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जरूरी नीति पर गैरजरूरी राजनीति

मुद्दा
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प्रो श्रीराम खन्ना (प्रबंध संपादक, कंज्यूमर वॉयस
प्रो श्रीराम खन्ना (प्रबंध संपादक, कंज्यूमर वॉयस

मसला

जनहित से जुड़े। दो अहम मामले। इनमें से पहला खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश तो दूसरा सब्सिडी का कैश ट्रांसफर। दोनों पर धारदार तर्कों के साथ आपत्तियां जताने और इनके पक्ष में वकालत करने वालों की कमी नहीं है। सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों मसलों को लेकर आमने सामने हैं। खुदरा में विदेशी निवेश को रोकने वाला प्रस्ताव संसद में भले ही गिर गया हो लेकिन इस पर जताई जा रही आशंका को एकदम निराधार नहीं साबित किया जा सकता है। इसलिए इन चिंताओं के समाधान के बाद ही इसे लागू करना अर्थव्यवस्था और आमजन के हित में होगा। सब्सिडी के कैश ट्रांसफर पर भी कमोबेश सभी राजनीतिक दलों ने आपत्ति जताई। भले ही इस आपत्ति के स्वरूप अलग रहें हों लेकिन इससे इन्कार नहीं किया जा सकता है कि इस महत्वाकांक्षी योजना पर अमल के बाद न केवल सब्सिडी के दुरुपयोग को रोका जा सकेगा बल्कि भ्रष्टाचार पर भी लगाम लगेगी।


मिसाल

सरकार की इन दोनों नीतियों पर राजनीतिक विरोध की बानगी हैरान करने वाली है। खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश पर वामदल और कभी इस नीति की वकालत करने वाली भाजपा एक साथ खड़े दिखाई दिए। सपा, बसपा, द्रमुक इत्यादि राजनीतिक दलों की कथनी-करनी में अंतर जनता ने साफ देखा। राजनीतिक स्वार्थों के चलते इन दलों के इस विरोधाभास की मिसाल शायद ही मिले। सब्सिडी के कैश ट्रांसफर को लागू करने के समय को लेकर कुछ आपत्तियां सामने आईं, लेकिन वह विरोध करने के लिए विरोध से ज्यादा कुछ नहीं दिखीं।


मर्म

देश और जन हित की बात करने वाले हमारे राजनीतिक दलों की मंशा इन दोनों नीतियों को लेकर स्पष्ट देखी जा चुकी है। बार-बार हम संसद में आम सहमति बनाने की बात करते हैं लेकिन जब विरोध के लिए विरोध करने की मजबूरी हो तो यह सब किताबी बातें लगने लगती हैं। ऐसे में जनकल्याण में सहायक नीतियां पर की जाने वाली ओछी राजनीति हम सबके लिए बड़ा मसला है।



मल्टीब्रांड खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का मुद्दा नया नहीं है। हाल के वर्षों में हुए चुनावों के दौरान विभिन्न राजनीतिक दलों के घोषणा पत्रों में यह मसला शामिल रह चुका है। 2009 लोकसभा चुनावों के बाद से यह संप्रग सरकार के एजेंडे में शामिल रहा है। 14 सितंबर, 2012 को इस नीति पर कैबिनेट की मुहर लगने के बाद इसका मुखर विरोध होने लगा। खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश पर सरकार के इस निर्णय का मैं स्वागत करता हूं। हालांकि मुझे ताज्जुब होता है कि कुछ साल पहले इस मसले के समर्थन में शुरुआती लिखित घोषणापत्र जारी करने वाली भारतीय जनता पार्टी अपनी पूर्व की स्थिति से अब कैसे कलाबाजियां करती दिख रही है। हाल ही में पांच और सात नवंबर को लोकसभा एवं राज्यसभा में इस नीति के विरोध में आया प्रस्ताव भी गिर चुका है।


बहरहाल इस मसले पर राजनीति से परे होकर अगर उपभोक्ताओं के हित के लिहाज से सोचा जाए तो यह नीति फायदेमंद है। इससे हमारे उपभोक्ताओं को निम्नलिखित लाभ हो सकते हैं। ’वॉलमार्ट, कारफूर और टेस्को जैसे बड़े विदेशी खुदरा कारोबारियों के पास यह प्रबंधन क्षमता मौजूद है कि वे निजी ब्रांड के उत्पादों किस कीमत पर खरीदें कि वह भारतीय उपभोक्ताओं की खरीद क्षमता के अंदर हो।’उनके आने से बिचौलियों की शृंखला खत्म होगी जिससे लागत कम आएगी। इससे वे रिटेल में प्रतिस्पर्धी कीमत कम करने में सक्षम होंगे। हमारा मानना है कि बड़े रिटेलरों के आने से बड़ी प्रतिस्पर्धा की शुरुआत होगी जिसका अंतिम लाभ हमारे उपभोक्ता को मिलेगा।


