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खाद्य पदार्थो में मिलावटखोरी को रोकने और उनकी गुणवत्ता को स्तरीय बनाए रखने के लिए देश में खाद्य संरक्षा और मानक कानून-2006 लागू किया गया है। लोकसभा एवं राज्यसभा से पारित होने के बाद 23 अगस्त 2006 को राष्ट्रपति ने इस कानून पर अपनी स्वीकृति दी। पांच अगस्त 2011 को इसे अमल में लाया गया..
मकसद: खाद्य से जुड़े नियमों को एक छतरी के नीचे लाना एवं उल्लंघन करने वालों पर कठोर दंड के प्रावधान द्वारा मिलावटखोरी को खत्म करना।
भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण: इस प्राधिकरण की स्थापना खाद्य सुरक्षा और मानक विधेयक 2006 के अंतर्गत खाद्य पदाथरें के विज्ञान आधारित मानक निर्धारित करने एवं निर्माताओं को नियंत्रित करने के लिए पांच सितंबर 2008 को की गई। यह प्राधिकरण अंतरराष्ट्रीय तकनीकी मानकों और घरेलू खाद्य मानकों के मध्य सामंजस्य को बढ़ावा देने के साथ घरेलू सुरक्षा स्तर में कोई कमी न होना सुनिश्चित करता है। इस कानून के प्रावधानों के तहत पूर्व में स्वतंत्र रूप से काम कर रहे कई नियम-कानूनों (1-फ्रूट प्रोडक्ट्स आर्डर, 1955 2-मीट फूड प्रोडक्ट्स आर्डर, 1973 3- मिल्क एंड मिल्क प्रोडक्ट्स आर्डर, 1992 4-सालवेंट एक्सट्रैक्टेड आयल, डी-आयल्ड मील एंड एडिबल फ्लोर (कंट्रोल) आर्डर, 1967 5-विजिटेबल्स आयल प्रोडक्ट्स (रेगुलेशन) आर्डर, 1998 6-एडिबल आयल्स पैकेजिंग (रेगुलेशन) आर्डर, 1998 7- खाद्य अपमिश्रण निवारण कानून, 1954) का प्रशासनिक नियंत्रण इस प्राधिकरण के अधीन हो गया।
सजा के सख्त प्रावधान
इस कानून में खाद्य पदार्थो से जुड़े अपराधों को श्रेणियों में बांटा गया है। खाद्य पदार्थो से जुड़े अपराधों की अलग-अलग श्रेणियों के लिए अलग-अलग सजा का प्रावधान है..
पहली श्रेणी में जुर्माना: घटिया, मिलावटी, नकली माल की बिक्री, भ्रामक विज्ञापन के मामले में संबंधित प्राधिकारी 10 लाख रुपये तक जुर्माना लगा सकेंगे। इसके लिए अदालत में मामला चलाने की जरूरत नहीं।
दूसरी श्रेणी में जुर्माना व कारावास: इन मामलों का निर्णय अदालत में होगा। मिलावटी खाद्य पदार्थो के सेवन से अगर किसी की मौत हो जाती है तो उम्रकैद और 10 लाख रुपये तक जुर्माना।
पंजीकरण या लाइसेंस नहीं लेने पर भी जुर्माना: छोटे निर्माता, रिटेलर, हॉकर, वेंडर, खाद्य पदार्थो के छोटे व्यापारी जिनका सालाना टर्नओवर 12 लाख रुपये से कम है, उन्हें पंजीकरण कराना होगा। ऐसा नहीं करने पर उन पर 25 हजार रुपये तक जुर्माना हो सकता है। 12 लाख रुपये सालाना से अधिक टर्नओवर वाले व्यापारी को लाइसेंस लेना होगा। लाइसेंस नहीं लेने पर 5 लाख रुपये तक जुर्माना और 6 महीने तक की सजा का प्रावधान।
कितना जुर्माना (रुपये में)
* अप्राकृतिक व खराब गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थो की बिक्री- 2 लाख तक
* घटिया खाद्य पदार्थ- 5 लाख तक
* गलत ब्रांड खाद्य पदार्थ- 3 लाख तक
* भ्रामक विज्ञापन करने पर- 10 लाख तक
* खाद्य पदार्थ में अन्य चीजों की मिलावट-1 लाख तक
क्या कहता है कानून
