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…और दायित्वबोध कराने वाला एक और महत्वपूर्ण सप्ताह गुजर गया। बीते सप्ताह बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों के प्रति जन जागरूकता फैलाने वाली दो बहुत अहम तिथियां पड़ी थीं। 21 मार्च को विश्व वानिकी दिवस तो 22 मार्च को विश्व जल दिवस था। जल और जंगल जैसे दो बेशकीमती प्राकृतिक संसाधनों की महत्ता और उनके संरक्षण के प्रति लोगों में चेतना भरने के लिए इन दिवसों का हर साल वैश्विक स्तर पर आयोजन किया जाता रहा है।
जल और जंगल के बीच एक प्राकृतिक रिश्ता है। जल है तो जंगल है और जंगल है तो जल है। इन दोनों प्राकृतिक संसाधनों का सीधा नाता मानव अस्तित्व से जुड़ा है। धरती का फेफड़ा कहलाने वाले पेड़ों का हमारे जीवन में सर्वत्र महत्व है, लेकिन सबसे बड़ा लाभ इनके द्वारा प्राणवायु ऑक्सीजन का उत्सर्जन और वायुमंडल को दूषित करने वाली एवं ग्लोबल वार्मिंग की जिम्मेदार गैस कार्बनडाई आक्साइड का अवशोषण करना है। अगर पेड़ नहीं होंगे तो ऑक्सीजन की कमी से हमारी सांसें घुट जाएंगी। इसी तरह अनमोल जल की भी महत्ता सर्वविदित है। प्यास लगने के बाद कोई भी तरल पदार्थ जल का विकल्प नहीं बन सकता है। तमाम वैज्ञानिक उपलब्धियों के बावजूद भी इसे कृत्रिम ढंग से अभी तक नहीं बनाया जा सका है। कुदरती जल ही हमें और हमारी सभ्यता को अभी तक बनाए रखे है। इसके अलावा भी जल हमारे जीवन के हर क्षेत्र के लिए बहुपयोगी है।
अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर अपने जीवनदायी इन प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए ऐसे आयोजनों की जरूरत क्यों पड़ी? दरअसल धरती पर मौजूद मानव और प्राकृतिक संसाधनों के बीच काफी अर्से तक संतुलन कायम रहा। सह अस्तित्व की सांस्कृतिक विरासत के बूते हम एक दूसरे को लंबे अर्से तक लाभान्वित करते रहे। बदलते समय के साथ हमारा लालच बढ़ता गया। आर्थिक विकास की प्रतिद्वंद्विता के साथ-साथ हमारी आबादी भी बढ़ी। लिहाजा पहले जहां हम इन संसाधनों का उपभोग भर करते थे, अब दोहन करने लगे। लंबे समय तक चली इस प्रक्रिया के बीच हमें इन संसाधनों के रखरखाव और संरक्षण का ध्यान ही नहीं रहा। न ही हमने कभी इन्हें रिचार्ज करने की कोशिश की। हम पेयजल, कृषि, उद्योगों और अन्य जरूरतों के लिए धरती की कोख को सूखी करते गए। जमीन के अधिकाधिक इस्तेमाल के लिए वनों एवं पेड़ों की कटाई की तनिक परवाह नहीं की। नतीजा सामने आ रहा है। प्राकृतिक संसाधनों का संकट गहराने लगा है। पेयजल संकट से दुनिया का एक बड़ा हिस्सा जूझ रहा है। वानिकी को नष्ट करने से हर साल बाढ़, सूखा, भूस्खलन और सबसे बड़ी ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या सामने खड़ी है।
प्राकृतिक संसाधनों की कमी से खड़ी होने वाली समस्याएं जब सामने आईं तो हमें समझ में आया। अब तक बहुत देर हो चुकी थी। फिर भी वैश्विक स्तर पर कुछ संस्थाओं ने इन संसाधनों के संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए ऐसे दिवसों को मनाना शुरू किया। हर साल मनाए जाने वाले ये दिवस अब जैसे परंपरागत होते जा रहे हैं। कुछ सरकारी संस्थाएं और समाजसेवी संगठन इन दिवसों पर थोड़ा सक्रिय जरूर हो जाते हैं लेकिन आम जनमानस जिसे इन प्राकृतिक संसाधनों की कमी का सर्वाधिक कष्ट उठाना पड़ता है, वह इन आयोजन के लक्ष्यों से जैसे विरक्त रहता है। ऐसे नहीं चलेगा। अपनी आगामी पीढ़ियों के लिए अगर पानी और ऑक्सीजन बचाए रखना है तो इन संसाधनों को हमें आज से ही बचाना होगा। देर अभी भी नहीं हुई है। सह अस्तित्व के संस्कृति को जीने की। तो आइए, अब यह बड़ा मुद्दा है कि हम बिना किसी तरफ देखे खुद अपने इन बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों को बचाने का आज ही संकल्प लें।
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थोड़ा है स्वच्छ जल
धरती का तीन चौथाई हिस्सा जलाच्छादित है, लेकिन इसमें पीने योग्य स्वच्छ जल की हिस्सेदारी अंशमात्र ही है। धरती पर मौजूद जल की कुल मात्रा 1.4 अरब घन किमी है। इस पानी से पूरी पृथ्वी को तीन किमी चौड़ी पानी की परत से ढका जा सकता है। यहां मौजूद कुल पानी का करीब 95 फीसद महासागरों में मौजूद है जो लवणीय होने के कारण पीने या अन्य उपयोग लायक नहीं है। चार फीसद पानी ध्रुवों पर मौजूद बर्फ में जमा है। शेष एक फीसदी हिस्से के तहत भूगर्भ में जमा पानी समेत जल चक्र में मौजूद कुल स्वच्छ जल की मात्रा आती है। कुल जल की 0.1 फीसद मात्रा स्वच्छ जल के रूप में नदियों, झीलों और पानी की धाराओं में विद्यमान है
धरती पर उपलब्ध कुल जल की मात्रा-100%
झीलों और नदियों में विद्यमान सतह पर मौजूद जल
10%
ग्लेशियरों और पर्वत की चोटियों में मौजूद है
60%
भूजल के रूप में, लेकिन इसकी कुछ मात्रा बहुत गहराई और पहुंच से बाहर है
30%
इन सबको मिलाकर केवल 2.5% स्वच्छ जल के हिस्से में से
25 मार्च को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “जल संकट: देश की कहानी” पढ़ने के लिए क्लिक करें.
25 मार्च को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “जल है जीवन” पढ़ने के लिए क्लिक करें.
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