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डोप का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। डोप में खिलाड़ियों के फंसने से विदेशी कोच की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। इतिहास गवाह रहा है कि विदेशी कोच खासकर पूर्वी यूरोपीय देशों के कोच खिलाड़ियों से बेहतर प्रदर्शन के लिए उन्हें नशीली दवाओं का सेवन कराते थे। धीरे-धीरे यह प्रवृत्ति दुनिया के अन्य देशों के साथ हमारे यहां भी घर कर गई। हालांकि इस हालात का ठीकरा केवल विदेशी कोचों पर ही नहीं फोड़ा जा सकता है। हमारे खिलाड़ी भले ही खुद का बचाव कर रहे हों, लेकिन अपनी जिम्मेदारी से वे भाग नहीं सकते हैं। दरअसल खेलों की शीर्ष संस्था से लेकर खेल मंत्रालय और खिलाड़ियों तक सभी एक दूसरे पर दोषारोपण कर रहे है। खिलाड़ी का आरोप है कि उन्हें कोच ने यह सप्लीमेंट लेने को कहा। कोच साहब इसका ठीकरा साइ के सिर फोड़ रहे हैं। वहीं साइ के एक पूर्व डाक्टर का दावा है कि डोपिंग का पूरा खेल एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया से लेकर सभी की जानकारी में चल रहा है। हमारे खेल मंत्री जहां दोषियों की न बख्शने का खम ठोक रहे हैं वहीं कई खेल संस्थाओं के पुनर्गठित किए जाने की वकालत भी कर रहे हैं। इस बड़ी समस्या के प्रति यह घोर लापरवाही न केवल हमारे नीति-नियंताओं की कलई खोल रही है बल्कि खेलों में हमारे भविष्य पर भी सवाल लगा रही है। खेल क्षेत्र में एक उभरते हुए देश का डोपिंग के जाल में जकड़ा जाना बड़ा मुद्दा है।
खिलाड़ी भी संयम बरतें
राष्ट्रीय डोपिंग रोधी संस्था (नाडा) के महानिदेशक राहुल भटनागर से आशुतोष झा की बातचीत
सवाल- भारत में भी डोप के मामले तेजी से सामने आने लगे हैं। कमजोर कड़ी क्या है?
जो मामले सामने आ रहे हैं वह शर्मनाक हैं। इसका कारण जांच के बाद ही पता चलेगा। खेल मंत्रालय ने जांच समिति गठित की है। लेकिन हां, डोपिंग के खिलाफ हमारी तैयारी कम नहीं है। जो भी अंतरराष्ट्रीय मापदंड हैं हम उसका पालन कर रहे हैं। हर स्तर पर, हर किसी को सतर्क रहने की जरूरत है।
सवाल- तैयारी पूरी है तो सतर्कता में कहां चूक हुई। क्या सतर्कता और निगरानी को इसमें नहीं जोड़ा गया?
ऐसा नहीं है। स्पोट्र्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के सेंटर और हर बड़े कंपटीशन वेन्यू पर डोपिंग से अवगत कराया जाता है। शैक्षिक कार्यक्रम के तहत नाडा खिलाड़ियों, प्रशिक्षकों व दूसरों के लिए डोपिंग के कुप्रभाव पर हैंटआउट निकालता है। उसमें पाबंदी वाली दवाईयों का जिक्र होता है। सतर्कता बरतने के लिए यह काम किया जा रहा है। लेकिन अंतत: तो हर किसी को व्यक्तिगत तौर पर भी खुद पर नियंत्रण रखना होगा।
सवाल- क्या नाडा अपने स्तर पर चौकस है?
पूरी तरह। मैं बता दूं कि नाडा ने वाडा के मापदंडों के अनुरूप अपने सभी नियम कायदे बना दिए हैं। जनवरी 2010 को इसे नोटिफाई कर दिया है। वाडा मे प्रतिबंधित सभी दवाईयों को नाडा ने भी अपनी सूची में शामिल कर लिया है। वह भी जनवरी 2011 से लागू है। रही बात जांच की तो आपको पता है कि 2008 में वाडा ने भारत में डोप टेस्टिंग लैबोरेटरी को मान्यता दी थी। एनडीटीएल फिलहाल हर साल लगभग 3000 नमूनों की जांच करता है। आने वाले वर्षों में यह बढ़कर 5000 तक हो जाएगा।
सवाल- नमूना कलेक्शन को लेकर कोई शिथिलता है?
आप आंकड़े देख लीजिए। वर्ष 2009 में हमने विभिन्न स्थानों पर अपने अधिकारियों को तैनात कर 2331 मूत्र के नमूने इकट्ठे किए थे। वर्ष 2010 में 2794 और 2011 के जून तक हमने मूत्र के 1482 व खून के 30 नमूने लिए हैं।
सवाल- अनुशासनात्मक पैनल को कितने मामले गए ?
232 मामले पैनल को भेजे गए और उनसे में 127 मामलों में पेनाल्टी हो चुकी है जबकि दूसरे मामलों में सुनवाई चल रही है।
सवाल- सुनवाई की निष्पक्षता पर भी तो सवाल उठ सकते हैं।
नाडा के कानून के तहत कुछ समितियां हैं। एंटी डोपिंग अनुशासन पैनल, अपील पैनल व थेराप्यूटिक यूज एक्जेम्प्शन पैनल। इसमें जाने-माने जज, डाक्टर, खेल प्रशासक, खिलाड़ी आदि शामिल होते हैं। यह नाडा से स्वतंत्र है। सुनवाई की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी होती है और सबके लिए खुली होती है। लिहाजा सवाल नहीं उठाए जाने चाहिए। फिर भी संदेह हो तो अपील पैनल है। अब तक 10 मामले उस पैनल में गए भी है।
10 जुलाई को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “क्या है डोप” पढ़ने के लिए क्लिक करें.
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10 जुलाई को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “शक की सोच विदेशी कोच” पढ़ने के लिए क्लिक करें.
साभार : दैनिक जागरण 10 जुलाई 2011 (रविवार)
नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.
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