आप भी करा सकते हैं खाद्य परीक्षण: किसी दुकान पर मिलावटी खाद्य उत्पाद बेचे जाने की आशंका पर इस कानून के मुताबिक उसका परीक्षण आप भी करा सकते हैं। इसके लिए आपको एक पत्र में पूरे विवरण के साथ इन नमूनों को खाद्य विश्लेषक को सौंपना होगा। इस नमूने को दो भागों में विभाजित कर इन पर शिकायतकर्ता के हस्ताक्षर होंगे। इस नमूने का एक भाग खाद्य विश्लेषक और दूसरा भाग प्राधिकृत अधिकारी को भेजा जाएगा। दूसरे भाग का प्रयोग खाद्य विश्लेषक के रिपोर्ट के निष्कर्ष के विरुद्ध खाद्य कारोबारी द्वारा की जाने वाली अपील की स्थिति में किया जा सकेगा। इस सुविधा के लिए क्रेता को निर्धारित शुल्क चुकाना पड़ेगा। यदि रिपोर्ट में पाया जाता है कि खाद्य वस्तु अपमिश्रित/ गलत लेबल वाली/ संदूषित या कानूनी मानकों के अनुरूप नहीं है तो खाद्य विश्लेषक अपनी रिपोर्ट को तीन प्रतियों में खाद्य वस्तु खरीदे जाने वाले क्षेत्र के प्राधिकृत अधिकारी को भेजेगा। क्रेता को भी इस रिपोर्ट की एक प्रति भेजी जाएगी। इस पूरी प्रक्रिया में 14 दिन का समय लगेगा। पहले ऐसा नहीं था। खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम (पीएफए) में नमूना जांच सरकारी लैब में किया जाता था। जब मसला कोर्ट में जाता था, काफी समय बाद नमूने की जांच फिर से होती थी। अधिक समय बीत जाने के कारण दोनों नमूना जांच रिपोर्ट में अंतर आता था जिससे मिलावटखोर बच जाते थे।
लाइसेंस की कड़ी शर्ते
* इस व्यवसाय से जुड़े कारोबारियों को उत्पादन प्रक्रिया की निगरानी के लिए कम से कम एक तकनीकी रूप से निपुण व्यक्ति को नियुक्त करना होगा।
* यह सुनिश्चित कराना होगा कि लाइसेंस में उल्लिखित उत्पाद के अलावा वहां किसी अन्य उत्पाद को न तैयार किया जा रहा हो।
* होटल, रेस्टोरेंट और ढाबों के मालिकों को नोटिस बोर्ड पर एक सूची लगानी होगी जिसमें यह बताया गया हो कि यह उत्पाद घी, खाद्य तेल, वनस्पति या अन्य वसीय पदार्थ में पकाया गया है।
* खाद्य पदार्थो को तैयार करने वाली जगह स्वच्छ स्थान पर हो। यह गंदे माहौल से बिलकुल मुक्त हो और हमेशा स्वच्छ पर्यावरण बनाए रखा जाए।
* सफाई, धोने और खाद्य पदार्थो को तैयार करने में उपयोग किए जाने वाले पानी की गुणवत्ता पीने लायक हो।
* बर्तनों को हर बार प्रयोग करने के बाद डिटरजेंट से साफ किया जाय। साफ करने के दौरान टोंटी से पानी का प्रवाह जारी रहे। बर्तनों को साफ करने के लिए स्वच्छ कपड़ों का इस्तेमाल हो। अन्य सफाई कार्य के लिए भी अलग कपड़े हों।
* संक्रमित बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति को काम पर रखे जाने की अनुमति न दी जाए।
जनमत
क्या आप खाद्य संरक्षा एवं मानक कानून-2006 के बारे में ठीक से जानते हैं?
हां: 21%
नहीं: 79%
क्या खाद्य पदार्थो की गुणवत्ता संबंधी कानून के प्रचार-प्रसार में सरकार नाकाम रही है?
हां: 85%
नहीं: 15%
आपकी आवाज
यदि सरकार ने खाद्य पदार्थो की गुणवत्ता को बरकरार रखने के लिए बनाए गए कानून का उचित प्रचार-प्रसार किया होता तो आज कालाबाजारियों और मिलावटखोरों से जनता परेशान नहीं होती। -नारायन.एडवोकेट @ जीमेल.कॉम
इस कानून के बारे में जनता तो नहीं, पर घोटालेबाज ठीक से जानते हैं। -बिरेंद्र69 @ याहू.कॉम.एयू
लोगों को खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम-2006 की पूरी जानकारी न होने मुख्य कारण अभी तक इसका सरकारी फाइलों तक ही सीमित रहना है। -राजू09023693142 @ जीमेल.कॉम
इस कानून के बारे में अधिकांश लोगों को नहीं पता है। पता तभी चलेगा, जब सरकार जागरूकता अभियान चलाए। आखिर सारे नियम कानून तो हमारे लिए ही बनाए जाते हैं। -अश्विनी945 @ जीमेल.कॉम
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साभार : दैनिक जागरण 23 अक्टूबर 2011 (रविवार)
नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.
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