इससे छोटे, लघु और मझोले उद्योग सीधे तौर पर इन बड़ी कंपनियों को अपने उत्पादों की आपूर्ति करने में सक्षम होंगे। ये उद्योग अपना दायरा बढ़ा सकते हैं। बड़ी खुदरा कंपनियों द्वारा घरेलू बाजार के लिए भारी ऑर्डर को ध्यान में रखते हुए ये कंपनियां तकनीक के इस्तेमाल से अपने उत्पाद की गुणवत्ता को बेहतर कर सकते हैं। जो मौजूदा समय में ये कंपनियां नहीं कर पा रही हैं।


’विदेशी खुदरा कंपनियां ताजी सब्जियां और फल खरीदकर वैकल्पिक तरीके द्वारा उसे ताजा बनाए रखने में सक्षम होगी। वे प्रतिस्पर्धी सप्लाई चेन तैयार कर सकती हैं और उत्पादक और उपभोक्ता के बीच सीधा नाता जोड़ सकती हैं। वर्तमान में सप्लाई चेन के तहत कई स्तर पर बिचौलिए काबिज हैं जो अपना कमीशन ऐंठ कर लागत को बढ़ाने का काम करते हैं। इस लंबे चैनल में उत्पादक को दिए जाने वाले दाम और रिटेल की कीमत में काफी अंतर होता है। इस प्रणाली में अपने ही उत्पाद को बाजार से खरीदने वाला उत्पादक खुद को ठगा सा महसूस करता है। विदेशी कंपनियों के बाजार में आने पर उत्पादक और उपभोक्ता स्तर पर कीमतों का यह अंतर गिरेगा। ’थोक मंडी में एक वैकल्पिक खरीदार किसानों की बाट जोहता दिखेगा। जहां अभी मंडी में थोक विक्रेता कृषि उत्पादों की कीमतों को चालबाजी से गिरा देते हैं और किसानों को उनके रहमोकरम पर रहना पड़ता है। भारतीय उपभोक्ताओं को फलों और सजिब्यों की थोक और खुदरा कीमतों में 50-100 प्रतिशत का अंतर साफ दिखाई दे जाता है। केंद्र सरकार के इस निर्णय से राज्य सरकारों को एग्र्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग (एपीएम) कानूनों में सुधार की ओर उन्मुख होना पड़ेगा।


खुदरा क्षेत्र में एफडीआइ


सरकार ने वैश्विक निवेशकों के लिए खुदरा क्षेत्र को खोलने का निर्णय लिया है। इस नीति के तहत विदेश की बड़ी-बड़ी कंपनियां मल्टी ब्रांड खुदरा क्षेत्र में 51 फीसद और सिंगल ब्रांड खुदरा क्षेत्र में 100 फीसद निवेश कर सकेंगी। इसका मतलब यह हुआ कि मल्टी ब्रांड में वे किसी भारतीय कंपनी के साथ मिलकर स्टोर चला सकेंगी जिसमें उनकी 51 फीसद हिस्सेदारी होगी। जबकि सिंगल ब्रांड में विदेशी कंपनियां पूर्ण स्वामित्व वाले स्टोर खोलने में सक्षम होंगी।


अन्य देशों में मल्टी ब्रांड रिटेल एफडीआइ पॉलिसी


देशलाभ
चीन

विदेशी निवेश सीमा

100%

1992 में पहली बार स्वीकृति मिली। तब निवेश की सीमा 49 फीसद तय की गई। अब कोई रोक नहीं

1996 से 2001 के बीच 600 से अधिक हाइपरमार्ट

छोटे किराना स्टोरों की संख्या 19 लाख से 25 लाख पहुंची

1992 से 2001 के बीच खुदरा और थोक में रोजगार 2.8 करोड़ से बढ़कर 5.4 करोड़ पहुंचा

थाईलैंड

निवेश सीमा

100%

ऐसे देश में गिना जाता है जहां खुदरा में विदेशी निवेश ने स्थानीय खुदरा कारोबारियों पर विपरीत असर डाला है

खुदरा और थोक स्टोर के लिए सीमित पूंजी की जरूरत। कृषि प्रसंस्करण उद्योग में वृद्धि

