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अभी तो विकास पर्यावरण से कम जरूरी नहीं

मुद्दा
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RAJIV_KUMARपर्यावरण और विकास के बीच अजीब रिश्ता है। जब देश की अर्थव्यवस्था की  विकास दर बहुत सुस्त थी तब पर्यावरण कभी बड़ा मुद्दा नहीं रहा। अब जब यह विकास दर कुलांचे भर रही है तो पर्यावरण सभी के लिए महत्वपूर्ण हो गया है। यह महत्वपूर्ण है, इससे कोई भी इंकार नहीं कर सकता लेकिन विकास आज देश के सामने सबसे बड़ा मुद्दा है, इसे भी स्वीकार किया जाना चाहिए। आर्थिक विकास की दर सीधे तौर पर गरीबी और भुखमरी उन्मूलन, रोजगार की उपलब्धता और आम जनता के जीवन स्तर की बेहतरी से जुड़ा हुआ है। अभी अर्थव्यवस्था में नौ फीसदी और दस फीसदी की वृद्धि दर हासिल करने की बात हो रही है, इस दर से भी गरीबी दूर करने में दशकों लग जाएंगे।


देश में बेरोजगारी व्यापक पैमाने पर मौजूद है। इसे दूर करने के लिए हर वर्ष 1.2 करोड़ युवाओं को रोजगार देने की जरुरत है। इतनी भारी तादाद में युवाओं को दुनिया भर के सेवा क्षेत्र रोजगार मुहैया नहीं करा सकते। इन्हें रोजगार सिर्फ मैन्युफैक्चरिंग उद्योग ही दे सकते है। जिसके लिए हमें बड़े पैमाने पर उद्योग धंधे स्थापित करने होंगे। इनके लिए हमें जमीन भी चाहिए, बिजली भी चाहिए और अन्य प्राकृतिक संसाधन भी चाहिए। जाहिर है कि इन उद्योगों को लगाना बगैर पर्यावरण मंजूरी के संभव नहीं होगा। मेरा मानना है कि सरकार को इस बारे में अपने नियम बिल्कुल साफ बनाने चाहिए। वह सख्त से सख्त पर्यावरण नियम बनाये लेकिन उसे स्पष्ट रखे।


हाल के दिनों में कई परियोजनाओं के साथ हुआ कि उन्हें सारी मंजूरी मिलने के बावजूद बाद में काम शुरू नहीं होने दिया गया। केंद्र व राज्य सरकार ने दक्षिण कोरियाई कंपनी पोस्को को निवेश की सारी मंजूरी दे दी लेकिन अभी तक यह कंपनी अपना काम शुरू नहीं कर सकी है। यह कंपनी 12 अरब डॉलर निवेश कर रही है और सवा लाख लोगों को सीधे या परोक्ष तौर पर रोजगार देगी। उड़ीसा जैसे गरीब राज्य के लिए यह परियोजना बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन मुझे बताया गया है कि सिर्फ 150 परिवारों ने पर्यावरण के मुद्दे पर इसमें रोड़े अटका रखे है। विकास के लिए अहम ऊर्जा की हमारे देश में बहुत संकट है। पर्यावरण के मुद्दे से देश का बिजली उत्पादन प्रभावित हो रहा है। हमें बीच का एक ऐसा रास्ता निकालना ही होगा जिससे तेज आर्थिक विकास पर पर्यावरण का ग्र्रहण नहीं लग सके।


05 जून को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “बेकार है विकास का पुराना मॉडल” पढ़ने के लिए क्लिक करें.


05 जून को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “प्राकृतिक संसाधनों के संवर्द्धन के साथ विकास हो” पढ़ने के लिए क्लिक करें.


05 जून को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “बहुत पुरानी है हमारी सह अस्तित्व की संस्कृति” पढ़ने के लिए क्लिक करें.


05 जून को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “एक बड़ी और अंतहीन बहस!” पढ़ने के लिए क्लिक करें.


साभार : दैनिक जागरण 05 जून 2011 (रविवार)


नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.

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