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घातक है दायित्व से विचलन

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अनुशासनहीनता के लिए कठोर दंड का हो विधान

डॉ योगेंद्र नारायण

(पूर्व महासचिव, राज्यसभा)

ऐसी हरकतें करने वाले सदस्यों के खिलाफ संसद को स्पष्ट कठोर दंड (मसलन जीवन भर के लिए निष्कासन) निर्धारित करना चाहिए। सद में पैपर स्प्रे का छिड़काव इसके इतिहास के सबसे काले काल खंड में से एक है। आश्चर्य हो रहा है कि क्या यह वही लोकसभा है, जहां निर्वाचित जनप्रतिनिधियों से बहस, विमर्श और देश व समाज की बेहतरी के लिए विधान की अपेक्षा होती है। 21वीं सदी में इस तरह के संसद सदस्यों पर भरोसा नहीं कर सकते। इन लोगों ने देश और दुनियाभर के लोकतंत्र को शर्मसार किया है।


लोकसभा को आदर्श विधायिका माना जाता है और राज्य विधानसभाएं इसको मॉडल के रूप में देखती हैं। लेकिन, अब इसकी यह प्रतिष्ठा इतिहास के कॉरीडोर में गहरे दफन हो गई है। राज्य विधानसभाओं में जहां कुर्सियां और माइक्रोफोन फेंके जाते हैं, वे भी गुरुवार को लोकसभा में हुई घटनाओं की तुलना में बेहतर दिखती हैं। सरकार को इस पूरे घटनाक्रम की पूरी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। यदि सत्ताधारी दल के भीतर ही तेलंगाना के गठन पर असहमति है तो उनको पहले अपने सदस्यों के बीच सर्वसम्मति बनाने के बाद बिल को सदन में पेश करना चाहिए। क्यों एक निर्णय को उस क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों पर थोपा जा रहा है जो पार्टी के इतर वास्तव में उस निर्वाचन क्षेत्र की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। सत्ताधारी दल को उन मुद्दों पर अपने सदस्यों को पार्टी से नहीं निकालना चाहिए जहां निर्वाचित प्रतिनिधियों को लगता है कि उनका निर्वाचन करने वाले लोगों की भावनाओं का इजहार होना चाहिए। भले ही वह उनकी अपनी पार्टी की राजनीतिक लाइन से इत्तेफाक नहीं रखता हो।


सत्ताधारी दल को इस लज्जाजनक स्थिति तक पहुंचाने के लिए संसदीय कार्यमंत्री जिम्मेदार हैं। पार्टी के संसदीय बोर्ड में शामिल नेता भी इसके लिए जिम्मेदार हैं क्योंकि वे अपने सदस्यों की नब्ज को नहीं पकड़ पाए। गुरुवार को लोकसभा में जो हिंसा हुई और उससे पहले सदन में उत्पन्न गतिरोध बताता है कि सत्ताधारी दल के नेताओं और पार्टी के आम सदस्यों के बीच अंतर मौजूद है। यह उस दल में आंतरिक लोकतंत्र की कमी को अभिव्यक्त करता है, जहां कठिन अधिकारवादी पार्टी रवैये के कारण पार्टी के भीतर की आवाजों को दबाया जा रहा है और वे खुद की अभिव्यक्ति नहीं कर पा रही हैं। सत्ताधारी समेत अन्य दलों के लिए इस मसले पर एकमात्र समाधान यह है कि वे अपने सदस्यों को अंतरात्मा की आवाज पर वोट करने की अनुमति प्रदान करें। इस मसले पर कोई व्हिप नहीं जारी करना चाहिए। उनके खिलाफ दलबदल कानून का उपयोग या पार्टी से निकाले जाने का भय नहीं होना चाहिए। यहां तक कि दलबदल कानून के अस्तित्व के औचित्य पर गंभीरता से पुनर्विचार की जरूरत है क्योंकि इसके कारण राजनीतिक दल अपने विचारों को अपने सदस्यों पर थोपते हैं। यह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है। ब्रिटेन तक में ऐसा कानून नहीं है। इसके अलावा खराब व्यवहार करने वाले संसद सदस्यों को दंडित करने के लिए संसद में कड़े नियम होने चाहिए।

घातक है दायित्व से विचलन

डॉ मंदिरा काला

(हेड ऑफ रिसर्च, पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च)


शोरशराबे और अमर्यादित आचरण ने संसद के सरकार पर निगरानी रखने, कानूनों को पारित किए जाने और बजट की जांच करने जैसे मूल दायित्वों से लोकतंत्र के मंदिर को भटका दिया गया है। इसी बढ़ती प्रवृत्ति के चलते 15वीं लोकसभा कामकाज के लिहाज से अपने निम्नतम स्तर का रिकॉर्ड बनाते देखी जा सकती है। संसद में पहला घंटा प्रश्नकाल के लिए निर्धारित होता है जिसमें सांसद संबंधित विभिन्न मंत्रालयों से नीतियों और कार्यक्रमों को लागू करने वाले सवाल पूछने के अधिकारी होते हैं। चूंकि यह शुरुआत का पहला घंटा होता है लिहाजा संसद को ठप करने का सर्वाधिक असर इसी पर पड़ता है। लिहाजा सरकार को जवाबदेह बनाने वाला यह मौका भी खत्म हो जाता है। इस लोकसभा की शुरुआत से लोकसभा में 10 फीसद और राज्यसभा में 12 फीसद सवालों के जवाब ही मौखिक रूप से दिए जा सके। भ्रष्टाचार पर रोकथाम, उच्च शिक्षा, कराधान प्रणाली, माइक्रो फाइनेंस, खनन और परमाणु सुरक्षा जैसे क्षेत्रों से जुड़े कई अहम बिल लंबित हैं। अगर इस सत्र के बाकी दिनों में ये बिल पारित नहीं होंगे तो समाप्त हो जाएंगे। 15वीं लोकसभा के खाते में 14वीं लोकसभा के लंबित 37 बिल आ गए थे। अगर इस सत्र के अंत तक कोई भी बिल पारित नहीं होता है तो 16वीं लोकसभा के खाते में 56 बिल ऐसे जुड़ जाएंगे जो राज्यसभा में लंबित होंगे। देश के नागरिकों की अपेक्षाओं और हितों को सुरक्षित रखने वाली संसद की क्षमता और शुचिता के लिहाज से 15वीं लोकसभा का प्रदर्शन निराशाजनक है। यह असंभव है कि संसद बाकी चंद दिनों के कार्यकाल में इसकी भरपाई कर सके। अब तो केवल यही उम्मीद की जा सकती है कि 16वीं लोकसभा इन हालातों से कुछ सबक ले और अपनी दिशा बदलते हुए एक जिम्मेदार और उत्पादक संसद में तब्दील हो।

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