Menu
blogid : 4582 postid : 2510

खेती किसानी पड़ेगी बचानी

मुद्दा
मुद्दा
  • 442 Posts
  • 263 Comments


देविंदर शर्मा (विशेषज्ञ, कृषि एवं खाद्य मामले)
देविंदर शर्मा (विशेषज्ञ, कृषि एवं खाद्य मामले)

भारती-वॉलमार्ट पंजाब के किसानों से आठ रुपये प्रति किलो बेबीकॉर्न खरीदती है। थोक में इसे 100 रुपये प्रति किग्र्रा बेचती है। इसी को खुदरा बाजार में 200 रुपये प्रति किग्र्रा में बेचा जाता है। इन सबके बीच किसान को उपभोक्ता मूल्य का महज 0.3 प्रतिशत हिस्सा मिलता है।

इसके मायने एकदम स्पष्ट हैं। यानी कि संगठित रिटेल से किसानों को बेहतर दाम नहीं मिलता। इसको अमेरिका के अनुभव से भी समझा जा सकता है जहां वॉलमार्ट ने 50 साल पूरे किए हैं। पहला, यदि वहां किसानों की बेहतर आमदनी हो रही होती तो वहां किसानों की संख्या घटकर जनसंख्या का एक प्रतिशत से भी कम क्यों रह गई? दूसरा अमेरिका के किसानों को जिंदा रखने का कारण सरकार की प्रत्यक्ष आय सहयोग है। 1997-2008 के बीच अमेरिका ने किसानों को 12.60 लाख करोड़ रुपये की सहायता दी है।


यूरोप में रिटेल कंपनियों के बावजूद हर मिनट एक किसान खेती छोड़ रहा है। यहां आय सहयोग समेत कृषि सब्सिडी दी जाती है। शोध बताते हैं कि यदि सब्सिडी हटा दें तो यहां की कृषि ध्वस्त हो जाएगी।


रिटेल में एफडीआइ से बिचौलियों के खत्म होने का तर्क भी सत्य से परे है। अमेरिकी अध्ययन बताते हैं कि 1950 से पहले जब किसान अपने उत्पाद को एक डॉलर में बेचता था तो उसको 70 सेंट की आमदनी होती थी। 2005 में यह घटकर चार प्रतिशत रह गई है। दरअसल इससे बिचौलियों की एक नई फौज का जन्म होता है। इनको क्वालिटी कंट्रोलर, सर्टिफिकेशन एजेंसी, प्रोसेसर के रूप में देखा जा सकता है।

वॉलमार्ट एक बड़ी बिचौलिया है। बड़े आकार और खरीद क्षमता के कारण बड़ी रिटेल कंपनियां उत्पादक की कीमतों पर बुरा असर डालते हैं। स्कॉटलैंड में कम सुपर मार्केट कीमतें मिलने के कारण वहां के किसानों ने अपने उत्पादन की बेहतर कीमत पाने के लिए ‘फेयर डील गुड’ के नाम से गठबंधन बनाया है।


यह तर्क कि बड़े रिटेल से ग्रामीण आधारभूत ढांचे का निर्माण भी बेमानी है। अमेरिका और यूरोप में सरकारी सहयोग से ऐसा ढांचा विकसित किया गया है। वॉलमार्ट से खाद्य पदार्थों की बर्बादी रुकने की बात भी भ्रम है। यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि अमेरिका में 40 प्रतिशत खाना बर्बाद हो जाता है और 50 प्रतिशत फल एवं सब्जियां सुपरस्टोरों में बर्बाद होने के बाद कचरे के ढेर में फेंक दी जाती हैं।



***************************************************************



प्रभावित पक्षों पर राय


vishnu
vishnu

केंद्र सरकार ने असंगठित खुदरा बाजार पर संगठित खुदरा बाजार के पड़ने वाले असर के अध्ययन करने का जिम्मा इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च आन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस (इक्रीरियर) को सौंपा था। मई, 2009 में वाणिज्य मामलों पर संसद की स्थायी समिति ने भी खुदरा क्षेत्र में घरेलू और विदेशी निवेश को लेकर एक रिपोर्ट दी थी। जुलाई, 2010 में डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रोमोशन (डीआइपीपी) ने भी मल्टीब्रांड रिलेट में विदेशी निवेश को लेकर एक बहस पत्र जारी किया था। अन्य विशेषज्ञों ने भी इस मसले के पक्ष और विपक्ष पर अपने तर्क दिए हैं।


