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राज्यों में स्थानीय स्तर की इंटेलीजेंस में लोगों की संख्या बेहद कम है। एक तो यहां खुफिया सूचना एकत्र करने वालों की भारी कमी है, जो लोग हैं भी वे कुशल प्रशिक्षित नहीं हैं। आजकल थाना स्तर को पूरी तरह उपेक्षित किया जा रहा है जबकि सबसे ज्यादा जरूरी इनपुट वहीं से मिलता है। देश भर के थानों में न पूरी तादाद में स्टाफ है और जो है भी, उस पर अन्य कामों का भारी बोझ है। थाना स्तर पर सारा स्टाफ कानून व्यवस्था के कामों में ही लगा रहता हैं। इंटेलीजेंस एकत्र करने जैसे काम को अब अधिकारी इतनी महत्ता भी नहीं देते। इंटेलीजेंस जैसे अहम कार्य के लिए उच्च स्तर की ट्रेनिंग की भी भारी कमी है। यह ऐसा नेटवर्क है जो बरसों पुलिस की मदद कर सकता है। इसलिए इस तरफ सरकार को ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।
इंटेलीजेंस जैसे महत्वपूर्ण कार्य के लिए ज्यादा संसाधनों की जरूरत होती है। जबकि संसाधनों के नाम पर इंटेलीजेंस के ये प्राथमिक स्रोत बेहाल हैं। हाल ही में एक आरटीआइ के तहत पता चला है कि मुंबई पुलिस के पास इंटेलीजेंस के लिए केवल 50 लाख रुपये का बजट है। यह राशि मुंबई जैसे शहर के लिए बेहद कम है। कई साल पहले यह राशि तय की गई होगी और अब भी हर साल उतनी ही राशि दे दी जाती है। हमारी इंटेलीजेंस बार-बार असफल हो रही है, क्योंकि न निचले स्तर पर पूरा स्टाफ है और न ही उसे इस महत्वपूर्ण काम की कोई ट्रेनिंग दी जाती है। जब तक इंटेलीजेंस विंग को स्टाफ की ट्रेनिंग व बजट बढ़ाकर मजबूत नहीं किया जाता तब तक किसी घटना के बाद में जांच में एजेंसियों को देरी लगेगी।
जनमत
क्या जांच एजेंसियों में तालमेल की कमी से हम आतंकवाद से लड़ने में नाकाम हो रहे हैं?
हां 88 %
नहीं 12 %
क्या 26/11 के बाद आतंकवाद से निपटने के लिए उठाए गए कदम नाकाफी हैं?
हां 86 %
नहीं 14 %
आपकी आवाज
खुफिया एवं जांच एजेंसियों में तालमेल की कमी के चलते ही हम आतंकवाद से पीड़ित देश बने हुए हैं। –श्रीधर (अमृतसर)
किसी भी आतंकी हमले के बाद सरकार द्वारा वादों एवं मुआवजे का मरहम लगा दिया जाता है। उसके बाद अगले हमले की प्रतीक्षा में वह गहरी नींद में सो जाती है। –राजू09023693142 @ जीमेल.कॉम
जांच एजेंसियों में तालमेल के अभाव के चलते इतने बड़े हादसे हो रहे हैं। इसके अलावा इनकी नाकामी के पीछे राजनीतिक दलों का हस्तक्षेप भी एक वजह है। –संतोष कुमार (कानपुर)
आतंकवाद के खिलाफ केवल सरकार द्वारा कदम उठाना ही काफी नहीं हैं बल्कि अमेरिका की तरह हमेशा उस पर सख्ती से अमल भी किया जाना चाहिए। –सोहन लाल (धनबाद)
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24 जुलाई को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “सबकी सुरक्षा का सवाल!” पढ़ने के लिए क्लिक करें.
साभार : दैनिक जागरण 24 जुलाई 2011 (रविवार)
नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.
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