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जनता त्रस्त सरकार मस्त!

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सवाल: हर दिन देश की दस बड़ी खबरों में से शीर्ष की कई खबरें घोटाले और भ्रष्टाचार से जुड़ी होती हैं । आलम यह है कि जनता त्रस्त और सरकार मस्त। समाज के सभी स्तरों पर इसका मकड़जाल फैल चुका है। भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए कार्यरत एजेंसियां कुछ मामलों में भले ही असरकारी रहीं हों, लेकिन राजनेताओं के मामले में इनकी जांच का नतीजा ढाक के तीन पात ही साबित हुआ है। हाल में घोटालों की बाढ़ में राजनेताओं की सहभागिता ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

साख: भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए खासतौर पर बनाया गया लोकपाल विधेयक पिछले 42 सालों से पारित ही नहीं हो पा रहा है। यह हाल तब है जब सरकारी लोकपाल विधेयक को नख-दंत विहीन बताया जा रहा है। इसमें ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिससे भ्रष्टाचार के दानव का खात्मा हो सके। इस विधेयक की तमाम खामियों को दूर करने के लिए जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे पांच अप्रैल से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर जा रहे हैं ।

सरोकार: आम आदमी के प्रतिनिधि के तौर पर अन्ना की मांग है कि इस विधेयक को तैयार करने वाली समिति में गैरसरकारी सदस्यों को भी शामिल करे। बहरहाल सरकार द्वारा अन्ना से बातचीत के लिए भेजे गए प्रतिनिधिमंडल का नतीजा भी सकारात्मक नहीं रहा। हालात यह हो गए हैं कि आम आदमी को इसलिए आमरण अनशन करना पड़ रहा है जिससे वह भ्रष्टाचार से निपटने में एक प्रभावी लोकपाल कानून बनाने पर सरकार को विवश कर सके। सरकार की यह प्रवृत्ति और कथनी व करनी में अंतर आज का बड़ा मुद्दा है।

 

‘आजादी की दूसरी लड़ाई है भ्रष्टाचार से संघर्ष’

 

समाजसेवी अन्ना हजारे मानते है कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए ठीक तरह से बना हुआ लोकपाल कानून लागू करना होगा। इसको ताकतवर बनाने के लिए पांच अप्रैल से दिल्ली के जंतर-मंतर पर वे आमरण अनशन करने जा रहे हैं। इस मुद्दे पर विशेष संवाददाता ओमप्रकाश तिवारी ने उनसे बातचीत की

हाल में आपने शिवाजी के रास्ते पर चलने की बात कही। एक गांधीवादी के विचारों में यह बदलाव क्यों? आज के हालात को देखते हुए लगता है कि अब गांधी के अहिंसावादी विचारों के साथ-साथ हमें छत्रपति शिवाजी के विचारों को भी साथ लेकर चलना पड़ेगा। आज अन्याय, अत्याचार और भ्रष्टाचार इतना बढ़ रहा है कि आम आदमी का तो जीना ही मुश्किल हो रहा है। इसलिए आम जनता पर जुल्म करनेवालों को अब गांधी जी के विचारों से समझाया नहीं जा सकता । उनके लिए तो शिवाजी की तलवार से हाथ काटने का रास्ता ही शेष बचता है। मेरे कहने का आशय तलवार चलाना नहीं है। लेकिन जैसा कि गांधी जी कहा करते थे कि हमें अपने शब्दों में भी कठोरता नहीं बरतनी चाहिए, वह बात अब लागू कर पाना जरा मुश्किल लगता है।

इससे पहले सूचना का अधिकार कानून लागू करवाने के लिए आपने संघर्ष किया था। वह लागू भी हुआ। भ्रष्टाचार से लड़ाई की दिशा में इस कानून को कैसे देखते हैं आप? सूचना का अधिकार कानून लागू होने से भी हमें अभी शत-प्रतिशत सफलता नहीं मिली है। अभी भी आरटीआइ में काफी कमियां हैं । लेकिन एक बात अच्छी हुई कि आजादी के 64 साल के बाद आरटीआइ के कारण बड़े-बड़े घोटाले बाहर आ रहे हैं , लेकिन घोटालेबाज जेल नहीं जा रहे हैं । इसके लिए हम लोकपाल विधेयक पारित करने का आग्रह कर रहे हैं । इसलिए लोकपाल कानून ऐसा बनना चाहिए जो घोटालेबाजों को जेल भेजने में सक्षम हो और उनपर कठोर कानूनी कार्रवाई हो सके। फांसी तो गांधी के विचार में फिट नहीं बैठती है, लेकिन मेरा मानना है कि अब हमें उसका भी प्रावधान करना पड़ेगा। क्योंकि उसके बिना अब भ्रष्टाचार पर काबू पाना संभव नहीं दिखता।

