- 442 Posts
- 263 Comments
अचानक चेतना के दो विरोधाभासी स्तरों पर जीना पड़े तो कितना तनाव, भय, आशंका और न जाने कितने नकारात्मक भाव मन में उपजते हैं, इसका साक्षात्कार उन साठेक मिनटों में हुआ, जो मैंने इजरायल में तेल अवीव के बेन गुरियन हवाईअड्डे के आव्रजन विभाग के ‘डिटेंशन रूम’ में देर रात बिताए। नहीं मालूम कि इजरायली उस कमरे को क्या कहते हैं, लेकिन यह जानने के बाद कि मेरे सहयात्री को संदेह के आधार पर रोका गया है, तो उस समय तो यही महसूस हुआ कि हमें ‘डिटेन’ किया गया है। आप जिस यात्री के साथ नई दिल्ली से तेल अवीव बगल की सीट पर बैठकर पहुंचे हैं और जिससे यात्रा के दौरान मित्रता हो गई है, उस पर संदेह..।
मुझे लगा कहीं यह आशंका सच हुई तो क्या होगा? मेरे सहयात्री चूंकि मुसलिम थे, इसलिए उन्हें रोका गया था। मैं उनके साथ था इसलिए मुझे भी वहीं बैठना पड़ा। पहले एक अधिकारी आया। उनसे नाम, पिता का नाम पूछने के बाद लौट गया। फिर वापस लौटा और उनके दादा का नाम पूछा और लौट गया। मुझे लगा कहीं गड़बड़ तो नहीं है। आयताकार कमरे में लंबाई में लगी बेंचों की दो कतार में से एक पर हम दो थे और हमारे सामने की कतार में एक जोड़ा। मैंने अनुमान लगाया कि उनमें से एक मुसलिम समुदाय से होगा या किसी अरब देश से होते हुए वहां पहुंचा होगा। आशंका और भरोसे के बीच झूलता हुआ मैं न कुछ बोल पा रहा था और न सोच पा रहा था। बस यही लगता था कि कैसे यहां से निकलें। कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं।
चूंकि हमारे साथ वहां गए पत्रकारों के दल से हम दोनों इस्तांबुल हवाईअड्डे पर बिछड़ गए थे इसलिए हमलोग अगली उड़ान से तेल अवीव पहुंचे थे। मेरे मन में संदेह हुआ कि कहीं सहयात्री ने जानबूझकर तो फ्लाइट मिस नहीं करवाई? इस्तांबुल हवाईअड्डे पर पब्लिक बूथ से किसे फोन कर रहा था?
इस बीच लगभग आधे घंटे तक उस नाम और कुलनाम के मुसलिम आतंकियों के नामों के साथ मिलान करने के लिए हजारों आंकड़ों से उलझने के आधे घंटे बाद वह लौटा और उनसे दादा का पूरा नाम पूछा। यह जानकारी लेकर वह चला गया। इस बीच एक दूसरा अधिकारी आकर सामने बैठे जोड़े से कई बार पूछताछ कर जा चुका था। मेरे साथी से दरियाफ्त कर रहा अधिकारी लगभग बीस मिनट बाद लौटा और हमें जाने की इजाजत दी। मेरी जान में जान आई कि हर मुसलिम आतंकी नहीं होता।
दरअसल, चारों ओर से घोर दुश्मन
देशों से घिरे इजरायल ने अपनी सुरक्षा व्यवस्था को इतना दुरुस्त कर लिया है कि इसकी सख्ती किसी को भी कुछ देर के लिए आतंकित कर दे। लेकिन इसी सुरक्षा के बल पर वह मुल्क जिंदा है। तेल अवीव से यरुशलम की यात्रा पूरी करते भोर हो गई थी। होटल के कमरे में जा कर आराम किया और दक्षिण की यात्रा पर निकल पड़ा हमारा दल। रास्ते में गाइड ने बताया कि वह देखिए फलस्तीन। पत्थर फेंकने की दूरी पर बसे दो देश। कभी उधर से आतंकी दस्ते आए और खून-खराबा करके चले गए। कभी इधर की सेना घुसी और उधर के कुछ लोगों को हलाक कर दिया, लेकिन जब से दोनों देशों के बीच सुरक्षा की ऊंची कंक्रीट दीवार बनी है, ऐसे हमलों में काफी कमी आई है।
24 जुलाई को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “और अभेद्य किला बन गया अमेरिका” पढ़ने के लिए क्लिक करें.
24 जुलाई को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “सबकी सुरक्षा का सवाल!” पढ़ने के लिए क्लिक करें.
साभार : दैनिक जागरण 24 जुलाई 2011 (रविवार)
नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.
Read Comments