकि कालेधन व हवाला कारोबार वालों पर और सख्ती के लिए मनीलांड्रिंग कानून में संशोधन के लिए विधेयक का मसौदा तैयार हो रहा है। छवि सुधारने की कोशिश में ही उसने चुनाव सुधार के लिए सख्त कानून का मसौदा तैयार किया है।


इतना ही नहीं, भ्रष्टाचार को रोकने में अपनी नाकामी को लेकर परेशान सरकार अब दूसरे मोचरें पर भी सक्रिय हो गयी है। इसी क्रम में उसने सेवानिवृत्त होने के बाद भी भ्रष्टाचार में लिप्त पाए अधिकारियों-कर्मचारियों की पेंशन में 20 प्रतिशत की कटौती, भ्रष्ट अफसरों पर मुकदमे के लिए तीन महीने में मंजूरी अनिवार्य करने, जमीन, पेट्रोल पंप जैसे मामलों में मंत्रियों का विवेकाधीन कोटा खत्म करने, भ्रष्टाचार साबित होने पर अधिकारी को समय से पहले सेवानिवृत्त करने का फैसला कर चुकी है। भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में जल्द से जल्द सुनवाई के लिए 27 और फास्ट ट्रैक सीबीआइ कोर्ट बनाने की तैयारी में है। अभी 44 हैं।


हालांकि, इस सबके बाद भी सरकार पर भरोसे का संकट बरकरार है। कानून मंत्री व सरकार की तरफ से भविष्य के कानून के दावे हकीकत में कब बदलेंगे? जनता कब उसका फायदा उठा पाएगी? यह भविष्य के गर्भ में है। सरकार के पास भी इसकी समय सीमा का जवाब नहीं है। ऐसे में वह लोगों को महज आश्वासनों के सहारे कब तक बहलाकर रोक पाएगी, यह कह पाना मुश्किल है। – राजकेश्वर सिंह

भ्रष्टाचार का दानव

राष्ट्रमंडल खेल घोटाला..आदर्श सोसाइटी घोटाला….2जी स्पेक्ट्रम घोटाला और अब नया एलआइसी हाउसिंग घोटाला। आलम यह है कि जांच एजेंसियां जब तक किसी घोटाले की तह तक पहुंचती हैं, दूसरा घोटाला सामने आ जाता है। क्या साहब, क्या बंदे सभी इस भ्रष्टाचार के आगोश में सिमट चुके हैं। सुविधाभोगी होते समाज को भ्रष्टाचार का दानव निगल रहा है।


66 हजार अरब रुपये: स्विस बैंक में जमा देश की धनराशि। इस जमा काले धन के मामले में दुनिया के सभी देशों में हम अव्वल हैं। हमारे ऊपर कुल विदेशी कर्ज की 13 गुना है यह रकम।


9.6 लाख करोड़ रुपये: आजादी के बाद से 2008 तक अवैध तरीकों से विदेश भेजी गई रकम। ग्लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रिटी के अनुसार आज की तारीख में इस धनराशि की कीमत करीब 21 लाख करोड़ रुपये होगी।


भ्रष्टाचार सूचकांक

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी सूचकांक में हम सर्वाधिक भ्रष्ट देशों में शुमार हैं। साल दर साल स्थिति सुधरने की बजाय और बिगड़ रही है।


सालरैंकस्कोर
2001712.7
2003712.7
2004832.8
2005902.8
2006882.9
2007703.3
2008723.5
2009843.4
2010873.3


भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत दर्ज विजिलेंस मामले :


सालसीबीआईराज्यों में
20009212943
20018582990
20027563432
20037073158
20047582585
20058273,008
20067193285
20076103178
20083371



18 सितंबर को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “भ्रष्टाचार के खिलाफ कानून”  पढ़ने के लिए क्लिक करें.

18 सितंबर को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “दिखावे से नहीं बनेगी बात”  पढ़ने के लिए क्लिक करें.

18 सितंबर को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र बिना बेमानी हैं चुनाव सुधार”  पढ़ने के लिए क्लिक करें.


साभार : दैनिक जागरण 18 सितंबर 2011 (रविवार)

नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.

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