क्या आपको लगता है कि ऐसा कानून सरकार बनाएगी? लोकपाल विधेयक लागू करवाने के लिए देश की जनता को सड़क पर उतरना पड़ेगा। हम देश की जनता का आह्वान कर रहे हैं कि इसे आजादी की लड़ाई समझकर वह सड़क पर उतरे। अगर यह लोकपाल विधेयक सही तरीके से बन गया तो भ्रष्टाचार पर 90 फीसदी अंकुश लग जाएगा, और गरीब आदमी को आजादी का अनुभव होने लगेगा।

लोकपाल के लिए आपने पांच अप्रैल से आमरण अनशन की घोषणा की है। किसके समर्थन की उम्मीद है? हमें इस अनशन में देश भर की जनता का समर्थन मिलने की उम्मीद है। हमने एक एसएमएस नंबर (02261550789) जारी कर रखा है लोगों की भावनाएं जानने के लिए। इस नंबर पर अब तक साढ़े छह लाख लोगों ने अपने को पंजीकृत कराया है। अब जनता भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़ी हो रही है ।

क्या इस आंदोलन में दिल्ली में बैठे नेताओं को भी अपने साथ खड़ा करेंगे आप? मैं तो सभी दलों के सांसदों-मंत्रियों से अपील कर रहा हूं कि जब मैं अनशन पर बैठूं तो वे सभी लोग हमारा साथ देने के लिए आगे आएं। जो जितने दिन बैठ सके, आएं हमारे साथ। मैं तो अपने प्रधानमंत्री से भी अपील कर रहा हूं कि वे भी एक दिन का अनशन करें। मैं ये नहीं कहता कि मेरे साथ जंतर-मंतर पर बैठकर ही अनशन करें। वो अपने घर में ही करें।

अगर प्रधानमंत्री आपसे अनशन न करने की अपील करने जंतर-मंतर आ जाएं तो क्या आप पीछे हट जाएंगे? यदि वे हमें यह आश्वासन देते हैं कि वह देश के हित में जरूरी इस कदम को उठाएंगे तो हमें अनशन करने की जरूरत ही क्यों पड़ेगी। तब हम जरूर सोचेंगे।

यदि वह अनशन शुरू होने से पहले ही यह आश्वासन दे देते हैं तो? सिर्फ आश्वासन पर हमारा विश्वास नहीं है। हम उनसे प्रत्यक्ष कार्रवाई की अपेक्षा करते हैं । यदि वह लोकपाल विधेयक तैयार करने के लिए एक संयुक्त समिति गठित करते हैं , जिसमें आधे लोग उनके और आधे लोग हमारे हों, तो हमें अपना निर्णय पीछे लेने में कोई हर्ज नहीं है। हमारी यह जिद कतई नहीं है कि लोकपाल विधेयक संसद में आएगा तभी हम अनशन से पीछे हटेंगे। लेकिन एक ठोस शुरुआत तो वह करें। देश की जनता को यह विश्वास होना जरूरी है कि लोकपाल विधेयक पर काम शुरू हो चुका है। तो हमें अनशन पर बैठने की कोई जरूरत ही नहीं रहेगी।

03 अप्रैल को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “अब आमरण अनशन ही अंतिम अस्त्र” पढ़ने के लिए क्लिक करें.

03 अप्रैल को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “खास है जन लोकपाल विधेयक” पढ़ने के लिए क्लिक करें.

03 अप्रैल को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “जनता द्वारा तैयार जनता के लिए बिल” पढ़ने के लिए क्लिक करें.

03 अप्रैल को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “भ्रष्टाचार हटाने में लोकपाल की भूमिका” पढ़ने के लिए क्लिक करें.

साभार : दैनिक जागरण 03 अप्रैल 2011 (रविवार)
मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.

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