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हर साल कोहरा ट्रेनों पर काल बन कर गिरता है। इस दौरान होने वाली भीषण दुर्घटनाएं कई बेगुनाह यात्रियों को असमय काल का ग्रास बना देती हैं। इसके बावजूद कोहरे को लेकर रेलवे प्रशासन का रवैया बहुत गभीर नजर नहीं आता। वह इसे उत्तर भारत में कुछ समय के लिए कुछ लाइनों और कुछ ट्रेनों की समस्या मानकर चलता हैं। यही वजह है कि आज तक इससे निपटने के पुख्ता उपाय नहीं किए जा सके हैं। इससे निपटने का रेलवे के पास एकमात्र कारगर उपाय आज भी वही है जो पचास साल पहले था। यानी ट्रेनों की रफ्तार कम कर देना और ज्यादा लेट होने पर उन्हें रद कर देना। यह अलग बात है कि इससे ट्रेनों का पूरा शिड्यूल गड़बड़ा जाता है और यात्रियों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
कोहरे से निपटने के लिए कोई दस साल पहले रेलवे ने आइआइटी कानपुर और आरडीएसओ लखनऊ के साथ मिलकर फॉग विजन उपकरण बनाने की एक परियोजना शुरू की थी। इंफ्रारेड लेजर रडार आधारित इस उपकरण को बनाने का जिम्मा भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड को सौंपा गया था। हालांकि बाद में इस करार को रद कर दिया गया। ताजा स्थिति यह है कि आइआइटी कानपुर ने इसका हार्डवेयर डिजाइन तो विकसित कर लिया है, लेकिन अन्य कार्य अभी बाकी है। इसके पूरी तरह विकसित होने पर भीषण कोहरे में भी ट्रेन ड्राइवर के लिए 400 मीटर तक ट्रैक जाचना सभव हो जाएगा। अवरोध की स्थिति में ट्रेन में स्वत: ब्रेक लग जाएगा।
कोहरे से जुड़ी ज्यादातर दुर्घटनाएं दिल्ली-कानपुर-इलाहाबाद और दिल्ली-लुधियाना-जम्मू रूट पर होती हैं। लिहाजा इससे जुड़े उपायों का जिम्मा मुख्यत: उत्तर रेलवे का है। आइआइटी व आरडीएसओ की विफलता देख उत्तर रेलवे ने रेलवे बोर्ड के निर्देश पर अब फॉग सेफ डिवाइस लगाने तथा अन्य परिचालनात्मक उपायों पर ध्यान केंद्रित किया है। उत्तर रेलवे के मुख्य जनसपर्क अधिकारी शैलेंद्र शर्मा के मुताबिक अब तक 182 को ट्रेनों में फॉग सेफ डिवाइस लगाई जा चुकी है। जबकि चालू वर्ष के लिए 400 और डिवाइस खरीदने की योजना है। लगाने से पहले दिल्ली-लुधियाना, अंबाला-सहारनपुर और बरेली-मुरादाबाद-गाजियाबाद सेक्शन पर इसका ट्रायल किया जा चुका है। यह डिवाइस ड्राइवर को बताती है कि सिग्नल कितनी दूर है। जिसके मुताबिक वह ट्रेन की रफ्तार तय कर सकता है। इससे कोहरे के दौरान ट्रेनों को अनावश्यक तौर पर धीमा रखने से बचने में मदद मिली है। इसके अलावा अन्य सावधानियों पर भी पूरा ध्यान दिया जा रहा है।
बहरहाल, बड़े-बड़े दावों के बावजूद स्थिति में कोई बड़ा सुधार नहीं दिखाई देता। कोहरे के दौरान ट्रेनों को टक्कर से बचाने के लिए स्वदेश में विकसित एंटी कोलीजन डिवाइस [एसीडी] बेहद कारगर साबित हो सकती थी। लेकिन इसे पूर्वोत्तर सीमात रेलवे, दक्षिण-पश्चिम रेलवे तथा दक्षिण रेलवे के कुछ हिस्सों को छोड़ और कहीं नहीं लगाया जा सका है। इसकी कुछ खामियों के कारण विकल्प के रूप में यूरोपीय ट्रेन प्रोटेक्शन एंड वार्निग सिस्टम [टीपीडब्लूएस] लगाने की घोषणा भी रेल बजट में हो चुकी है। ऊंची लागत के कारण उसका क्रियान्वयन भी बेहद सुस्त है। फिलहाल दिल्ली-मथुरा रूट पर इसका ट्रायल चल रहा है। फिलहाल कोहरे के दौरान अबाधित रेलयात्रा एक सपना ही है।
दुर्घटना रोधी प्रणालिया
एंटी कोलीजन डिवाइस: केवल पूर्वोत्तर सीमात एव दक्षिण-पश्चिम रेलवे में लगी है.
ट्रेन प्रोटेक्शन एंड वार्निग सिस्टम: दिल्ली-मथुरा सेक्शन में ट्रायल चल रहा है.
फॉग विजन उपकरण: कोहरे में ट्रेनों को पूरी रफ्तार में चलाने और टक्कर रोकने की इस प्रणाली पर दस साल से काम, लेकिन अभी भी तैयार नहीं.
फॉग सेफ डिवाइस: यह ग्लोबल पोजीशनिग सिस्टम से जुड़ा उपकरण है जो ट्रेन ड्राइवर को आगे आने वाले सिग्नल के बारे में बताता है। उत्तर रेलवे ने 400 डिवाइस खरीदी, ज्यादातर लगाई गईं, लेकिन ट्रेनों की रफ्तार अब भी धीमी, वैसे कोहरे से दुर्घटना अब तक नहीं.
ट्रेनों पर असर
* दिसंबर, 2008 से जनवरी, 2009 के बीच केवल दिल्ली प्रभाग में 1646 यात्री गाड़ियां लेट
* जनवरी, 2010 में 15,704 यात्री गाड़ियां लेट, 4371 ट्रेनें रद हुई
सालाना नुकसान: पचास से सौ करोड़ रुपये के बीच
घातक दुर्घटनाएं: दिल्ली-कानपुर-इलाहाबाद, दिल्ली-आगरा तथा दिल्ली-लुधियाना-जम्मू सेक्शन के बीच : [सजय सिह, नई दिल्ली]
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27 नवंबर को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “कोहरे का बढ़ता कहर” पढ़ने के लिए क्लिक करें.
साभार : दैनिक जागरण 27 नवंबर 2011 (रविवार)
नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.
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