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इजरायली राजनयिक की गाड़ी पर हमला अत्यंत अंतरराष्ट्रीय महत्व का है। इस घटना के बाद भारत भी पश्चिम एशिया में जारी राजनीतिक दुश्मनी की परिधि में आ गया है। यद्यपि भारत प्रत्यक्ष रूप से पश्चिम एशिया की राजनीति से ताल्लुक नहीं रखता है लेकिन इस घटना के बाद उसको जानबूझकर इस पचड़े में घसीटने की कोशिश की जा रही है। यह इजरायल, ईरान और अमेरिका की प्रतिक्रियाओं में देखने को मिलती है।
पश्चिम एशिया में जारी संघर्ष के कारण उस क्षेत्र में हमारे बहुपक्षीय हितों को नुकसान पहुंच रहा है। ईरान का मानना है कि उसका परमाणु कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय स्तर पर उसे एक ताकतवर शक्ति के रूप में पहचान देगा। वह यह भी सोचता है कि अमेरिका और इजरायल क्षेत्रीय मामलों में उसकी शक्ति को कमजोर करने की कोशिश में जुटे हैं। भारत हालांकि ईरान के परमाणु कार्यक्रम से बहुत सहज नहीं है लेकिन उसने क्षेत्र की सभी ताकतों से संतुलित अच्छे संबंध बना रखे हैं। खाड़ी सहयोग परिषद के सदस्य विशेष रूप से सऊदी अरब, ईरान की परमाणु आकांक्षाओं से बेहद चिंतित है। ईरान, इजरायल और सऊदी अरब के बीच जारी त्रिपक्षीय संघर्ष के बीच भी हम अपने हितों को बेहद समझदारी के साथ संरक्षित करने में कामयाब रहे हैं।
अरब जगत के सुन्नी देश, पश्चिमी जगत और इजरायल, ईरान के इराक, लेबनान और फलस्तीन में बढ़ते प्रभाव से चिंतित हैं। ईरान का निकट सहयोगी सीरिया इस वक्त प्रमुख चुनौतियों का सामना कर रहा है। सऊदी अरब के नेतृत्व में अरब जगत के शाही घराने और अरब लीग के अन्य सदस्य सीरिया की बसर-अल-असद सरकार की आलोचना कर रहे हैं। इससे अप्रत्यक्ष रूप से ये देश ईरान का क्षेत्र में प्रभाव कम करने की कोशिश कर रहे हैं।
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संतुलन की जरूरत
भारत के ईरान और इजरायल के साथ संबंध एकदम विपरीत धरातल पर हैं :
ईरान
ईरान के साथ भारत ने आजादी हासिल करने के बाद 1950 में कूटनीतिक संबंध स्थापित किए
प्रमुख व्यापार
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 2009-10 में भारत ने ईरान से 22 मिलियन टन कच्चा तेल 10 अरब डॉलर में खरीदा। इस वजह से ईरान से कच्चा तेल खरीदने के मामले में भारत उसका तीसरा बड़ा बाजार बना
ताजा रिपोर्टों के अनुसार यह आयात इस साल जनवरी में बढ़कर 5,50,000 बैरल प्रतिदिन हो गया है, जिसकी वजह से ईरान के तेल का भारत इस वक्त सबसे बड़ा ग्राहक है
भारत सबसे ज्यादा चावल का निर्यात ईरान को करता है
भारतीय निर्यात (अप्रैल,2011-अक्टूबर,2011): 1.4 अरब डॉलर : पिछले साल की तुलना में छह प्रतिशत ज्यादा
भारतीय आयात (अप्रैल,2011-अक्टूबर,2011): पिछले साल की तुलना में दो प्रतिशत ज्यादा
नए समीकरण
यूरोप और अमेरिका द्वारा ईरान पर प्रतिबंध लगाने के बाद इस महीने की शुरुआत में ही भारत ने घोषणा की थी कि वह नई परिस्थितियों में ईरान के साथ व्यापारिक संबंधों को बढ़ाने के लिए वहां व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल भेजेगा
लोग
ईरान में इस वक्त करीब 250 भारतीय परिवार एवं छात्र हैं
इजरायल
1947 में इजरायल देश के अस्तित्व में लाने के लिए संयुक्त राष्ट्र में हुए मतदान में भारत ने इसके खिलाफ वोट दिया था
सोवियत संघ के पतन और नए अंतरराष्ट्रीय समीकरणों के कारण 1992 में इजरायल के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित हुए
रक्षा सहयोग
वर्ष 2000 में इजरायल की यात्रा करने वाले जसवंत सिंह पहले भारतीय विदेश मंत्री थे। उनकी यात्रा में आतंकवाद से पीड़ित दोनों देशों ने आपसी रक्षा संबंधों को विकसित करने पर जोर दिया। उसके बाद से ही रक्षा सौदों समेत खुफिया सूचनाओं के आदान-प्रदान में दोनों पक्ष सहयोग कर रहे हैं। नतीजतन पिछले दशक में कम ऊंचाई के रडार तंत्र से लेकर सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों के खरीदने में भारत ने इजरायल को ही प्राथमिकता दी है
वर्तमान में भारत, इजरायली सैन्य उपकरणों का सबसे बड़ा खरीदार है
रूस के बाद इजरायल हमारा दूसरा सबसे बड़ा रक्षा साझेदार है। दिसंबर, 2011 तक दोनों देशों के बीच रक्षा व्यापार 10 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है। इसी तरह इजरायल का सबसे बड़ा रक्षा बाजार भारत है
कृषि, शोध, सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में दोनों देशों आपसी सहयोग को बढ़ावा दे रहे हैं
भारतीय निर्यात (अप्रैल, 2011 से अक्टूबर, 2011): 2.3 अरब डॉलर, पिछले साल की तुलना में 49 प्रतिशत ज्यादा
भारतीय आयात (अप्रैल, 2011 से अक्टूबर, 2011): 1.4 अरब डॉलर, पिछले साल की तुलना में 11 प्रतिशत ज्यादा
लोग
अनिवासी भारतीय (एनआरआइ): करीब 300 भारतीय मूल के (पीआइओ): करीब 45 हजार। इनमें से ज्यादातर के यहूदी वंशज पिछली सदी के पांचवे एवं छठे दशक में इजरायल चले गए थे
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19 फरवरी को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “कूटनीति की अग्निपरीक्षा” पढ़ने के लिए क्लिक करें.
साभार : दैनिक जागरण 19 फरवरी 2012 (रविवार)
नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.
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