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आशाएं और चुनौतियां

मुद्दा
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Anupamaपारदर्शिता और भ्रष्टाचार

दबाव के बावजूद अगर इतने साल बाद सरकार एक कमजोर लोकपाल भी बनाती है तो इसे सकारात्मक पहलू माना जाना चाहिए। जहां इतने साल कुछ नहीं हुआ वहां दबाव और जन आंदोलनों की विवशता से सरकार ने कोई तो पहल की। जहां इस उपलब्धि को नए साल में एक उम्मीद की तरह देखा जाना चाहिए वहीं सिविल सोसायटी, मीडिया और न्यायपालिका के इतने बड़े दबाव के बावजूद सशक्त लोकपाल कानून न दे पाना राजनीतिज्ञों में देश प्रेम के अभाव का प्रतीक है। आने वाले दिनों में हमारे राजनीतिज्ञों में इस जज्बे का निर्माण या ऐसे लोगों का चयन सबसे बड़ी चुनौती होगी। -अनुपमा झा (कार्यकारी निदेशक, ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया)


मनमाने ढंग से शक्ति का दुरुपयोग हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी। जब तक इस पर रोक नहीं लगेगी, भ्रष्टाचार फलता-फूलता रहेगा। आने वाले दिनों में बढ़ती जन जागरुकता एक नई आस बंधाती है.-अरुणा रॉय (मैगसेसे पुरस्कार प्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता)


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umasinghपाकिस्तान और आतंकवाद

पाकिस्तान के मौजूदा अंदरुनी हालात के मद्देनजर यह लगता है कि आने वाले दिनों में भी आतंक को देश की नीति के तौर पर इस्तेमाल करने की उसकी पॉलिसी बदस्तूर जारी रहेगी। उम्मीद की किरण यही दिखती है कि हाल के दिनों में पाकिस्तान को कहीं न कहीं लगने लगा है कि भारत उसका सबसे बड़ा दुश्मन नहीं है। लिहाजा दोनों के रिश्तों में आती गर्माहट बरकरार रहने की आशा है।-प्रोफेसर उमा सिंह (अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार और पाकिस्तान विशेषज्ञ)


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पर्यावरण और प्रदूषण

चुनौतियों की संख्या हर साल बढ़ रही हैं। ग्लोबल वार्मिंग से निपटना हमारी सबसे बड़ी चुनौती होगी। इसके चलते खाद्य सुरक्षा का आसन्न संकट, हिमालय के ग्लेशियरों का पिघलना, गंगा के जल प्रवाह को अनवरत बनाए रखना हमारी सबसे प्रमुख चुनौतियां रहने वाली हैं। व्यापकता के लिहाज से यह क्षेत्र कई चीजों से आपस में गुंथा हुआ है। लिहाजा इसके चुनौतियों से निपटने के लिए तेजी से कदम उठाकर आम आदमी के जीवन को सुखी किया जा सकता है। इसके लिए लोगों को आगे आकर पर्यावरण बचाने संबंधी एकमात्र उम्मीद शेष है।-एमसी मेहता (प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता)

दिनोंदिन नदियों का नाले में तब्दील होने की कहानी हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी। दूषित जल से बढ़ रही बीमारियों का दुष्प्रभाव हमारे आर्थिक विकास पर पड़ता है। भ्रष्टाचार के कारण नदियों के होने वाले इस हाल से देश में पानी के एक भयावह बाजार के खड़े होने की आशंका है। जगह-जगह कई कार्यक्रमों ने समाज में अलख जगाने का काम किया। नदियों को गंदा करने वाली लोगों की प्रवृत्ति में कमी दिख रही है। प्रकृति के साथ रिश्तों में संवेदनशीलता बढ़ रही है। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए सदाचार को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। किसान खेती का चक्र बाजार से हटाकर स्वावलंबी बना रहे हैं। गांव की माटी, खाद, बीज के गांव में ही बनने और बिकने से गांव की सत्ता उसके हाथ में ही रहने की आस है।- राजेंद्र सिंह (मैगसेसे पुरस्कार प्राप्त जल विशेषज्ञ)


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खेती और किसानी

खेती का भयंकर संकट सबसे बड़ी चुनौती होगी। उपजाऊ जमीनों का अधिग्र्रहण, कारपोरेट कृषि को बढ़ावा और  किसानों की आत्महत्या में होती वृद्धि चिंता का विषय है। सरकार का रुझान खेती की समस्या को दुरुस्त करने वाला नहीं दिखता है। हम हर साल सोचते हैं कि इस क्षेत्र में कुछ नया हो सकता है, लेकिन होता कुछ नहीं। लिहाजा इस साल भी उम्मीद कुछ अच्छी नहीं दिखती। -देविंदर शर्मा (कृषि एवं खाद्य नीतियों के विशेषज्ञ)


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ak ramakrishanan1अरब जगत और विश्व राजनीति

नए साल में इस क्षेत्र के लिए सबसे बड़ी चुनौती है कि कैसे लोकतांत्रिक बदलाव की गति को बनाए रखा जाए। व्यावहारिक और समावेशी राजनीतिक व्यवस्था में लोगों के आंदोलनों को समझना सबसे बड़ी चुनौती होती है। संस्थाओं का निर्माण और लोकतंत्र की प्रक्रिया बहुत महत्वपूर्ण हैं। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि खाड़ी देशों की राजशाही किस हद तक इस लोकतांत्रिक बदलाव के प्रति उत्तरदायी होगी? ईराक से अमेरिकी फौजों का हटना, पश्चिम एशिया में तुर्की की बढ़ती भागीदारी और पश्चिमी देशों का ईरान से बढ़ता तनाव आने वाले दिनों में इस क्षेत्र की दशा व दिशा निर्धारित करने में अहम रहने वाले हैं। -एके. रामाकृष्णन (प्रोफेसर, सेंटर फॉर वेस्ट एशियन स्टडीज, जेएनयू)


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चुनाव सुधार  और राजनीति

नववर्ष में मेरी आशा है कि कुछ महत्वपूर्ण चुनाव सुधार होंगे। राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र और वित्तीय पारदर्शिता सबसे महत्वपूर्ण मसले हैं। अभी इनके बारे में कोई खास चर्चा

नहीं हुई है। देश के प्रशासन के लिए सबसे अच्छी बात तो यही होगी कि राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र और वित्तीय पारदर्शिता आ जाए। लोकतांत्रिक पारदर्शिता के लिए ये सुधार बहुत जरूरी हैं।  -जगदीप छोकर (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स और नेशनल इलेक्शन वॉच के संस्थापक सदस्य)





01 जनवरी को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “उम्र जलवों में बसर हो यह जरूरी तो नहीं” पढ़ने के लिए क्लिक करें.

01 जनवरी को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “उम्मीदों का सूर्योदय!” पढ़ने के लिए क्लिक करें.

01 जनवरी को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “कैसा होगा साल 2012” पढ़ने के लिए क्लिक करें.


साभार : दैनिक जागरण 01 जनवरी 2012 (रविवार)

नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.

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