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सीमित उपभोग की बड़ी जरूरत

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भारती चतुर्वेदी (निदेशक- चिंतन, एनवायरन्मेंटल रिसर्च एंड एक्शन ग्रुप)
भारती चतुर्वेदी (निदेशक- चिंतन, एनवायरन्मेंटल रिसर्च एंड एक्शन ग्रुप)

आज पृथ्वी की सबसे बड़ी समस्या मानव का बढ़ता उपभोग है। विशेष रूप से उच्च और मध्यमवर्ग, सरकार और बड़े संस्थान सबसे ज्यादा इसके लिए जिम्मेदार हैं। भले ही आपकी आय चाहे जो हो लेकिन थोड़े समय के लिए अपने जीवन के बारे में सोचिए। बच्चों के लिए खरीदी जाने वाली नोट बुक (प्लास्टिक कवर समेत), कारों की बढ़ती संख्या, रीयल एस्टेट बिजनेस का बढ़ता कारोबार यह बताने के लिए काफी है कि किस तरह अपने संसाधनों का बेहिसाब इस्तेमाल कर रहे हैं। जब भूमि पर निर्माण कार्य होने लगता है तो यह जल का अवशोषण करने की क्षमता खो देती है। नतीजतन जैव-विविधता को नुकसान पहुंचता है।


हमको ऊर्जा की जरूरत है इसके लिए भी हम प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करते हैं। कोयला जनित बिजली से केवल प्रदूषण (पारे का उत्सर्जन) का उत्सर्जन ही नहीं होता बल्कि समृद्ध वनों का भी विनाश होता है। ऊर्जा के अन्य स्रोत बांध पूरे नदी बेसिन को खत्म कर रहे हैं। हालांकि यह भी सच है कि हमको ऊर्जा, घर और परिवहन के साधन चाहिए। सवाल यह उठता है कौन इन संसाधनों का सबसे ज्यादा उपभोग कर रहा है? गैर सरकारी संगठन ग्रीन पीस के मुताबिक अमीर उपभोक्ता गरीब वर्ग की तुलना में 4.5 गुना अधिक कार्बन डाइ ऑक्साइड का उत्सर्जन करता है और औसत का तीन गुना अधिक उपभोग करता है। अब आप खुद ही तय कर लीजिए कि आप कहां खड़े हैं?


मेरे ख्याल से थोड़ा सतर्क होकर आप अपने उपभोग के स्तर को थोड़ा कम कर सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले अपनी जीवनशैली पर गौर कीजिए। उसके बाद उन चीजों को चिन्हित कीजिए जिनके बिना भी आपको कोई दिक्कत पेश नहीं आएगी।


कटौती के इन तरीकों में दीपावली के पर्व पर कम रोशनी करके, आयातित खाने से परहेज करने जैसी चीजों को अपनाया जा सकता है। हर छह महीने में अपनी सूची को बढ़ाते जाइए और अपने हिस्से के कार्बन उत्सर्जन में कटौती करते जाइए। यह तभी संभव है जब आप यह सोचेंगे कि आप भी इस पृथ्वी ग्रह का हिस्सा हैं। अपने आप को इस तरह प्रशिक्षित कीजिए कि जो आपके पास है उसी में आनंद का अनुभव कर सकें।


भारती चतुर्वेदी (निदेशक- चिंतन, एनवायरन्मेंटल रिसर्च एंड एक्शन ग्रुप


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