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* बढ़ती हिंसा
* प्रशासन
* वित्त की जरूरत
* नेतृत्व क्षमता
* आंतरिक लोकतंत्र का अभाव
* महिलाओं की भागीदारी
* पार्टी सदस्यों को प्रशिक्षण
* सिद्धांतों और राजनीतिक मूल्यों का अभाव
* प्रचार अभियान का तरीका
* विघटन एवं गठबंधन की राजनीति
* लंबा-चौड़ा मंत्रि मंडल
सुधार के सुझाव
शैक्षिक एवं शोध संस्थाओं, राजनीतिक पर्यवेक्षकों व विश्लेषकों और सरकार द्वारा गठित समितियों और आयोगों ने देश में दलीय प्रणाली में सुधार के लिए समय समय पर अपने प्रस्ताव दिए हैं।
केआर नारायणन [पूर्व राष्ट्रपति]
पार्टियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि चुनाव में अपराधियों को टिकट न मिले। इस तरह बिना कोई कानून बनाए ही राजनीति में अपराधियों के प्रवेश को रोका जा सकता है। दलबदल कानून ढंग से काम नहीं कर पा रहा है। अगर कोई व्यक्ति किसी दल से चुनाव जीतकर आया हो और वह पार्टी छोड़ना चाहता है तो उसे पहले संसद या विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देना चाहिए। फिर चुनाव का सामना करे।
पार्टी सुधार पर सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च स्टडी [लोक राज बराल] [2000]
वीएम तारकुंडे समिति [1974-75]
स्वतंत्र संस्था सिटिजंस ऑफ डेमोक्रेसी की ओर से जयप्रकाश नारायन ने चुनावी सुधार के लिए तारकुंडे समिति का गठन किया था। इस समिति की सबसे प्रमुख सिफारिश थी कि एक ऐसा कानून होना चाहिए जिसके तहत सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को अपने खातों, आय के स्नोतों और खर्च के ब्यौरे का ऑडिट कराना जरूरी हो। खाते में गड़बड़ी दंडनीय अपराध बनाया जाए.
दिनेश गोस्वामी समिति रिपोर्ट [1990]
जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर समिति [1994]
सभी पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र सुनिश्चित करने के लिए कानून होना चाहिए। पार्टियों के खातों की जांच की जानी चाहिए। एक ऐसी संस्था होनी चाहिए जो यह जांच और विचार करे कि कोई दल सांप्रदायिकता को बढ़ावा तो नहीं दे रहा है या किसी भी तरह से संविधान विरुद्ध काम कर रहा है.
लॉ कमीशन की रिपोर्ट [1998]
जस्टिस कुलदीप सिंह पैनल
शोध संस्थानों एवं विद्वानों के सुझाव
जनमत
क्या राजनीतिक दलों के संचालन की प्रकिया पारदर्शी है?
हां: 27%
नहीं: 73 %
क्या राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र सही ढ़ंग से लागू है?
हां: 13%
नहीं: 87%
आपकी आवाज
राजनीतिक दलों के संचालन की प्रकिया पारदर्शी नहीं है. एक समर्पित साधारण कार्यकर्ता को भी पूरी प्रकिया से दूर रखा जाता है. – रत्नेश
अगर लोकतंत्र लागू है तो पार्टियों में महिलाओं और सभी वर्गों की समुचित भागीदारी क्यूं नहीं सुनिश्चित की जाती है? – अजय सिंह
अगर प्रकिया पारदर्शी है तो आम जनता पर भ्रष्ट नेता थोपे ना जाते. – राजू
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