रूस

निवेश सीमा

100%

इस सदी के पहले दशक में सुपरमार्केट क्रांति आई

क्षेत्र में भारी वृद्धि दर्ज की गई

इंडोनेशिया

निवेश सीमा

100%

आधुनिक खुदरा कारोबार की शुरुआत पिछली सदी के आखिरी दशक में हुई

स्टोरों की संख्या को लेकर कोई सीमा नहीं तय

इसके अलावा ब्राजील, अर्जेंटीना, सिंगापुर और चिली में भी खुदरा क्षेत्र में 100 प्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति है जबकि मलेशिया में इस क्षेत्र में विदेशी निवेश को लेकर सीमा निश्चित है।


श्रेणीवार संगठित खुदरा क्षेत्र


फूड एंड ग्र्रॉसरी 0.7

बीवेरेज 3.1

क्लॉथिंग एंड फूटवियर 18.5

फर्नीचर, फर्नीशिंग एप्लायसेंज

एंड सर्विसेज   10.2

नॉन इंस्टीट्यूशनल हेल्थकेयर  2.1

स्पोट्र्स गुड्स, इंटरटेनमेंट,

इक्विपमेंट एंड बुक्स   16.0

पर्सनल केयर  5.4

ज्वैलरी, वाचेज इत्यादि 5.6


सरकार के दावे

ङ्क्तखुदरा क्षेत्र में भारी निवेश से एग्र्रो प्रोसेसिंग, शार्टिंग-मार्केटिंग, लॉजिस्टिक मैनेजमेंट और फ्रंट एंड रिटेल क्षेत्रों में रोजगार के मौके सृजित होंगे।

ङ्क्तबिचौलियों की समाप्ति से किसानों को उनके उत्पादों की उचित कीमत सुनिश्चित होगी।

ङ्क्तविदेशी कंपनियां सप्लाई चेन सुनिश्चित करेंगी

ङ्क्तकोल्ड चेन, रेफ्रीजेरेशन, ट्रांसपोर्टेशन, पैकिंग, शार्टिंग और प्रोसेसिंग तैयार करने की बाध्यता से कृषि उत्पादों के नुकसान में कमी आएगी।

ङ्क्तसप्लाई चेन की दक्षता और उत्पादों की बर्बादी पर रोक से खाद्य वस्तुओं की महंगाई कम होगी।

ङ्क्तकुटीर और लघु उद्योगों से 30 फीसद खरीदारी का प्रावधान मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को प्रोत्साहन मिलेगा।

ङ्क्तकिसी भी एंटी प्रतिस्पर्धी कार्य के लिए प्रतिस्पर्धा आयोग (कंपटीशन कमीशन) के रूप में हमारे पास कानूनी ढांचा मौजूद है।

ङ्क्तचीन में खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश लागू किए जाने के बाद वहां के खुदरा और थोक कारोबार में प्रभावकारी वृद्धि देखी गई है। थाईलैंड के कृषि प्रसंस्करण उद्योग में अप्रत्याशित वृद्धि दिखी है।


विपक्ष के तर्क


ङ्क्तइससे रोजगार समाप्त होंगे। अंतरराष्ट्रीय अनुभव बताता है कि सुपरमार्केट से छोटे खुदरा व्यापारी खत्म हो जाते हैं। विकसित देश इसके गवाह हैं। भारत में दुकानों का घनत्व दुनिया में सर्वाधिक है। यहां एक हजार लोगों पर 11 दुकानें हैं। 1.2 करोड़ दुकानों में चार करोड़ से ज्यादा लोग रोजगार कर रहे हैं। ङ्क्तमनमानी कीमतों के दम पर विदेशी खुदरा कंपनियां अपना एकाधिकार स्थापित कर लेंगी।

ङ्क्तछोटे-छोटे हिस्सों वाला बाजार उपभोक्ता के लिए बड़े विकल्प का माध्यम है। एकीकृत बाजार उपभोक्ता को संकुचित कर देता है। विदेशी रिटेल कंपनियां यहां अतिरिक्त बाजार नहीं सृजित करेंगी बल्कि मौजूद बाजार पर कब्जा करेंगी।

ङ्क्तमैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र ठप हो जाएगा। विदेशी कंपनियां घरेलू की जगह बाहरी माल खरीदती हैं।

ङ्क्तभारत चीन की तुलना संगत नहीं है। मैन्यूफैक्चरिंग में चीन पहले से स्थापित अर्थव्यवस्था है। कम लागत और कीमत वाले उत्पादों के बूते यह वॉलमार्ट और अन्य विदेशी खुदरा कंपनियों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है।


Tag: खुदरा क्षेत्र,एफडीआइ,वॉलमार्ट,ब्राजील, अर्जेंटीना, सिंगापुर,fdi,walmart


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