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बूंद- बूंद सागर

मुद्दा
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dorpसमस्या: मानसून की आहट सुनाई दे रही है। देर सबेर यह आपके दरवाजे पर दस्तक दे सकता है। भीषण चिलचिलाती गर्मी से निजात दिलाने वाली बारिश की बूंदें आपके तन-मन को मुदित करेंगी। यही मौका है अपना भविष्य सुरक्षित करने का। हर साल मानसूनी बारिश धरती पर इतना पानी उड़ेल देती है कि अगर हम इसे ही सहेज लें तो पानी की समस्या अपने आप दूर हो जाएगी। हमें साल भर पानी के लिए जद्दोजहद नहीं करनी पड़ेगी। बारिश के इस पानी से भू जल स्तर रिचार्ज करके हम अपनी पीढ़ियों का भविष्य भी जल संकट से सुरक्षित कर सकते हैं।


संचय: सदियों से हमारे देश में वर्षा जल का संचय होता आया है। कुछ मनुष्य द्वारा कुछ प्रकृति द्वारा। अब हमने जल प्रबंधन से अपना नाता ही तोड़ लिया है और प्रकृति विवश है। पहले ज्यादातर भूमि कच्ची हुआ करती थी। लिहाजा बारिश का पानी रिस रिसकर धरती की कोख में समाता रहता था। इस तरह भू जल स्तर ऊपर बना रहता था। आजकल तेजी से होते फर्श के कंक्रीटीकरण ने प्रकृति को बेवश कर दिया है। शहर तो शहर गांव में भी आधारभूत सुविधाओं में तरक्की हुई है। देश की अधिकांश जमीन असंगत रूप से पक्की फर्श में तब्दील हो चुकी है। लिहाजा कुदरती रूप से भू जल स्तर का रिचार्ज होना हमने खुद असंभव कर दिया है। इसका खामियाजा हमें भुगतना पड़ रहा है। लिहाजा इसका इलाज भी हमें ही खोजना है। वक्त आ गया है। इससे पहले कि मानसून की फुहारें बहकर तालाबों, नदियों से होते हुए समुद्र में जाकर समाप्त हो जाएं, आइए इन फुहारों की एक एक बूंद सहेज कर उनका सार्थक इस्तेमाल करें और धरती का जलस्तर बढ़ाने में मदद करें। बढ़ते जल संकट के मद्देनजर वर्षा जल संचय हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।

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आकाश से अमृत बरसे तो बूंद-बूंद को क्यों तरसे

सूत्र वाक्य लिखने और उसे साकार करने के बीच का अंतर तय करना शायद सरकारी संस्थाओं की पहुंच से बाहर है। शायद यही कारण है कि पानी की समस्या साल दर साल बढ़ती ही चली जा रही है।

सच तो यह है कि देश का कोई भी ऐसा शहर नहीं है जहां उसकी जरूरत से अधिक मात्रा में बारिश न होती हो। दिल्ली में 65 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन (एलपीसीडी), मुंबई 173 एलपीसीडी, कोलकाता 180 एलपीसीडी, चेन्नई 325 एलपीसीडी, बेंगलूर 241 एलपीसीडी। सभी जगह होने वाली औसत वर्षा सर्वमान्य औसत 135 एलपीसीडी (सीपीईईएचओ के दिशानिर्देश) से ज्यादा है। यदि इसका प्रयोग सही तरीके से किया जाए तो पानी की समस्या काफी हद तक दूर हो सकती है। अधिकांश लोगों को यह विश्वास नहीं होता है कि वर्षा जल से ही उनकी समस्या दूर हो सकती है। उन्हें लगता है कि पानी तो बहुत कम बरसता है। मुझे आशा है कि इन आंकड़ों से कम से कम यह गलतफहमी तो दूर हो जाएगी।


आज हमें जरूरत है कि हम पूर्ण वर्षा जल संचय करें। हर शहर ऐसा बनाना पड़ेगा जिससे वहां होने वाली बारिश की एक बूंद भी बेकार न जाने पाए। यानी वर्षा की हर एक बूंद, प्रयोग के बाद ही नदी में बह कर जाए। इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए सभी शहरों को तीन सूत्री कार्यक्रम अपनाना पड़ेगा।


पहला सूत्र- शहरों के तालाबों को पुन: जीवनदान देना चाहिए। प्रकृति में तालाब की बहुत महत्ता है। वह एक क्षेत्र में बरसने वाले पानी को वहीं समेट कर रखता है। तालाब का तल, उसी पानी को धीरे- धीरे जमीन में रिसने देता है। इससे उस क्षेत्र का भूजल बढ़ता है। प्रकृति की यह समझदारी हम जमीन की हवस में भूल चुके हैं। आज जरूरत है कि शहरी अधिकारी पुन: इसे समझें। दिल्ली जैसे महानगर में आज भी 900 तालाब हैं। उन्हें सरकार साफ करे, गहरा करे और इंतजाम करे कि आसपास के क्षेत्र में बहता वर्षा जल उस तालाब में आ सके।


दूसरा सूत्र- शहर के नाले साफ कर उन पर चैक डैम बनाएं जाएं। उससे पहले सरकार को इंतजाम करना पड़ेगा कि बारिश के नालों में सीवर या सेप्टिक टैंक का पानी न जाए। नालों में चैक डैम बनाने से बहते पानी को धरती में रिसने का समय मिलेगा जिससे भूजल का स्तर बढ़ेगा। नालों और तालाबों को साफ रखने में हम सबको भी अपनी भूमिका निभानी पड़ेगी। उनमें कचरा न फेंके, अपने बाथरूम का पानी केवल सीवर में ही डालें और इनके आसपास पेड़-पौधे लगवाएं।

तीसरा सूत्र- वर्षा जल संचयन, हर घर, हर मुहल्ले को अपने यहां कम से कम 70 प्रतिशत बहते हुए वर्षा जल का संचय करना चाहिए। आप इस पानी को सीधा भूमिगत टैंक में जमा कर सकते हैं। इस पानी को आप बाग में, घर एवं कपड़ों की सफाई में इस्तेमाल कर सकते हैं। यदि टैंक बनाने की जगह न हो तो वही पानी अपने घर के किसी सूखे ट्यूबवेल में या नए बोरवेल में डाल सकते हैं। इससे आपके क्षेत्र में भूजल बढ़ेगा और ट्यूबवेल में पानी की मात्रा बढ़ेगी। पानी देश और समाज की सबसे बड़ी जरूरत है। आइए वर्षा जल संचय करें, हम अपना और समाज का उद्धार करें।


लेखिका ज्योति शर्मा (अध्यक्ष, फोर्स-गैर सरकारी संगठन)


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