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भारतीय संदर्भ

मुद्दा
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शुरुआत

माना जाता है कि गणराज्यों की परंपरा ग्रीस के नगर राज्यों से प्रारंभ हुई थी, लेकिन इनसे हजारों वर्ष पहले भारतवर्ष में अनेक गणराज्य स्थापित हो चुके थे। उनकी शासन व्यवस्था अत्यंत दृढ़ थी और जनता सुखी थी। गण शब्द का अर्थ संख्या या समूह से है। गणराज्य या गणतंत्र का शाब्दिक अर्थ संख्या अर्थात बहुसंख्यक का शासन है। इस शब्द का प्रयोग ऋग्वेद में चालीस बार, अथर्व वेद में नौ बार और पौराणिक ग्रंथों में अनेक बार किया गया है। वहां यह प्रयोग जनतंत्र तथा गणराज्य के आधुनिक अर्थों में ही किया गया है। वैदिक साहित्य में,विभिन्न स्थानों पर किए गए उल्लेखों से यह जानकारी मिलती है कि उस काल में अधिकांश स्थानों पर हमारे यहां गणतंत्रीय व्यवस्था ही थी। जनतांत्रिक पहचान वाले गण तथा संघ जैसे स्वतंत्र शब्द भारत में आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पहले ही प्रयोग होने लगे थे।

गणराज्य के कालखंड

भारत में वैदिक काल से लेकर लगभग चौथी-पांचवीं शताब्दी तक बडे़ पैमाने पर जनतंत्रीय व्यवस्था रही। इस युग को सामान्यत: तीन भागों में बांटा जाता है।

पहला: 450 ईसा पूर्व- इसमें पिप्पली वन के मौर्य, कुशीनगर और काशी के मल्ल, कपिलवस्तु के शाक्य, मिथिला के विदेह और वैशाली के लिच्छवी

दूसरा: 300 ईसा पूर्व- इसमें अटल, अराट, मालव और मिसोई नामक गणराज्यों का उल्लेख मिलता है।

तीसरा: 350 ईस्वी के करीब- तीसरे कालखंड में पंजाब, राजपूताना और मालवा में अनेक गणराज्यों की चर्चा पढ़ने को मिलती है, जिनमें यौधेय, मालव और वृष्णि संघ आदि विशेष उल्लेखनीय हैं।

आधुनिक आगरा और जयपुर के क्षेत्र में विशाल अर्जुनायन गणतंत्र था, जिसकी मुद्राएं भी खुदाई में मिली हैं। यह गणराज्य सहारनपुर,भागलपुर, लुधियाना और दिल्ली के बीच फैला था। इसमें तीन छोटे गणराज्य और शामिल थे। इससे इसका रूप संघात्मक बन गया था। गोरखपुर और उत्तर बिहार में भी अनेक गणतंत्र थे। इन गणराज्यों में राष्ट्रीय भावना बहुत प्रबल हुआ करती थी और किसी भी राजतंत्रीय राज्य से युद्घ होने पर, ये मिलकर संयुक्त रूप से उसका सामना करते थे।


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अन्य उल्लेख: कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी लिच्छवी, बृजक, मल्लक, मदक और कम्बोज आदि गणराज्यों का जिक्र  है। पाणिनी की अष्ठाध्यायी में जनपद शब्द का उल्लेख अनेक स्थानों पर किया गया है, जिनकी शासन व्यवस्था जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों के हाथों में रहती थी।

’ग्रीक राजदूत मेगास्थनीज ने भी क्षुदक, मालव और शिवि आदि गणराज्यों का वर्णन किया। बौद्घ साहित्य में एक घटना का उल्लेख है। इसके अनुसार महात्मा बुद्घ से एक बार पूछा गया कि गणराज्य की सफलता के क्या कारण हैं? इस पर बुद्घ ने सात कारण बतलाए-

’जल्दी- जल्दी सभाएं करना और उनमें अधिक से अधिक सदस्यों का भाग लेना

’राज्य के कामों को मिलजुल कर करना

’कानूनों का पालन करना

’वृद्घ व्यक्तियों के विचारों का सम्मान

’महिलाओं के साथ दुव्र्यवहार न करना

’स्वधर्म में दृढ़ विश्वास रखना तथा

अपने कर्तव्य का पालन करना

खुशहाली का प्रतीक

प्राचीन गणतांत्रिक भारत में समृद्धि समाज के बहुसंख्यकवर्ग तक फैली हुई थी। हालांकि आर्थिक स्तर में अंतर तब भी था। बावजूद इसके समाज में जागरूकता एवं अवसरों की समानता अधिक थी। इसी कारण छोटे-छोटे उद्यमियों/व्यापारियों ने अपने संगठन खडे़ कर लिए थे। वहां के नागरिकों को अपनी रुचि एवं क्षमता के अनुसार व्यवसाय चुनने की आजादी थी। जिससे वहां का समाज अपेक्षाकृत अधिक खुला था।


ओम प्रकाश कश्यप


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