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योजना आयोग द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे के अनुसार अगर शहर में रहने वाला कोई व्यक्ति रोजाना 32 रुपये से अधिक या मासिक 965 रुपये से ज्यादा अपने गुजर बसर पर खर्च कर रहा है तो वह गरीब नहीं है। इसी तरह अगर कोई ग्रामीण व्यक्ति अपने जीवनयापन के लिए 26 रुपये से अधिक प्रतिदिन या 781 रुपये मासिक से अधिक खर्च कर रहा है तो उसे गरीब नहीं माना जाएगा। लिहाजा गरीबों को दी जाने वाली सरकारी सहूलियतें इन लोगों को नहीं मिलेगी।
पूर्व की सीमारेखा
ग्रामीण क्षेत्र में प्रति माह 356.30 रुपये से कम और शहरी क्षेत्र में 538.60 रुपये से कम खर्च करने वाले लोग गरीबों की श्रेणी में आते थे।
गरीबों का निर्धारण
देश में गरीबी के निर्धारण का कोई एकरूप पैमाना नहीं तैयार किया गया है। सबकी अपनी डफली अपना राग है। योजना आयोग ने गरीबी के निर्धारण पर गठित की गई तेंदुलकर कमेटी की रिपोर्ट को अपना रखा है। इस रिपोर्ट के अनुसार देश की 37 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रही है।
अलग समिति भिन्न अनुमान
* असंगठित क्षेत्र मेंउद्योगों के लिए गठित राष्ट्रीय आयोग के तत्कालीन चेयरमैन अर्जुन सेनगुप्ता ने 2006 में एक रिपोर्ट पेश की। इसके अनुसार देश की 77 फीसदी आबादी रोजाना 20 रुपये से कम पर आश्रित है।
* ग्रामीण विकास मंत्रालय ने गरीबों की संख्या के निर्धारण पर एनसी सक्सेना समिति का गठन किया। 2009 में इस समिति ने अपने रिपोर्ट में कहा कि कैलोरी ग्रहण करने की मात्रा के आधार पर देश की पचास फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे गुजारा कर रही है।
* ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनीशिएटिव द्वारा एक अध्ययन में गरीबों की संख्या करीब 65 करोड़ बताई गई। इस अध्ययन में मल्टी डायमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स का का उपयोग किया गया था। इसके अनुसार 42.1 करोड़ गरीब केवल आठ उत्तरी भारतीय राज्यों में रहते है। गरीबों की यह संख्या 26 सबसे गरीब अफ्रीकी देशों की आबादी 41 करोड़ से भी अधिक है।
* विश्व बैंक के एक अनुमान के मुताबिक देश की 80 फीसदी आबादी दो डॉलर रोजाना से कम पर गुजर-बसर करती है।
गरीबी की गणना
छठी पंचवर्षीय योजना के समय से योजना आयोग द्वारा राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर गरीबी का निर्धारण किया जा रहा है। यह निर्धारण 1979 में गठित एक टास्क फोर्स की सिफारिशों के आधार पर किया जाता है। यह सिद्धांत न्यूनतम जरूरत और प्रभावी खपत मांग के अनुमानों पर आधारित है। बाद में गरीबों की संख्या और अनुपात के निर्धारण के लिए प्रोफेसर लकड़ावाला की अध्यक्षता में गठित विशेषज्ञ समूह द्वारा सुझाए तरीकों के आधार पर इसमें कुछ संशोधन किए गए। अंत में सरकार ने विशेषज्ञ समूह द्वारा सुझाए तरीके में थोड़ा बदलाव लाकर इसे स्वीकृति दी।
अब: वर्तमान में गरीबी अनुमान के तरीके में भोजन पर किए जाने वाले खर्च के अलावा शिक्षा और स्वास्थ्य पर किया जाने वाला खर्च भी शामिल है।
तब: पहले निर्धारित कैलोरी वाली खुराक खरीदने की सामर्थ्य वाली मौद्रिक सीमा से गरीबी रेखा का निर्धारण किया जाता था। इसके अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन 2400 किलो कैलोरी वाली खुराक और शहरी क्षेत्र के लिए 2100 किलो कैलोरी वाली खुराक नियत की गई थी। ज्यादा शारीरिक परिश्रम करने के चलते गांवों के लोगों के लिए अधिक कैलोरी का मानक बनाया गया। योजना आयोग के अनुसार इस खुराक को गांवों में 356.30 रुपये मासिक खर्च में प्राप्त किया जा सकता है जबकि शहरी क्षेत्र के लोगों को उनकी कैलोरी वाली खुराक के लिए 538.60 रुपये खर्चने होंगे। गरीबी के इस निर्धारण में आवास, स्वास्थ्य और परिवहन पर खर्च को नहीं शामिल किया गया था।
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