असंगठित खुदरा क्षेत्र



समर्थन में


रोजगार खात्मे के असर का कोई प्रमाण नहीं (इक्रीरियर)

असंगठित क्षेत्र में दुकानों के बंद होने की दर (4.2 फीसद) अंतरराष्ट्रीय मानकों से कम (इक्रीरियर)

इंडोनेशिया और चीन से मिले प्रमाण बताते हैं कि परंपरागत और आधुनिक रिटेल का साथ-साथ अस्तित्व कायम रह सकता है और विकास भी कर सकते हैं (रियरडन एंड गुलाटी)

’ज्यादातर छोटे खुदरा कारोबारी संगठित रिटेल के आने के बाद कामकाज जारी रखने के इच्छुक हैं (इक्रीरियर)


विरोध में


’असंगठित रिटेलर्स के कारोबार और मुनाफे में गिरावट होती है, लेकिन समय के साथ कम होती जाती है (इक्रीरियर)

’सुपरमार्केट की मौजूदगी से फल और सब्जी के परंपरागत कारोबारी की आय में 20-30 फीसद की कमी होती है (सिंह)

’वैल्यु चेन प्रणाली में रोजगार कम होने की क्षमता होती है। सुपरमार्केट अपेक्षाकृत कम रोजगार सृजित कर सकेगा (सिंह)

’रिटेलर्स द्वारा कई उत्पादों को एक

साथ व मोलभाव और मनमानी कीमतों पर बेचने की प्रक्रिया से बेरोजगारी बढ़ेगी (स्थायी समिति)


किसान


समर्थन में


फूलगोभी को सरकारी मंडी के बजाय सीधे रिटेलर को बेचने पर किसान को 25 फीसद ज्यादा कीमतें मिलेंगी। इससे 60 फीसद अधिक मुनाफा होगा (इक्रीरियर) ’संगठित रिटेल से सप्लाई चेन की अक्षमता दूर की जा सकती है। कृषि उत्पादों के भंडारण, वितरण और यातायात प्रणाली को निवेश से बेहतर बनाया जा सकता है। इससे क्षेत्र विशेष में नई तकनीक और विचार लाए जा सकते हैं (डीआइपीपी)



विरोध में


मौजूदा रिटेल संगठित क्षेत्र 60-70 फीसद किसानों की बजाय थोक बाजार से लेता है। इससे बैकएंड बुनियादी सुविधाओं पर असर होता नहीं दिखता है (सिंह)

’सिंचाई, तकनीक और कृषि में क्रेडिट जैसी अन्य समस्याएं भी हैं। इन्हें एफडीआइ नहीं पूरा करती है (सिंह)

’एकाधिकारी शक्तियों में वृद्धि से

किसान कम कीमतों पर बेचने को विवश हो सकते हैं (स्थायी समिति)


उपभोक्ता



समर्थन में


’संगठित रिटेल से कीमतें कम होंगी। उपभोक्ता खर्च बढ़ता है जबकि कम आय वर्ग बचत की ओर उन्मुख होता है (इक्रीरियर)

’इससे बेहतर गुणवत्ता और सुरक्षा मानक वाले उत्पादों को बढ़ावा मिलेगा (डीआइपीपी)



विरोध में


अनुभव बताते हैं कि सुपरमार्केट में फलों और सब्जियों के दाम परंपरागत रिटेल की कीमतों से अधिक होते हैं (सिंह)

कम आय वाले परंपरागत खुदरा को चुनते हैं। सुपरमार्केट से दूरी, मोलभाव की असुविधा और फुटकर सामान लेने की सहूलियत प्रमुख वजहें है.



Tag: walmart,Fdi, foreign direct investment,वॉलमार्ट,केंद्र सरकार,इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च,अमेरिका,यूरोप, किसान,farmer







Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh