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अन्ना हजारे की टीम द्वारा प्रस्तावित जन लोकपाल बिल के प्रावधानों का विश्लेषण हमारे संवैधानिक ढांचे को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए। संविधान के तहत कार्यपालिका संसद और न्यायपालिका के प्रति जवाबदेह है। विधायिका न्यायालय के प्रति जवाबदेह है। उसके पास न्यायिक समीक्षा के जरिए किसी भी विधेयक को संविधान की कसौटी पर रखने की शक्ति है। जनप्रतिनिधि भी अपने निर्वाचकों के प्रति जवाबदेह हैं क्योंकि उनको दोबारा निर्वाचन के लिए चुनाव मैदान में आना होता है।
दूसरे शब्दों में हमारी संवैधानिक प्रणाली का प्रत्येक स्तंभ किसी न किसी रूप में एक-दूसरे के प्रति जवाबदेह है। यही हमारे संसदीय लोकतंत्र का मूल तत्व है। यह मूल तत्व आज खतरे में है। ऐसा लग रहा है कि प्रस्तावित जन लोकपाल विधेयक इसे खत्म कर देना चाहता है। इसके अनुसार लोकपाल स्वतंत्र जांच और अभियोजन एजेंसियों से युक्त एक गैर निर्वाचित कार्यकारी निकाय होगा जो किसी के प्रति जिम्मेदार नहीं होगा। न तो वह सरकार के प्रति जिम्मेदार होगा न ही यह विधायिका के प्रति जिम्मेदार होगा। इसके अलावा, इसको संसद सदस्यों की भी जांच का अधिकार होगा। यह न्यायालय के प्रति भी तब तक जिम्मेदार नहीं है जब तक कि यह आपराधिक मुकदमों के प्रावधानों के तहत खुद कोई न्यायिक प्रक्रिया शुरू नहीं कर रहा हो। साथ ही, इसके पास न्यायालय के सदस्यों की जांच की अनोखी शक्ति होगी। किसी भी संवैधानिक संस्था के प्रति जवाबदेह नहीं रहने वाली इस संस्था की हैसियत संवैधानिक तौर पर न्यायसंगत नहीं ठहराई जा सकती है।
जन लोकपाल सरकारी अधिकारियों को अनुशासित करने की सारी शक्तियां खुद हथियाना चाहता है। इसके लिए संविधान में संशोधन की जरूरत होगी। वर्तमान में सरकारी अधिकारियों का कार्यकाल संविधान के अनुच्छेद 311 में सन्निहित प्रक्रियात्मक अर्हताओं के अनुसार सुरक्षित है। इसके अलावा उन्हें संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा संविधान के अनुच्छेद 320 (3) (सी) के संदर्भ में ही दंडित किया जा सकता है। ऐसे संशोधन की स्थिति में ही जन लोकपाल को सभी सरकारी अधिकारियों को अनुशासित करने का अधिकार मिल सकेगा। यह मौजूदा संवैधानिक ढांचे में विचलन जैसा है। यह व्यवस्था सरकार की कार्यप्रणाली को लकवाग्रस्त कर देगी। जन लोकपाल प्रधानमंत्री कार्यालय को भी अपनी हद में लेना चाहता है। लोकतंत्र में सभी लोक सेवक जवाबदेह होते हैं। प्रधानमंत्री का कार्यालय हमारे संसदीय लोकतंत्र का प्रमुख केंद्र है। एक स्वतंत्र निरंकुश जन लोकपाल पूरी व्यवस्था को बुरी तरह अस्थिर कर सकता है।
चिंता की एक अन्य वजह जन लोकपाल द्वारा सांसदों को अभियोजन के दायरे में लाने की है, जो संविधान के अधिनियम 105 (2) के तहत संसद में दिए गए संबोधन और मतदान के लिए सुरक्षित हैं। ये दो बहुमूल्य अधिकार हैं। इन्हें जांच के दायरे में लाने से सांसद हर संबोधन और मतदान के लिए गहरे राजनीतिक धु्रवीकरण के लिए प्रोत्साहित होंगे। इससे संविधान में पुन: संशोधन करना पड़ेगा।
जनमत :
क्या प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में रखा जाना चाहिए ?
हां: 96%
नहीं: 4%
क्या लोकपाल को किसी के प्रति जवाबदेह बनाया जाना चाहिए?
हां: 95%
नहीं: 5%
आपकी आवाज
पूर्व में प्रधानमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति पर आरोप सिद्ध हो चुके हैं. इस तथ्य को देखते हुए लोकपाल के दायरे में इस पद को लाया जाना बहुत जरुरी है. – एनके त्यागी
लोकपाल को चुनाव आयोग जैसी एक स्वतंत्र संस्था के तरह में काम करना चाहिए. क्या चुनाव आयोग स्वतंत्र होने के बावजूद किसी के प्रति जवाबदेह नही है. – सुधीर सिंह (लखनऊ)
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साभार : दैनिक जागरण 03 जुलाई 2011 (रविवार)
नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.
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