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यह किसकी जमीन है?

मुद्दा
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पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में किसानों की जमीन अधिग्रहण के विवाद ने इस गंभीर विषय पर फिर से चर्चा छेड़ दी है। नई बसावट की दलील देकर सरकार किसानों की खेती योग्य भूमि का अधिग्र्रहण कर लेती है। कई बार तो इस जमीन के लैंड यूज को बदलकर बड़ा खेल किया जाता है।

Land Acquisition actउद्योग बसाने, सरकारी संयंत्रों की स्थापना या आधारभूत संरचनाओं के विकास के लिए अधिग्रहीत जमीन को बड़े-बड़े बिल्डर्स को बेंच दिया जाता है। यहां वे गगनचुंबी इमारतें बनाकर मोटा मुनाफा कमाते हैं। इस कमाई को देखकर बेचारे किसान अपनी जमीन के पूर्व में मिले औने-पौने दामों की वजह से ठगे से महसूस करते हैं। नतीजा एक आंदोलन की परिणति में होता है। खेती योग्य भूमि के अधिग्र्रहण को लेकर विवादों की एक लंबी फेहरिस्त है। बड़ी-बड़ी परियोजनाओं को इन विवादों ने प्रभावित किया है। भूमि अधिग्रहण के बाद उपजे विवाद के कारणों की पड़ताल और इसका संभावित समाधान बड़ा मुद्दा है।


22 मई को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “जमीन की जंग” पढ़ने के लिए क्लिक करें

22 मई को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “इस विकास के गंभीर नतीजे!” पढ़ने के लिए क्लिक करें

22 मई को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “खाद्य सुरक्षा भी अहम मसला” पढ़ने के लिए क्लिक करें

22 मई को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “भूमि अधिग्रहण को लेकर प्रदेशों में प्रावधान” पढ़ने के लिए क्लिक करें

22 मई को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “मौजूदा भूमि अधिग्रहण कानून” पढ़ने के लिए क्लिक करें

22 मई को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “माटी का मोह” पढ़ने के लिए क्लिक करें

22 मई को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “जनमत – भूमि अधिग्रहण कानून” पढ़ने के लिए क्लिक करें


साभार : दैनिक जागरण 22 मई 2011 (रविवार)

नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.

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