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हौवा नहीं है पड़ोसी देश

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India and China: भारत-चीन

चीन के प्रति भारतीय मानसिकता में बदलाव लाना होगा। साथ ही हमारे नेतृत्व को घबराहट से ऊपर उठना होगा।चीन लंबे अर्से से हमारी जमीन हथियाने में लगा हुआ है। एक शातिर खिलाड़ी की तरह वह हमारी जमीन मील-मील नहीं बल्कि इंच-इंच करके हथिया रहा है। इस तरह से वास्तविक नियंत्रण रेखा अब अपने तय स्थान से काफी कुछ भारतीय क्षेत्र की तरफ खिसक चुकी है। भारतीय क्षेत्र में 19 किमी की ताजी घुसपैठ चीन की सोची समझी रणनीति है। चीनी सेना (पीएलए) कोई काम बीजिंग में बैठे अपने आकाओं के इशारे के बिना नहीं करती हैं। उनके हर अच्छे बुरे काम के पीछे उनका रणनीतिक और सामरिक हित जुड़ा होता है।


लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) इलाके में चीन की ताजी घुसपैठ के पीछे उसकी मंशा बेहद स्पष्ट है। सामरिक लिहाज से दोनों देशों के लिए यह इलाका बेहद अहम है। अगर चीन डीबीओ में बैठ जाता है तो वह कई तरीके से भारतीय हितों को और अधिक प्रभावित कर सकता है। इसका सबसे बड़ा असर पाकिस्तान के पीओके में बैठे लोगों को उसके समर्थन के रूप में दिख सकता है। कराकोरम दर्रे से चीन के लिए जो सड़क जाती है, उस सड़क के फ्लाइंग प्रोटेक्शन में चीन सक्षम हो जाएगा।


यानी सड़क के किनारे ऊंचाई पर सुरक्षा तैनात कर लगाकर उसकी आवाजाही को सुरक्षित बनाया जा सकेगा। इसके अलावा भी क्षेत्रीय सुरक्षा के लिहाज से यहां कब्जा करके अपनी चौकी बनाने के पीछे उसके कई निहितार्थ हैं।डीओबी में ताजी घुसपैठ के पहले चीन ने पूरा होमवर्क और मिलिट्री स्टडी किया है। उसने यूएवी (मानव रहित टोही विमान) भेजकर पूरे क्षेत्र का मुआयना किया। उसने बाकायदा पता किया कि वहां पर कितने बंकर हैं? पूरे क्षेत्र में कितनी सेना डेरा डाले हुए है चूंकि चीन मौजूद भारतीय राजनीतिक निजाम की नब्ज समझ चुका है। उसे समझ में आ चुका है कि यह एक असहाय और असमर्थ सरकार है। जिसके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से लेकर, रक्षा मंत्री और प्रधानमंत्री तक सभी महत्वपूर्ण पदों के लोग असमर्थ हैं। जिस सरकार के विदेश मंत्री न के बराबर है। जिस सरकार के मुखिया को इस मसले में कुछ बोलने पर करीब दो हफ्ते का समय लग गया। और बोला भी तो उसे स्थानीय मामला बताया, जबकि यह उतना हल्का और छोटा मसला नहीं है। इसे छोटा मामला मानने की भूल से बड़ा खामियाजा उठाना पड़ सकता है। पीएलए तब तक कोई कदम नहीं उठाती जब तक कि उसे बीजिंग से निर्देश नहीं मिलते हैं। बीजिंग का अपनी सेना को ऐसा निर्देश देना ही बताता है कि यह उनके लिए एक सामरिक मसला है।


इसे विडंबना ही कहेंगे कि वह देश जो विश्व की अगुआई को तैयार है लेकिन उसकी सरकार और बहुत सारे लोग चीन से जुड़े मसलों पर खुद को असहाय और असमर्थ पाते हैं। कुछ लोग भले ही इस प्रवृत्ति को शांति में यकीन रखने वाले देश और पारंपरिक संस्कृति से जोड़कर देखते हों, लेकिन हम कमजोर नहीं हैं। हमारी मानसिकता कमजोर हो चली है। यह बात और है कि ताकतवर चीन के मुकाबले हमारी फौज में कमियां हैं। ये ऐसी खामियां हैं जिन्हें आसानी से दूर किया जा सकता था, लेकिन पिछले करीब एक दशक से इन्हें भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। इन सबके बावजूद भारत बहुत कुछ करने की स्थिति में है। शांतिवाद में लिप्त भारत के लोग और नेतृत्व इस सोच से उबर नहीं पा रहे हैं।


सीमा पर चीन ने हमारे मुकाबले बहुत व्यापक इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर लिया है। इस मामले में वह हम पर बढ़त बना चुका है, लेकिन यह तेजी हमेशा ही निर्णायक नहीं साबित होती है। तिब्बत में चीन के खिलाफ उग्र्र बगावत जारी है। तिब्बत में इतना बढ़ा और व्यापक इंफ्रास्ट्रक्चर बेस तैयार करने के बावजूद चीन उसे नहीं संभाल पा रहा है। हम तिब्बत की इस बगावत का नैतिक समर्थन करके उसे अन्य मोर्चों पर हतोत्साहित कर सकते हैं। हमारे इस कदम से तिब्बती बागियों का उत्साह भी बढ़ेगा। चीन का ध्यान ज्यादातर तिब्बत को संभालने में रहेगा। दूसरे कदम के तहत चीन पाकिस्तान के गठजोड़ को देखते हुए हमें पाकिस्तान के बलूचिस्तान में लांग टर्म प्लानिंग बनानी होगी। इस सबसे पहले चीन की ताजी घुसपैठ के संदर्भ में विदेशमंत्री सलमान खुर्शीद के दौरे को रद करना होगा। इसके अलावा चीन के प्रधानमंत्री के प्रस्तावित दौरे को भी अनिश्चितकालीन समय के लिए रोकना होगा।


ताजे मामले में डीबीओ में घुसपैठ कर चीनी सेना ने जहां कैंप लगा रखा है उसके पीछे हम आसानी से बैठ सकते हैं।  हमें भी चीन के क्षेत्र में अपने कैंप खड़े करने चाहिए। और यह दिखाना चाहिए कि जिस तरह से चीन को वास्तविक नियंत्रण रेखा की समझ नहीं है और वह अंदर तक घुस आया है उसी तरह से हम भी उसके क्षेत्र में चले गए हैं। दिमागी रूप से लड़े जाने वाले युद्ध में अगर आप फतह हासिल कर लेते हैं तो जमीनी युद्ध में भी आप निश्चितरूप से कामयाब होंगे। इसके लिए हमारे नेतृत्व को घबराहट से ऊपर उठना होगा।


5मई को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख ‘हरकत को हल्के में न लें‘ पढ़ने के लिए क्लिक करें.

5मई को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख ‘चीन की चालाकी’ पढ़ने के लिए क्लिक करें.


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